●● पढो और मनन करो ●●
1- प्रभु ! किसी की नज़र आप पर टिके या न टिके पर आपकी नज़र सब पर समभाव से टिकी होती है । 2-सत्यकी खोज इन्द्रियोंसे प्रारम्भ होती है और इन्द्रियोंकी समझ संदेह आधारित होती है , संदेहको भ्रममें रूपांतरित न होनें देना , ध्यान - मार्ग है , ध्यानमें संदेहको श्रद्धामें रूपांतरित होते देखना ध्यानको पकाता है और ध्यान जब पकता है तब जो दिखता है वह सत्य ही होता है ।
3- जिस घडी तन - मन दोनों प्रभुको समर्पित हो जाते हैं उसी घडी अनन्य भक्तिकी लहर परम गति की ओर चला देती है ।
4- चलना तो है ही , सभीं चल भी रहे हैं , लेकिन ज्यादातर लोग एक जगह पर कदमताल कर रहे हैं और सोचते हैं कि चल रहे हैं ।
5-सभीं जल्दीमें हैं , सबको फ़िक्र है कि इतना सारा काम इस छोटे से समयमें कैसे हो सकेगा क्योंकि जीवन छोटा है और काम अनंत है , आप समझाये हैं कि यह फ़िक्र हमारे जीवन - अवधिको और छोटा कर रही है ।
6- वेश - भूषासे चाहे जो बना लो , लोगों द्वारा चाहे जो उपाधि प्राप्त कर को जैसे जगत गुरु , योगाचार्य कृपाचार्य या शंकराचार्य लेकिन हृदय रूपांतरण बिना भक्ति - रस पाना संभव नहीं और हृदयका रूपांतरण ही प्रभुका प्रसाद है जो किसी - किसी को मिल पाता है ।
7 - सबकी खोज एक है -सुख की प्राप्ति लेकिन उनमें कितनें सुखमें जी रहे हैं , ज़रा आँख उठा कर देखाना ?
8 - रात को भोजनका पहला कौर उठाते समय ज़रा सोचना कि आज दिन भर आप जो भी किये क्या वह यही दे सकता है ?
9 - यह न सोचो कि लोग आप से प्यार करें ,आप प्यार करनें का अभ्यास करते रहें ।
10 - कुछ करनें की सोच पर कबतक रुके रहोगे , उसे करनें की हिम्मत करो , आज जो आपके खिलाफ हैं ,कल आपके मित्र बन जायेंगे लेकिन यह काम इतना आसान नहीं ।
11 - जिसे पानें केलिए तुम सबकुछ खोना चाह रहे हो क्या वह आपको भी इतना ही चाहता है ,ज़रा सोचना इस बिषय पर ?
12- भोग उर्जाकी ऑंखें जो देखती हैं ,वह भ्रम ही होता है और योगकी आँखों में सत्य समाया हुआ होता है ।
~~~ ॐ ~~~
Friday, April 18, 2014
पढो और मनन करो
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ऐसा ही है
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