Wednesday, February 29, 2012

प्रभु से मिलो

परमात्मा से हम कैसा सम्बन्ध बनाना चाहते हैं?

हमें परमात्मा की खोज क्यों है?

यदि परमात्मा हमें मिलता भी हो तो …..... ?

क्या हम उसकी आवाज को पहचानते हैं ?

क्या हम उसके रूप – रंग को समझते हैं ?

क्या हम उसकी संवेदना से वाकिब हैं ?

क्या हम उसके श्वाद को जानते हैं?

यदि ऊपर के प्रश्नो का उत्तर नां में है फिर हम कैसे उसे खोज रहे हैं?

क्या जितनें उसके नाम हैं उनसे हम तृप्त हैं?

कुरानशरीफ में अल्लाह के सौ नामों की चर्चा है लेकिन हैं99नाम आखिर100वां कौन है?

कुरानशरीफ में यह भी लिखा है कि जो औअल है वही आखिरी भी है

बुद्ध से आनंद पूछते है ,

भंते ! आप ईश्वर के नाम पर चुप क्यों हो जाते हैं , बुद्ध मुस्कुराते हुए कहते हैं ,

आनंद ! क्या कहूँ , परिभाषा उसकी होती है जो होता है ----- /

आनंद पुनः पूछते हैं ,

भंते ! क्या वह नहीं है ?

बुद्ध कहते हैं ,

जो हो रहा है वही वह है और जो अभीं भी हो रहा है उसकी परिभाषा करना संभव नहीं/

और गीता कहता है ----

वह अशोच्य – अब्यक्त है

अब अप सोचो उस असोच्य के सम्बन्ध में

=====ओम्=======



Monday, February 27, 2012

आइना

  • जिसमें लोगों का अपना कद औरो से ऊंचा दिखता हो वह क्या है?

  • बेटा / बेटी डाक्टर की पढ़ायी की तैयारी में ब्यस्त है और पिता इस सोच में डूबा है कि वह कौन सी गाडी है जो अभीं तक किसी के पास आजू - बाजू में नहीं है , यह सोच किसकी ऊर्जा का परिणाम है ?

  • राम से सम्बन्ध सभी रखना चाहते हैं लेकिन गज भर दूरी भी रखते हैं,क्यों?

  • राम में बसों या राम को अपनें में बसाओ दोनों स्थितियां क्या हैं ?

  • लोग प्रभु को खोज रहे हैं,यह बात स्पष्ट दिखती है लेकिन कौन समझता है कि प्रभु भी किसी को खोज रहा है?

  • मनुष्य से उसका अहंकार छीन लो उसकी मौत हो जायेगी

  • बुद्ध पुरुष मनुष्य से उसका अहंकार छीनना चाहते हैं और मनुष्य उसे देना नहीं चाहता

  • मनुष्य के पास क्या है ; चाह है तो राह नहीं और राह है तो चाह नहीं , यह क्या है ?

  • भोग की उर्जा प्रभु मार्ग में रुकावट है लेकिन इस उर्जा के प्रति उठा होश सीधे प्रभु में पहुँचाया है

  • क्रोध में नहीं क्रोध से सत् की यात्रा संभव है

  • मोह में नहीं मोह से प्रभु दिख सकता है

    ==== ओम् =======


Saturday, February 25, 2012

उसमें सबकी पहचान है

  • दिन एवं रात को अलग – अलग देखना एक सहज भ्रम है

  • दिन का प्रारम्भ रात्रि से और रात्रि का प्रारम्भ दिन से है

  • ब्यय में अब्यय की झलक पाना ही साधना है

  • वह इंद्रिय रहित है वह मन रहित है लेकिन दोनों का श्रोत वही है

  • क्या वह पांच बिषयों में सीमीत है

  • क्या उसे हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पहचानती है

  • वह कौन सी बस्तु या जगह है जहां वह नहीं

  • हम उसकी निगाह से परे जा कैसे सकते हैं

  • साकार की यात्रा निराकार में पहुंचाती है

  • भोग का अंत वैराज्ञ है


=====ओम्======


Friday, February 24, 2012

भाषा एवं भाव

  • भाषा बुद्धि की बात को प्रकट करती है और भाव दिल की बात का रस होता है

  • संसार में बनें रहनें के लिए भाषा एक माध्यम है और भाव स्वयं से जोड़ता है

  • संसार में सभीं जीवों की अपनीं-अपनी भाषा होती है जैसे अमेरिका का कुत्ता जगन्नाथ पूरी के कुत्ते की भाषा को समझता है लेकिन मनुष्यों में ऐसा नहीं है/

  • महल में रहने वाला कुत्ता झोपड़े में रहनें वाले कुत्ते से घृणा नहीं करता लेकिन मनुष्य?

  • सभीं देशों के एक वर्ग के सभीं जीव – जंतुओं का रहन – सहन,खान – पान,स्वभाव एवं भाषा एक सी होती है लेकिन मनुष्य की?

  • भाषा का जन्म भावों के ब्यक्त करनें की ऊर्जा से हुआ है

  • जो भाषा भावों के जितनी करीब होती है वह उतनी ही जीवंत होती है

  • कबीर , मीरा , नानक के पास सीमित शब्द ते लेकिन जो बात वे उन शब्दों में ढाला वह सीमा रहित हैं

  • भक्त भाषा का गरीब होता है लेकिन भाव का सागर उनके दिल में बसता है

  • मनुष्य में तीन तरह के भाव बहते हैं;सात्त्विक,राजस एवं तामस और इन तीन के परे जो भाव है उसे भावातीत कहते है जिसकी ऊर्जा में प्रभु बसता है

==== ओम्=====




Wednesday, February 22, 2012

भय - भगवान

  • मृत्य एवं भय में क्या रिश्ता है ?

  • भय तामस गुण का एक तत्त्व है

  • तामस गुण का केंद्र मनुष्य के देह में नाभि है

  • भय – वैराज्ञ एक साथ एक बुद्धि में नहीं बसते

  • बिना वैराज्ञ संसार को समझना संभव नहीं

  • बिना संसार बोध हुए प्रभु से मिलना संभव नहीं

  • बिना वैराज्ञ भगवान मात्र एक संदेह है

  • ससार बोध में स्व – बोध भी सामिल है

  • संसार मनुष्य की परिधि है जहां भोग की चादर फैली हुयी है

  • मनुष्य का केन्द्र है आत्मा जिसके माध्यम से प्रभु दिखता है

  • आत्मा - परमात्मा का बोध निर्विकार मन से होता है

  • निर्विकार मन ही वैराज्ञ है

  • ससार माया की चादर है

  • आया प्रभु निर्मित है

  • माया केंद्रित ब्यक्ति मायापति को नहीं समझता


===== ओम्=====



Monday, February 20, 2012

इसे भी देखो

  • प्रकृति के अनुकूल सभीं जीव अपनें बसेरों का स्थान निश्चित करते हैं लेकिन मनुष्य?

  • एक पेड़ पर अनेक निवास करते हैं और निर्वैर्य भाव से अपनीं-अपी सुरक्षा करते हैं लेकिन मनुष्य?

  • समुद्र हिमालय आ कर गंगा को आमंत्रित नहीं करता,गंगा स्वयं खोजती-खोजती वहाँ पहुंचती है और मनुष्य कब अपनें सागर की तलाश शुरू करता है?

  • समुद्र सम्पूर्ण पृथ्वी की लवणता को धारण करती है और सबको खुश रखती है लेकिन मनुष्य स्वयं की लवणता को भी नहीं धारण करना चाहता , क्यों ?

  • मनुष्य का सारा जीवन खुशियाँ बटोरनें में गुजरता है लेकिन कौन कितना खुश रह पाता है?

  • गर्भाधान , जन्म , जीवन एवं मृत्यु की झलक हर पल प्रकृति दिखाती रहती है लेकिन इनके प्रति हम कितनें जागरूक हैं ?

  • मनुष्य की इंद्रियों की क्षमता अन्य जीवों की इंद्रियों से लगभग तीन गुणा अधिक है लेकिन अन्य जीवों की तुलना में हम उनके एक तीहाई क्षमता ही प्रयोग कर रहे हैं अर्थात धीरे - धीरे मनुष्य के इद्रियों की ग्राह्य शक्ति कम हो रही है , क्यों ?

  • प्रकृति में इतिहास के पन्नें नहीं है जो है वह वर्तमान है और हम इतिहास में उलझे हुए हैं और इस उलझन में हमारा वर्तमान ढलता जा रहा है

  • सभीं की जीवन – यात्रा अनजानें मोड पर लुप्त हो रही हैं और हम उस अनजानें मोड को समझना नहीं चाहते,क्यों?


===== ओम्==============


Saturday, February 18, 2012

प्रकृति और हम

प्रकृति में कौन बड़ा कौन छोटा है?

प्रकृति में मनुष्य को छोड़ कर अन्य जीवों में लड़ाई का कारण भोजन एवं काम है

प्रकृति का अस्तित्व लेनें-देनें पर आधारित है लकिन क्या हम कुछ देना भी चाहते हैं?

पानी – हरियाली प्रकृति देती है लेकिन इसके लिए वह हमसे कुछ चाहती भी है

जन्म प्रकृति आधारित है लेकिन जीवन का मार्ग स्व आधारित है

संसार क्रीडा स्थल है जहां हर पल खुशी का पल होना चाहिएलेकिन---- ?

मेरे दुःख का कारण तुम हो , यह सोच हमें अँधेरे से निकलनें नहीं देती

" नानक दुखिया सब संसार " लेकिन सभीं मौत से दूर भागते हैं

पानें की चाह वाले अनेक हैं लेकिन देनेंवाले?

कुछ मिल सकता है यह सोच हमें लोगों के करीब लाती है लेकिन क्या हमसे वह भी कुछ चाहता है , यह सोच क्या कभी हमारे अंदर आती है ?

==== ओम् =======




Friday, February 17, 2012

अहंकार की छाया

  • अहंकार अपरा प्रकृति का एक मूल तत्त्व है

  • माया तीन गुणों एवं दो प्रकृतियों का जोड़ है

  • अपरा प्रकृति के आठ तत्त्व हैं[पञ्च महाभूत,मन,बुद्धि अहंकार]

  • परा प्रकृति चेतना का ही नाम है

  • अहंकार का स्वभाव कछुए के स्वभाव से मिलता है ; कभी अंदर तो कभी बाहर

  • राजस गुण का अहंकार फैलाता है

  • तामस गुण का अहंकार सिकोड़ता है

  • सात्विक गुण का अहंकार सीधे नर्क में ले जाता है

  • अहंकार मनुष्य को न जीनें देता है न मरनें

  • तेरा - मेरा , अच्छा - बुरा की सोच अहंकार की ऊर्जा का संकेत है

    ====ओम्=====


Wednesday, February 15, 2012

हमारी चाल

कर्म की आसक्ति एवं कर्ता भाव नर्क की राह पर ले जाते हैं

जो हमारे पास है वह प्रभु का प्रसाद है जो ऎसी आत अपने ह्रदय में देखते हैं वे संत होते हैं

आसक्ति एवं अहंकार रहित कर्म परा धाम की ओर ले जाते हैं

दो की दोस्ती तबतक है जबतक एक में धनात्मक एवं दूसरे में नकारात्मक अहंकार होता है

जब दोनों में धनात्मक अहंकार होता है तब झगड़ा होनें की संभावना होती है

जब दोनों में नकारात्मक अहंकार होता है तब दोनों के आँखों से बूँदें टपकती रहती हैं

अपनी असफलताओं के लिए भाग्य – भगवान को जिम्मेदार बनानें वाला कर्म – योगी कैसे हो सकता है

अहंकार न जीनें देता है न मरनें

योगी के पास अपना कुछ नहीं होता वह सबमें अपनें को ही देखता है

भोगी एक कस्सी की भांति होता है,जो भी वह देखता है उसे अपनीं ओर खीचना चाहता है


======ओम्=====




Tuesday, February 14, 2012

जीवन दर्शन भाग एक

  • नदी के दो किनारे आपस में मिलते से दिखते हैं लेकिन कभीं मिलते नहीं

  • नदी के दोनों किनारों का श्रोत एक है ; एक बूँद जिसे नदी में खोजना अति कठीन

  • देह में प्रभु की बूँद है आत्मा जिसको देखना ही परम दर्शन है

  • माया का श्रोत मायातीत है और माया के बिना मायातीत को देखना अति कठिन

  • बोधि धर्मं अपनी आखिरी प्रार्थना में कहते हैं , माया तेरा धन्यबाद यदि तूं न होती तो प्रभु की अनुभूति कैसे होती ?

  • तीन गुणों का श्रोत गुणातीत है

  • जिसको तुम अपना समझ रहे हो क्या वही तो तुम्हारे दुःख का कारण तो नहीं

  • जबतक मन – बुद्धि में अपना-पराया का भाव है तबतक शांति कहाँ

  • संसार तीन मार्गी है ; अपना , पराया और न अपना न पराया , आखिरी मार्ग तब खुलता है जब प्रारंभिक दो बंद हो जाते हैं

  • अपना का भव अहंकार को तीब्र करता है

  • पराया का भाब हीन भाव ला सकता है

  • न अपना न पराया हीगीता का समभाव है

  • जीवन को दो से निकाल कर जब एक पर केंद्रित कर दिया जाता है त वह एक भी तिरोहित हो जाता है उस परम में जहां मात्र एक शून्यता साक्षी के रूप में अचल बिद्यमान रहती है

= ====ओम् ======



Saturday, February 11, 2012

आखिर कबतक भाग तीन


आखिर कबतक राम रहीम के मध्य दिवार बनी रहेगी ?


आखिर कबतक जाति के नाम पर हम अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे ?


आखिर कबतक सरल मार्ग की तलाश हमें भटकाती रहेगी ?


आखिर कबतक गरीब – अमीर की पीठें एक दूसरे के सामनें रहेंगी ?


आखिर कबतक मैं और तूं दो बनें रहेंगे ?


आखिर कबतक अपनें को अपनों से दूर रखोगे ?


आखिर कबतक अहंकार की सवारी करते रहोगे ?


आखिर कबतक कामना की नशा छायी रहेगी ?


आखिर कबतक मोह की रस्सी में बधे रहोगे ?


आखिर कबतक अपने पतन का कारण किसी और को बनाते रहोगे ?


====ओम्=======




Thursday, February 9, 2012

गीता के मूल मन्त्र

गीता तत्त्वों को हम यहाँ गीता ममें देखनें का प्रयाश कर रहे हैं जिसके अंतर्गत पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों को गीता में देखनें का यह हमारा प्रयाश अब अगल्ले सोपान पर पहुँच रहा है , आइये देखते हैं गीता के माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण के वचनों को ------

श्लोक – 2.16

नासतो विद्यते भावो

नाभावो विद्यते सतः

श्लोक – 4.7 – 4.8

अधर्म जब धर्म को ढक लेता है , साधू पुरुषों का पृथ्वी पर रहना जब कठिन हो उठत है तब तब प्रभु निराकार से साकार रूप धारण करते हैं /

श्लोक – 13.20

प्रकृति- पुरुष अनादि हैं

श्लोक – 15.16

क्षर – अक् षर [ देह + आत्मा ] दो पुरुष हैं

श्लोक – 15.18

क्षर – अक्षर से परे मैं हूँ [ श्री कृष्ण ]

श्लोक – 3.5 , 3.27 , 3.33 , 18.59 , 18.60

मनुष्य तीन गुणों के प्रभाव में आ कर कर्म करता है और कर्ता भाव का आना अहंकार का सूचक है /

श्लोक – 13.25

क्षेत्रज्ञ की अनुभूति ध्यान से एवं सांख्य – योग से हो सकती है /

==== ओम्========


Wednesday, February 8, 2012

आखिर कबतक भाग दो

आखिर कबतक अपने को छुपाते रहोगे ?

आखिर कबतक जैसे हो वैसे बने रहोगे ?

आखिर कबतक अपनी करनी को ढकते रहोगे?

आखिर कबतक प्रभु को दोषी बनाते रहोगे?

आखिर कबतक स्वयं को परम पवित्र समझते रहोगे ?

आखिर कबतक सत् की ओर पीठ रखोगे ?

आखिर कबतक अपनों के मध्य दिवार खीचते रहोगे ?

आखिर कबतक जाति - धर्म के नाम पर अपनों को बाटते रहोगे ?

आखिर कबतक स्वयं को उलझाते रहोगे?

आखिर कबतक अपनी ऊँचाई को मापते रहोगे?

====ओम्=====


Monday, February 6, 2012

आखिर कबतक भाग एक

  • बच्चा जबतक हमारे इशारे पर चलता है , प्यारा लगता है

  • दो के बीच जितनी दूरी होती है सांसारिक मित्रता उतनी सघन सी दिखती है

  • मित्रता तबतक है तबतक दो में से एक दूसरे के पीछे चलता रहा है

  • कौन और कबतक कोई किसी के पीछे चलना चाहता है

  • आप का मौन आप को प्यार बना कर रखता है

  • कौन मौन रहना चाहता है और कबतक

  • आप तबतक प्यारे हैं जबतक हाँ में हैं मिलाते रहते हैं

  • उसका दर्शन मौन बना देता है

  • स्व की खोज मौन की खोज है

  • उसका दिखाना स्व को विसर्जित कर देता है


====ओम्=====


Saturday, February 4, 2012

अकेलापन

  • दो के मध्य द्वन्द का कारण तीसरा होता है

  • वह तीसरा ब्यक्ति , बस्तु या फिर भ्रम हो सकता है

  • मनुष्य कभी अकेला नहीं रहता,अकेला पन यातो मनोरोगी बनाता है या प्रभु मय बनाता है

  • दो के मध्य तीसरे का होना स्वर्ग या नर्क का द्वार खोल सकता है

  • मन स्तर पर अकेला होना साधना है

  • भौतिक स्तर पर संसार में अकेला होना पागल पन ला सकता है

  • अन्तः करण में अकेला पन ब्रह्म सरोवर होता है

  • राम शब्द बहुतों के नाम का हिस्सा है लेकिन कितनों के ह्रदय में राम है?

  • होठों पर राम नाम का होना अहंकार को मजबूत बना सकता है ह्रदय का राम राम धाम होता है

  • रामलीला करनें वाले – देखनें वाले अनेक हैं लेकिन उनमें से कितनों के दिल में राम बसा होता है


=====ओम्======


Thursday, February 2, 2012

दो से एक

दो से संसार का अस्तित्व है

एक सर्वत्र है स्थिर है और अब्यय है

दूसरा जो पहले से है अस्थिर है और परिवर्तन का संकेत है

दूसरा पहले के फैलाव स्वरुप है और और संकेत देता है कि वह किसी से है

वह एक अनेक में बिभक्त सा दिखता है

अनेकान्तबादी जहां पहुंचते हैं वह अनेक नहीं एक है

उस एक को अनेक रूपों में देखनें वाले परिधि पर होते हैं

सबमें उस एक को जो देखते हैं उनकी यात्रा परिधी से केंद्र की ओर की होती है

परिधि से केंद्र की यात्रा है गीता की यात्रा

गीता की यात्रा में माया के माध्यम से पुरुष को निहारना होता है

====ओम्======