Friday, December 31, 2010

कितना अच्छा लगता है -----



आप को कैसा लगता है ?

आज ऐसे - ऐसे लोग जीनें का ढंग सिखा रहे हैं .......
जो स्वयं पराश्रित हैं -----
जो कभी बीजली का बिल भरनें के लिए लाइन में नहीं खड़े हुए -----
जो बच्चे के दाखिले के लिए अपनी जूती नहीं घीसाए ----
जो कभीं घोड़ी पर बैठ कर .....
हाँथ में तलवार ले कर ....
ब्याह करानें ,लड़की के घर बरात ले कर नहीं गए ........
जो कभीचाय भी बना कर नहीं पीया ......
न जानें
कहाँ - कहाँ से ऐसे लोग आ जाते हैं जिनका पहले से कोई पता नहीं होता ॥

आप कभी सोचते हो ?
जो दसवीं तक भी विज्ञान नहीं पढ़े , वे सिद्रोम बीमारी की बात करते हैं .....
जिनके जीवन में झूठ ही झूठ है ,
वे बता रहे हैं जीवन जीनें के ढंग को .....
जिन्होनें एक काकरोच का भी आपरेसन नहीं किया ,
वे बता रहे हैं .....
किडनी , लीवर , दिल और पंक्रियाज के बारे में .....
और हम लोग प्यार से कानों को बंद करके .....
सुन रहे हैं .....
है न मजे की बात ॥

ज़रा उठो ...
ज़रा सीधे होवो ...
ज़रा अपनें को जानो ....
ज़रा प्रभु को याद करो ....
ज़रा अपनें परिवार को समझो ....
क्या रखा है .....
झूठे लोगों के पीछे - पीछे ...
भागनें में ॥

==== ॐ =====

Wednesday, December 29, 2010

सुनना एक औषधि है



दुसरे के दुःख को सुननें में .....
हम अपनें दुःख को भूल जाते हैं ॥

दुसरे की बुराई सुननें में हारमोंस बदल जाते हैं .....
और ...
अपनी बुराई सुनते ही अन्दर करेंट दौड़ पड़ती है ॥

कबीर साहिब कहते हैं .....
अपनें निंदक को अपने साथ रखो ...
लेकीन ....
अपनें बेटे कमाल को बर्दास्त न कर पाए ॥

दुसरे को उपदेश देना भारत का बच्चा - बच्चा जानता है .....
लेकीन .....
स्वयं अमल करनें में हम कुछ हलके से पड़ जाते हैं ॥

जब ----
अपनी प्रशंशा और दुसरे की बुराई सुननें में अन्दर गुदगुदी हो रही हो तो .....
समझना गुण आप को बिष का प्रसाद दे रहे हैं ॥

जो हम हैं उसको सुननें में हमें कोई रूचि नहीं ....
जो नहीं हैं अर्थात जब कोई लम्बाई को दो गज बढ़ा कर सुनाये तो ......
बहरे कान भी अच्छी तरह से सुन लेते हैं ॥

जिस को सुननें से क्रोध की लहर उठ रही हो तो समझना ......
सत भी उसके पास ही है ॥

सुननें में भाव को निर्भाव में बदलना ही .....
महाबीर का .....
निर्ग्रन्थ होना है ॥

==== ॐ =====

Monday, December 27, 2010

कितना अच्छा लगता है -----



आप रेलवे प्लेटफार्म पर ----
या
एयर पोर्ट पर
कभी इंतजार किया है ---
और उस इंतजार में यदि कोई कहे ---
की ----
भाई साहब !
आइये लेते है एक - एक कोफ़ी
तो उस समय आप को कैसा लगता है ?
चलिए मैं बताये देता हूँ
यदि कोई अपना पहले का जाना - पहचाना है ......
तबतो अन्दर तेज लहर नहीं उठती , पर यदि सज्जन अनजानें हैं फिर ......
क्या पूछना , प्यार का तूफ़ान अन्दर उठनें लगाता है ,
कारण क्या होता है ? ...
अनजानें से इतना प्यार
और .....
जिसको जानते हैं , उस से बच कर निकलना चाहते हैं ॥
हम चाहते हैं ----
सब को जानना और खासतौर पर ----
सब की कमजोरियों को जानना ,
पर ----
हम यह नहीं चाहते की कोई हमारी कमजोरियों को जान सके ----
है न मजे की बात .....
सब का ब्यापार एक - झूठ का ब्यापार
और सब .....
एक दूसरे से किस प्रकार का भाव रख रहे हैं ,
ज़रा इस बात पर सोचिये ॥
नया ब्यक्ति जब मिलता है तब मन कहता है -----
नया पंछी है , सूना डालो ,
जितना अन्दर काफी दिनों से भर रहा है ,
इसके पहले की ----
वह भी औरों की तरह तुमको जान जाए ।
और जब वह कहता है की ----
भाई साहब कुछ सुनाइये -- फिर क्या ....
ऐसा लगताह ई जैसे -----
चट्टान पर डूब घास उग गयी हो .....
रेगिस्तान में जैसे बीस साल बाद बुँदे पड़ी हो
और ---
तब कोफ़ी का पेमेंट हम स्वयं कर देते हैं और धीरे से कहते हैं ......
चलिए बैठ कर बातें करते हैं ॥

इन्सार इनसाल को धोखा दे रहा है ....
इंसान प्रकृति को धोखा दे रहा है .....
इंसान स्वयं को धोखा दे रहा है ....
आखिर इंसान जा किधर रहा है ?

प्यारों !
पहले
दूसरों को पहचाननें के पहले
स्वयं को
पहचानना सीखो ॥

==== ॐ =====












Sunday, December 26, 2010

कौन समझता है ?

** प्रभु सब के ह्रदय में हैं ----
गीता - 10.20 , 18.61

प्रभु तो हम सब में बसे हुए हैं .......
लेकीन ......
कभीं क्या हम भी उनमें बसते हैं ?
इस बात को कौन समझता है ?

जिसको भी इस बात की भनक पड़ी की .....
वह प्रभु में बसा हुआ है .....
उसके अन्दर अहंकार का ज्वालामुखी फूट पड़ता है ,
फिर .....
इंसान को इंसान नहीं समझता -----
जीव को जीव नहीं समझता ------
वह स्वयं को प्रभु बनानें की कोशीश में फस जाता है
या .....
कुछ दिन अनजानें की तरह ....
हम सब में ......
मौन स्थिति में रह कर फिर ........
कब ----
कहाँ ---
कैसे ---
अपने शरीर को छोड़ जाता है
ऐसे .....
जैसे कुछ जीव ....
अपनी त्वचा को छोड़ जाते हैं ॥

प्रभु में कुछ घड़ी गुजारनें का .....
अभ्यास करो ....
चाहे ----
तन से
या
मन से
यह आप को ....
परम सत्य में होनें का .....
बोध करा देगा ॥

==== ॐ ======

Saturday, December 25, 2010

सूना आपनें ?



पृथ्वी पर बैठे -----
प्रयोगशालाओं में कैद ----
दूरबीन पर आँखे गडाए ----
नासा के वैज्ञानिकों को ....
अब ......
अन्तरिक्ष में भी हीरे - जवाहरातों के ....
तारे वह भी
दिन में नज़र आनें लगे हैं ॥

पृथ्वी के हीरों अब उतनी चमक नहीं ....
या यों कहे
की पृथ्वी से अब हम सब उबनें लगे हैं
और
खोज रहे हैं कोई और जगह जहा अपना ठिकाना
बनाया जाए ।
अब हमें कुछ ऐसा दिखनें लगा है की ----
इंसान खानाबदोशी जिन्दगी से आगे निकल गया है ----
अब इंसान काफी विकास कर चुका है लेकीन ----
कहते हैं न ....
भिखारी अरबपति बन जाता है लेकीन ----
उसकी गरीबी उसके साथ चिपकी रहती है ॥
इंसान सभ्यता के प्रारंभ में खानाबदोशी जीवन में रहता था ,
जहां जिननें दिन खाना मिलता था , वह वहाँ
उतने दिन रुकता था और फिर ...
नयी जगह की तलाश आगे निकल लेता था ,
आज जो वैज्ञानिक हीरे - जवाहरात के तारों को अंतरिक्ष में
देख रहे हैं वह तारे हीरों - जवाहरातों के नहीं हैं ,
वैज्ञानिकों के अन्दर की गहरी कामनाएं उनके सामनें
तारों के रूप में दिख रहीं हैं ॥
मेरे प्यारों !
खोजना ही है तो खोजो ----
खूब खोजो , थाकोगे भी नहीं ....
उसको ....
जो
हीरों ----
जवाहरातों में नूर बन कर बैठा है ॥

आज इतना ही

===== प्रभु आप को खुश रखे ====

Friday, December 24, 2010

कौन भ्रमित है ?



क्या वह जो ......
नहीं सुनता उसकी आवाज को ----
या ....
जो उसकी आवाज सुन कर उसमें ही बस जाता है ॥
इन दोनों में कौन उसके प्रति भ्रमित है ?

एक 46 वर्ष की महिला - Delia Knox एक कार दुर्घटना में अपाहिज हो गयी थी और .....
और व्हील चेयर से उठाना उनके लिए असंभव हो चुका था ॥

एक दिन उनको .....
एक आवाज सुनाई दी ....

डेलिया ! उठ और चल -----
आप क्या समझ रहे होंगे की डेलिया को भ्रम न हुआ होगा ?
एक अपाहिज महिला अपनें अधेड़ जीवन में अकेली
व्हील चेयर पर बैठी जिसके आस - पास कोई न था ,
एक आवाज सुनाई पड़े की .....
उठ !
अब वक़्त आ गया है .....
उठ और चल ॥
यह आवाज किसकी थी ?
और जो सुन रही थी वह कौन थी ?

डेलिया उठी और चल पड़ी ॥
वह जिसनें सुनी ,
उसकी आवाज को
और ----
मन के बहकावे में न आ कर अपनें दिल की मानी ,
वह ...
तो समझो गया उस पार
और
जो मन स्तर पर रुक गया ,
वह
भ्रमित ब्यक्ति यहीं चक्कर काट - काट कर ,
एक दिन ......
अपनें घर नहीं -----
अपनें परिवार में नहीं -----
न जानें किस चौराहे पर -----
किस हालत में .....
कहाँ ......
भ्रम में उलझा ---
अपने देह को भी छोड़ गया होगा ॥

आज इतना ही

==== प्रभु आप को सत बुद्धि दे =====

Thursday, December 23, 2010

इच्छा धारी --------

इच्छाधारी को समझो ....

चाहे वह ----
नेता हो
योगी हो
भोगी हो
सर्प हो .....
सभी बिषैले होते हैं ॥
आपकी रूचि यदि बायो टेक या बायो केमिस्ट्री में हो
तो आप इस बात को अपनें शोध का बिषय बना कर
नोबल पुरष्कार की तैयारी कर सकते हैं ॥
जितनी गहरी इच्छा ......
उतना गहरा क्रोध .....
जितना गहरा क्रोध .....
उतना ही गहरा जहर पैदा होता है ॥

मैक्स प्लांक को नोबल पुरष्कार मिला था
इस बात पर -------

एक लोहे की राड को आप आग में खूब तपाओ ,
ऐसा करनें से तप रहे भाग से चिंगारियां निकलनें लगती हैं ,
इन चिंगारियों की पकड़ प्लैंक को नोबल पुरष्कार दिला दी
और इसके बाद मानो विज्ञान का नया युग
प्रारम्भ को गया हो ॥

अब आप को मेरे जैसे मुर्ख की एक सलाह ------
क्रोध में भी चिंगारियां निकलती हैं जो बिष की बूंदों के रूप में कहीं इकट्ठा होती हैं ।
आप उस स्थान को पकड़ कर उन बूंदों की तीब्रता को मापनें का प्रयत्न करें ,

क्या पता , प्रभु प्रसाद रूप में आप को भी नोबल पुरष्कार से
सम्मानित किया जाए ॥

आज इतना ही

==== गीता के माध्यम से =====

Tuesday, December 21, 2010

कौन ठीक है ?



Aristotle और सुकरात जैसे महान रहस्य दर्शियों की सोच ........
Pythagorus जैसे गणित के विशेषज्ञ की सोच .......
और उनके घर की परेशानियां .......
सर आइजेक न्यूटन को विज्ञान एक बृक्ष के नीचे बैठे - बैठे मिल गया
और न्यूटन आधुनिक
विज्ञान के जनक बन गए ।

न्यूटन कहते हैं -----
ऊर्जा को न तो समाप्त किया जा सकता है .....
और न बनाया जा सकता है , हाँ इसको रुपानारित जरुर किया जा सकता है ॥
अब आया आधुनिक विज्ञान का जबाना - बीसवीं शताब्दी का प्रारम्भ जब महानतम वैज्ञानिक
इकट्ठे इस धरा पर तारों की भाँती अवतरित हुए और आज जिसमें हम हैं वह ,
वह है जो इन वैज्ञानिकों की सोच का फल है ।
क्वांटम विज्ञान कहता है ------
किसी भी सूचना को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता ,
वैज्ञानिक इस बात पर टिके रहे और
भारतीय मूल के वैज्ञानिक - चंद्रा को नोबल पुरष्कार न मिल सका
क्यों की चंद्रा कहते थे की समाप्त किया जा सकता है ।

यह तो बातें हैं - विज्ञान की
जो आज सत हैं और कल असत हो जानें वाली हैं ।
विज्ञान की सभी बातें कुछ सालों के बाद संशोधित करदी जाती हैं और सब लोग उसे मान भी जाते हैं ।

अब देखते हैं गीता की बात को
जो प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं --------
प्रभु कहते हैं .......
मैं सभी जीवों के ह्रदय में आत्मा रूप में बैठा हूँ और सबके आदि , मध्य और अंत का कारण हूँ ।
आत्मा न बढ़ता है ....
न घटता है .....
न जन्म लेता है ....
न मरता है ....
और
किसी भी तरह - भौतिक , रासायनिक एवं जैविक ढंग से
इसको रूपांतरित भी नहीं किया जा सकता ॥

ऊपर आप नें क्वांटम - विज्ञान और ऊर्जा - भौतिकी की
जो बातें देखी उनमे और इसमें क्या फर्क है ?
लेकीन
वैज्ञानिकों को आत्मा शब्द से एलर्जी सी है - ऐसा क्यों ?
आज के Particle Physicists जानेवा में बिग बैंग के नाम पर
क्या आत्मा की खोज में नहीं जुटे दिख रहे ?

===== आज इतना ही ====



Monday, December 20, 2010

यह प्रकृति का नज़ारा है



प्रकृति से प्रकृति में हम सब हैं जैसे एक माँ - पिता की औलादें होती हैं
लेकीन हमें कहाँ फुर्सत है की
एक दुसरे को अच्छी नज़र से देखें ।

यदि प्राकृतिक ढंग से बच्चा जन्म ले तो वह दिन की जगह रात्री में पैदा होता है
लेकीन आज ज्यादातर
शिशु चिकित्सालाओं मेंजन्म ले रहे हैं और डाक्टर लोगों के पास इतना
वक्त नहीं की शिशु को प्राकृतिक ढंग
से जन्म लेनें दें , बिना दर्द , बिना देरी किये मिनटों में डेलिवरी करा दी जाती है
इसका परिणाम क्या हो रहा है ?
इस बात पर भी हम कुछ सोचेंगे लेकीन बाद में ।
प्रीडेलिवरी केसेज में जो बच्चे जन्म लेते है उनमें लगभग नब्बे फीसदी बच्चे
लड़के होते हैं और दस फीसदी
लडकियां होती हैं ।
जो बच्चे पहले पैदा होते हैं उनमें लड़कों के मरनें की संख्या लड़कियों से अधिक होती है ।

रात्री में जब बच्चा पैदा होता है तब क्या होता है ?
रात्री में जन्म लेनें वाले बचों को अँधेरे का अनुभव गर्भ के बाहर भी मिलनें
से उनके दिमाक पर कोई प्रतिकूल
असर नहीं पड़ता , क्योंकि गर्भ में उन्हें इस अन्धकार का अच्छा अनुभव हो गया होता है ।
दिन में जो बच्चे पैदा होते हैं उनमें -----
बड़े होनें पर निम्न बातें देखी जा सकती हैं .....
[क] चिडचिडापंन
[ख] भय
[ग] घबडाहट
और यदि सही - सही आकडा इकट्ठा किया जाए तो -----
ऐसे लोग जिनको अकस्मात् दिल का दौड़ा पड़ता है उनमें से अधिकाँश लोगों का
जन्म दिन में हुआ होता है ।
क्या आप जानते हैं की जो बच्चे शुक्ल - पक्ष में पैदा होते हैं
उनमें दिल के दौड़े की
सिकायत बड़े होनें पर
न के बराबर मिलती है ,
यदि आप डाक्टर हैं तो आप इस बिषय पर आकडे
इक्कठे करे और शोध करे
मैं गारंटी देता हूँ की आप को नोबल पुरष्कार जरुर मिलेगा ।

यदि आप निउरो सर्जन हैं तो आप के लिए यह बिषय ज्यादा रुचिकर लगेगा -----
ब्रेन की बीमारियों से जो लोग पीड़ित हैं उनमें से अधिकाँश लोगों का
जन्म दिनमें हुआ मिलेगा और ....
रात्री में जो जन्म लेते हैं उनमें दिमाकी बीमारियों का प्रकोप न के बराबर होता है ॥
बच्चा जिस दिन गर्भ में आता है , एक कण के रूप में,
उस घड़ी से लेकर प्रशव के ठीक बाद तक का
उसका अनुभव , उसके आगे के जीवन को नियंत्रित करता है ॥

आज इतना ही -----
प्रकृति के प्रति होश ....
सीधे .....
प्रभु में सरका देता है .....
==== ॐ =====

Saturday, December 18, 2010

यह कौन हो सकता है ?



सुबह - सुबह की बात है , बजा होगा तकरीबन दस ।
मैं शिव - मंदिर में था , नित्य की भाँती और जब वहाँ से चलनें लगा
तो दिल में एक बात आयी ---
आज क्या है की मंदिर में कोई भी नहीं यहाँ तक की कोई पुजारी
भी नहीं दिख रहा , कुछ तो होगा ही ,
मैं भी इंसान हूँ आप सब की ही तरह
शिव का मंदिर ...
आगे शिवलिंगम ....
और एक मिनट भी मन उस शिव लिंगम पर मुझे नहीं टिकने दिया
उठा कर फेक दिया राजनीति से भरे संसार में
जैसे कूड़ेदान में लोग गंदगी फेकते हैं ।
मैं अपनें को सम्हाल ही रहा था की मंदिर के एक कोनें में किसी के होने
की आहट मिली और मैं उसे देखनें के लिए उधर चल पडा ।
वहा देखा एक नब्बे साल ली बृद्ध महिला एक बोरे के सहारे एक गट्ठर की तरह पड़ी थी ।
मैं पूछा - माँ क्या बात आप कौन हैं और यहाँ कैसे ?
वह बोली क्या अंधे हो ?
उसकी आवाज में दम था ,
मैं तो घबडा ही गया लेकीन चुप रहना ही उचित समझा ।
माँ आगे कहती हैं , क्या तू यहाँ सूनापन नहीं देख रहा ?
क्या तू समझता है की बस्ती के सभी लोग मर गए हैं ?
जी नहीं सारी बस्ती मुझे मारनें गयी है और
मैं यहाँ शिवजी की शरण में चुपचाप बैठी हूँ ।
बात और पेचीदा हो रही थी , मैं प्रार्थना किया की .....
माँ सीधी भाषा में मुझे बताएं की बात क्या है ?
वह बोली जब तू माँ कह रहा है तो ज़रा नजदीक आना
क्या पता कोई खोजता - खोजता यहाँ तक आ पहुंचे ।
मैं दो कदम आगे बढ़ा और वह बोली , सुन ----
मैं जी टी रोड हाई वे हूँ ....
लोग टायर और आग लेकर मेरी तरफ जा रहे हैं ,
कहते हैं - जी टी रोड को बंद रखना है ....
तबतक
जबतक हमारी मांगे पूरी नहीं होती ।
बेटा ! तू क्या किसी और बस्ती के हो ?
मैं बोला नहीं मैं तो यही रहता हूँ ।
वह बोली - भले दीखते हो ।
मैं तो शिव बाबा से प्रार्थना करती हूँ ......
यह तो जनम जा ही रहा है लेकीन .....
अगले जनम में हमें हाई वे न बनाना ॥
आपने सुनी एक बेजुबान की जुबान ॥

हम स्वयं को प्रभु के सबसे नजदीक समझते हैं लेकीन हैं .....
कितने दूर ----
हमसे तो वे अच्छे हैं जो बिन जुबान हैं ॥
आज इतना ही

=== अभी नहीं सुनते ना सही ====

Friday, December 17, 2010

चलो आज इस पर सोचते हैं



आज वैज्ञानिक नयी पृथ्वी की तलाश में अंतरिक्ष में भटक रहे हैं ,
बहुत परेशान से हैं बिचारे ,
आखिर ऎसी नौबत क्यों आ गयी ?
पृथ्वी को कौन समाप्त कर रहा है ?
क्या पशु ?
क्या पेड़ और पौधे ?
क्या नभ चर ?
या फिर ....
नदियाँ - पहाड़ आदि ॥
पृथ्वी को बरबाद विज्ञान के नाम पर और अपनें अहंकार को और पैना
करनें में हम इंसान कर रहे हैं और रोजाना और इसे
खोखला बनाते चले जा रहे हैं ॥
आज विज्ञान की उम्र क्या है ?
बीसवीं शताब्दी के मध्य से विज्ञान की रफ़्तार तेज हुयी है और इस रफ़्तार में जो बरबाद हो रही है ,
वह है पृथ्वी ॥
आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक पृथ्वी की आवाज को पकडनें में कामयाब हो गए हैं ।
आज से लगभग
ढाई हजार साल पहले जब विज्ञान दर्शन शास्त्र की गर्भ में एक
कण के रूपमें समय का इन्तजार में
सुसुप्ता अवस्था में पडा था , उस समय एक महान दार्शनिक
जिनको आज गणितज्ञ भी कहते हैं और जिनका नाम था Pythagorus ,
उनकी यह सोच थी की सभी ग्रहों की अपनी - अपनी धुनें होती हैं और ढाई हजार साल
वैज्ञानिकों को लग गए अपनी माँ - पृथ्वी माँ की आवाज सुननें में ॥
हमें वह दिन दूर नहीं दिखता जिस दिन कोई भारतीय मूल का अमेरिकन
वैज्ञानिक पृथ्वी की सिसक - सिसक कर
रोने की भी आवाज को पकडनें में कायाब हो जाए ॥
मेरे प्यारों -----
अपनी ही नहीं .....
सभी जीवों ----
सभी बनास्पतियों ....
सभी सूचनाओं की माँ
जो सब को एक भाव से अपनें सीनें से लगा रखी है ,
उसकी सिसकन को भी समझो और .....
अपनें सुख - सुबिधा में अंधे हो कर , उसे समाप्त न करो ॥

चलते फिरते -----
उठते बैठते ........
कभीं - कभी ......
प्रभु निर्मित प्रकृति में भी .....
झांका करो ....
बड़ा सकूं भरा पडा है ॥
आज इतना ही

==== कोई सुने या न सुनें , मैं सुनता हूँ ======

Monday, December 13, 2010

क्या कभी सोचा भी है ?



विज्ञान कह रहा है :
** कुछ पशुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं ..........
** कुछ पंक्षियों की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं .........
** कुछ बनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं और कुछ लुप्त हो रही हैं ......
लेकीन बिज्ञान यह नहीं कहता की :
# कुछ इंसानों की भी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं और कुछ लुप्त हो रही हैं ......
मेरा अनुभव कहता है -------
इंसानी समाज में एक ऎसी घटना घट रही है जिस से इंसान , इन्सान नहीं
इन्सान के रूप में कुछ और होता जा रहा है ,
वह घटना है .......
पृथ्वी पर अन्य जीवों में तो नहीं लेकीन इंसानों में माँ की ------
संख्या हर दिन कुछ कम हो जा रही है ॥
माँ क्यों कम हो रही है ?
मेरा तर्क शायद आप को न भाये लेकीन यह तर्क नहीं यथार्थ है ।
पशु , पंक्षी एवं अन्यों में आज से लाखों वर्ष पहले जैसी माएं थी ठीक उसी तरह आज भी हैं लेकीन ....
ज़रा इंसानों की आज की माओं पर एक नज़र डाल कर तो देखिये और यदि आप की उम्र पचास
साल से ऊपर की हो तो आप स्वयं अपनें गाँव - शहर की माओं पर नज़र दाल कर भी देखना ,
आप को स्पष्ट हो जाएगा की माओं की नश्ल बदलाव के साथ साथ लुप्त भी हो रही है , ऐसा
इस लिए हो रहा है ..........
[क] आज की मिलाएं बच्चा पैदा करनें में कोई रूचि नही रख रही हैं और यह मनोविज्ञान उनके
अन्दर के रसायनों में परिवर्तन ला रहा है
और ......
यदि इस मनोविज्ञान की स्त्री माँ बन भी जाए तो वह भारतीय माँ नही बन सकती ॥
[ख] आज शत प्रतिशत बच्चों का जन्म हस्पतालों में हो रहा है जहां जन्म देनें वाली स्त्री को
प्राकृतिक प्रशव पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता , उनको चिकित्सक लोग बेहोश करते बच्चे को
गर्भ से निकाल लेते हैं ।
इस स्थिति में दो बाते एक साथ घटित होती हैं -----
[ख-१] माँ बननें के बाद भी उस स्त्री के अन्दर के माँ के रसायन नहीं आते और वह माँ मात्र शब्दों में
होती है ।
[ख-२] माँ बनी स्त्री के अन्दर प्रशव पीड़ा की अनुपस्थिति के कारण जो हारमोंस
दूध पैदा करते हैं , वे कमजोर रह जाते हैं ,
फल स्वरुप ऎसी स्त्रियों में स्तन - कैंसर होनें की
गुंजाइश अधिक होती है ।
आपनें देखते ही होंगे ------
आज के बच्चे माँ को यार कह कर बुलाते हैं
आप अपने सीने पर अपना हाँथ रख कर सोचना ज़रा की ------
आज माँ और बच्चे में कहीं ममता दिखती है जो बिन स्वार्थ हो ?
क्या बेटा या बेटी का दिल माँ के सामनें खुला रहता है ?
क्या बेटा - बेटी और माँ के बीच कोई पर्दा नही रहता ?
भारत चल रहा है यूरोप बननें लेकीन ऐसा दिख रहा है -----
कहीं ऐसा तो नहीं की .....
धोबी का कुत्ता ......
न घर का .....
न घात का .....

आज इतना ही ----
इस सम्बन्ध में कुछ और बातें अगले अंक में
अब तो सोचो

Sunday, December 12, 2010

सुननें वालों का अभाव है ------

चलो देखते ही हैं ......


ठीक 06 दिनों के बाद आज मिला है हम सब को यह
रवि वार आगे अगला रवि वार किनको - किनको
देखनें को मिलता है , यह बात तो
विज्ञान भी नहीं जानता ।

आधुनिक विज्ञान के जनक कहे जाने
वाले सर आइजेक न्यूटन एक बार समुद्र के किनारे सुबह - सुबह
सैर कर रहे थे । घूमते - घूमते उनकी
नजर एक ब्यक्ति पर पड़ी जो बार - बार समुद्र की ओर आता ,
नीचे झुकता और पुनः समुद्र की ओर पीठ कर लेता था ।
वह ब्यक्ति समुद्र के जल को एक चम्मच में लेता और फिर पीछे हो लेता , न्यूटन काफी देर
तक देखते रहे और जब उनसे न रहा गया तब
बोल पड़े .....
क्या आप बतायेगे
की यह क्या कर रहे हैं ? वह ब्यक्ति बिना परवाह किये अपना काम करता रहा ।
न्यूटन को कुछ अजीब सा लगा , वे पुनः अपने प्रश्न को दुहराया ।
उस ब्यक्ति नें इशारा करके न्यूटन को अपनें पास बुलाया और बोला -----
देखते हो यहाँ मैं एक छोटा सा
गड्ढा बना रखा हूँ । इस पानी को गड्ढे में डाल रहा हूँ ॥
न्यूटन कहते हैं ----
तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?
वह बोला .....
मैं इस समुद्र को इस गड्ढे
में उतारना चाहता हूँ , और तब यह समुद्र - समुद्र न रह कर एक रेगिस्थान
हो जाएगा और तब ......
उस पर हम खूब मजा लेंगे ॥
न्यूटन सोचे - हो न हो यह पागल हो ,
लेकीन ऐसा लगता तो नहीं , चलो इस से एक बात और पूछ लेते हैं ---
न्यूटन बोले ----
क्या ऐसा संभव है ?
उस ब्यक्ति नें हसा और खूब हसा और बोला -----
तुम क्या कर रहे हो ?
क्या तुम प्रकृति को अपनी किताबमें कैद नही करना चाहते ?
न्यूटन के पास कोई जबाब न था , वे उसे सलाम करके चलते बनें ।

मेरे प्यारों जो लोग पिछले रविवार को थे उनमें से कुछ आज हम - आप के साथ नहीं है .....
अगले रविवार को हममें से न जानें कौन - कौन अनुपस्थित हो जाएँ तो हम सब भी
मिल कर समुद्रों के समुद्र .......
परम समुद्र .......
परमानंद ......
प्रभु .....
श्री कृष्ण से अपनें - अपनें अन्तः कर्ण को भरनें का ....
क्योंकि यहाँ सबका वर्तमान दो अज्ञेय के मध्य का एक पड़ाव सा है जो एक भ्रम सा लगता है और ...
जो पलक झपटे ही अब्यक्त हो जानें वाला है ॥

आज तो बश इतना ही .....

यदि रहे तो कुछ और अगले रविवार को ----

==== हे ! प्रभो =======

Friday, December 10, 2010

खूब उलझाया लोगोंनें ----



अमेरिकन साइकोलोजिस्ट
Dr. Broadus J . Watson says ----------

Conditioning is an integral part of life and without it one
can not adjust in the human - society .

वाटसन मन की conditioning पर बहुत शोध करनें के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं ।

हमारे धर्म - शास्त्र कहते हैं ------
परमात्मा झोपड़ - पट्टी में बसता है ,
और ---
झोपड़ - पट्टी वालों को हमारे धर्म - शात्री सिखाते हैं -------
राजा नरेश होता है ,
और ------
नरेश जहां रहते हैं उसे कहते हैं ......
महल ॥
आप देखिये धर्म - शात्रियो और राजाओं की मिलीभगत को ।
आखिर ये लोग आम सीधी साधी जनता को क्यों गुमराह कर रहे हैं ?
गीता में भी कहा गया है ------
नराणां च नराधिपं , अर्थात ......
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ----
नरों में मैं नर अधिपम [राजा] , मैं हूँ ---- गीता - 10.27
हमारे अपनें लोग जिन पर हम श्रद्धा रखते हैं ,
वे हमें क्यों गुमराह करते हैं ?

=== कभी तो ====

Wednesday, December 8, 2010

आखिर कब तक ------

यह जंग चलती रहेगी .....
और जब यह ----
समाप्त होगी तब .....
मनुष्य क्या करेगा ?

आखिर इस जंग में कौन लोग हैं ?

* क्या कौरव - पांडव हैं ?
** क्या द्वैत्य - अद्वैत्य हैं ?
** * क्या राम - रहीम हैं ?
या फिर ...

* अमीर - गरीब हैं -----
** अपनें - पराये हैं ----
*** सुख - दुःख हैं
आखिर .....
## कब तक चलेगा यह जंग ?
और जब यह समाप्त होगा फिर .....
मनुष्य अपनें को कैसे ब्यस्त रख पायेगा ?

क्या आप कभी इस बिषय पर सोचे हैं ?
यदि नहीं तो जल्दी किजीये क्योंकि .......
क्या आप जानते हैं की -----

सन 2050 तक
$$ हर घर का संचालक ......
इस धरा से उठ चुका होगा ॥

==== सोच, बुद्धि - योग का एक प्रमुख तत्त्व है ====

Monday, December 6, 2010

क्या है तेरे हाँथ में यहाँ



क्या है तेरे हाँथ में यहाँ ....
जन्म ....
जीवन ....
मृत्यु ....
एक बार पुनः सोचो ....
क्या है तेरे हाँथ में , यहाँ ॥
क्या हसना ....
क्या रोना .....
क्या बसना ....
क्या भागना ....
आखिर क्या है ...
तेरे हाँथ में , यहाँ ॥
ए खुदा के बन्दे !
जीवन योंही गुजार दी ...
लोगों को नंगा करनें में ...
जीवन योंही गुजार दी ....
अपनी लम्बाई - चौड़ाई बढानें में ....
तेरे हर लम्हे में जो तेरे साथ था ....
पल भर के लिए भी न झांका उसे ....
आज तूं तो सोया है ....
इस ढाई गज जमीं के एक टुकड़े पर ....
कहाँ हैं तेरे , वे अपनें ....
जिनके लिए बनाया था ....
तूं इतने बिशाल महल ....
क्या तेरे को पता है ....
तूं यहाँ एक झीनी सी चादर डाले ...
सो रहा है ....
तेरे को यहाँ आश्रय देनें वाले भी ...
तेरे अपनें ही तो हैं ....
तूं अब भी बेहोशी में ....
सो रहा है ,
या ...
होश में हो ,
अब तो तेरे को मालूम .....
हो ही गया होगा की ......
क्या है तेरे हाँथ में ....
यहाँ ॥

= सूना तो नहीं , अब सोच तो लो =

Sunday, December 5, 2010

सुननें की कोशीश ---------


सुनना

ही क्या ध्यान नहीं ?

लोग कहते हैं -----

प्रभु बहुत निर्दयी है ....
प्रभु कोईसा नहीं करना चाहिए था ....
प्रभु ऐसा क्यों करता है ......
अभी इस बिचारेनें देखा ही क्या था ....
आखिर ऐसा करनें से प्रभू को क्या मिला होगा ?
ऐसे अनेक प्रश्न समय काटनें के साधन बन चुके हैं और .....
यह सोच हमें अपनी विरासत में मिलती है ,
क्या आप इस बात को समझते हैं ?
यदि कोई यह कहे की .......
यदि ऐसा होनें का कारण मालूम भी हो जाए तो क्या के होगा ,
फिर देखना वहाँ इक्कठे लोग
आग के गोले की तरह दिखनें लगते हैं ।

प्रभु और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है ?
बच्चा जब गर्भ से बाहर आता है तब से उस समय तक के
उसके जीवन पर आप ध्यान देना जब
वह स्वयं भी पिता बन जाता है ,
आप को यकीनन मालूम हो जाएगा की
प्रभु और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है ?
लेकीन एक अड़चन है ------
हम इस अतिशयोक्ति के मरीज हैं की .......
मैं और मेरा बेटा ऐसा नही जैसे ----
हमारे पड़ोसी हैं और उनका बेटा है ; हमारी यह अबोध की धारणा
हमें कहीं भी अहीं रुकने देती और हम
कटी पतंग की तरफ भागते फिरते हैं और बनावटी ढंग से
यह दिखाना चाहते हैं की .....
मेरे जैसा प्रभु कोई और को बनाया ही नहीं ।
हम जब स्वयं की पीठ थोक कर बैठते हैं तब काश उस स्थान पर
कोई टूटा - फूटा शीशा होता
जिस से हम अपनी तश्बीर को भी देख पाते लेकीन आज तक तो ऐसा हुआ नहीं ।
वह कुछ करनें के पहले कुछ कहता भी है
लेकीन .......
सुनता तो वह है जो उसके साथ हो , जो स्वयं को खुदा समझता हो ,
वह खुदा की आवाज को भला
कैसे सुन सकता है ?
एक घटना इस सम्बन्ध में :------
स्वामी योगानान्दजी महाराज बीसवी शताब्दी के मध्य में ठीक आजादी के बाद अमेरिका में
एक छोटा सा प्रवचन दे रहे थे । लगभग पांच मिनट बोले और चुप हो गए ,
आँखें बंद कर ली और धीरे से बोले
जैसा प्रभु हम सब से रोजाना बोलता है ........
मित्रों अब आप लोग जा सकते हैं .....
मेरे को चुप रहनें का आदेश मिल चुका है और ....
शायद कुछ घड़ी में मुझे यह स्थान छोड़ना भी है ....
इतना सा इशारा को समझनें वाले
न के बराबर थे और सब लोग उठे और चले गए ।
कहते हैं ......
स्वामीजी कई दिनों तक वैसे ही बैठे रहे प्राण रहीत स्थिति में
लेकीन देखनें से ऐसा लगता था ....
अभी बोलनें ही वाले हैं ॥
हम आप तो जबतक बच्चा रोये न तबतक उसे दूध नहीं देते फिर .......
प्रभु की आवाज को कैसे सुन सकते हैं ?
आगे फिर मिलेंगे यदि प्रभु की कृपा रही तो .......

==== कोशिश करना =====

Saturday, December 4, 2010

कौन सुनता है - इनको ?



आज - कल पंजाब और हरियाणा में एक अच्छी परम्परा प्रारम्भ हो चुकी है ।
लगभग चार बजे के बाद , गली - मोहल्ले की मध्य उम्र की औरतें एक के घर इकट्ठी होती हैं ।
सभी औरतें चन्दा इकट्ठा करके कुछ बाद्य - यंत्रों को भी खरीद रखा होता है जैसे .......
ढोल
मजीरा
हारमोनियम आदि ।
आप यदि पंजाब या हरियाणा के रहनें वाले हों
तो कभी उनके भजनों को सुनना ।
हर स्त्री के हाँथ में एक कापी होगी और समय ज्योंही आता है ,
सारा काम छोड़ कर ऐसे भागती हुयी
निर्धारित स्थान पर पहुंचना चाहती हैं जैसे उनके पीठे कोई बंदूख ले कर चोर पडा हो ।
यदि अप उनमें से किसी को जानते हों और यह कह दें .......
भाभीजी किधर को जा रही हैं ?
फिर आप उनके आव - भाव को देखना ।
उनको देखनें से ऐसा लगेगा की जैसे वे साक्षात धर्म की साकार मूरत हों
जबकी वे क्या हैं सभी
गली के लोग समझतेहैं ।
इस काम के परदे के पीछे कौन होता है ?
इस कामों का सम्बन्ध धर्म से दूर - दूर तक नहीं होता ,
यह भी एक तरिका है राजनीति को फैलानें का ।
इस काम में अग्रणी होती हैं ऎसी औरतें जिनके पति देव ........
[क] रिटायर पुलिश वाले होते हैं .....
[ख] रिटायर प्रोफ़ेसर होते हैं .....
[ग] भारतीय संस्थान के रिटायर अफसर होते हैं , आदि ।
अब लोग खाली हैं , बिचारे क्या करे ?
सभी लोग तो गीता के ऊपर लिख नहीं सकते ।
ऐसे लोग अपनी श्रीमती जी को एक मोहरे के रूप में प्रयोग करतेहैं और एकाध साल में
किसी छोटे - मोटे चुनाव में खडा हो जाते हैं या .......
किसी बड़े इलेक्सन में पैसा कमानें का काम करते हैं , अच्छा है यह ब्यापार भी ।
भारत की बिचारी महिलायें जिनमें से अधिकाँश गौमा की तरह हैं और
अपनें पति को पूर्ण समर्पित
होती हैं जिसका पूरा फायदा उनके पति देव खूब जमा कर लेते हैं ।
यह बहुत पुरानी परम्परा है ......
धर्म की चादर आगे - आगे चलती है और
उसकी आड़ में राजनीति अपना दामन फैलाती है ।
मुसलमान राजा आये उनके आगे - आगे मौलबी लोग थे ......
अंगरेज आये लेकीन उनके आगे - आगे पादरी लोगों का काफिला रहता था .....
भारतीय समाज में तो राजा को नरेश कहते ही हैं ......
आप ज़रा सोचना -----
पहले राजा कौन बनता था ? ----
वह जो महान कुकर्मी होता था ....
जो महान डाकू होता था ......
जो लोगों के अन्दर दहसत फैला कर अपनी पूजा करवाता था और ....
ऐसे खूनी ब्यक्ति को पंडित लोग जिनको आम लोग प्रभु का प्रतिनिधी समझते थे ,
नरेश की
संज्ञा दे कर स्वयं की पीठ को थोक लिया होगा ॥
समाज में रहते हो तो .......
समाज के ढाचे को देखो .....
समाज के रंग को देखो .....
समाज की दिशा को देखो ....
और उस समाज में स्वयं की ......
स्थिति को भी देखते रहो ॥

==== यही तो एकचक्र है =====

Thursday, December 2, 2010

वह दिन आ ही गया ------ ?

पूरे पचास साल लग गए लेकीन वह रहस्य आज भी बना हुआ है ।
खाली पेट किसी निर्जन सड़क के किनारे .....
एक चार - पांच साल का लड़का .....
दिसंबर की ठंढ में सिकुड़ा हुआ .....
एक छोटे से कम्बल के सहारे .....
बिना करवट बदले .....
ऐसे सो रहा था जैसे शहर का कोई सेठ हो .....
आखिर वह बच्चा क्या खोज रहा था ?

पच्चास साल के किसी के इतिहास को यदि आप पूछें तो वह क्या बताएगा ?
एक - एक पल में गुजरे पच्चास साल का समय कोई कैसे बता सकता है ?
वह जो एक - एक पल उस वक़्त में जीया हो , बतातो नहीं सकता
लेकीन यदि उसके देह को गंभीरता
के साथ देखा जाए उसके पच्चास साल के इतिहास की बहती गंगा को देखा जा सकता है ।
आज शहर के प्रतिष्ठित सेठ श्री हरिनारायांजी द्वारा निर्मित एक कालेज का मुहूर्त है ,
लोगों की भीड़ सुबह
से इक्कठी हो रही है , सेठ जी के नाम पर पूरा शहर ऐसे भाग उठता है
जैसे परमात्मा को देखनें के लिए
लोगों की भीड़ इक्कठी हो रही हो ।
सेठ हरिनारायण जी वास्तव में शहर के लिए प्रभु के सामान ही थे ;
अनेक मुफ्त इलाज के अस्पताल , अनेक
पाठशालाएं एवं अनेक अन्य सामाजिक भलाई के लिए चलाये जा रहे संस्थान थे ।
सेठ जी कालेज का मुहूर्त निकाला , दो मिनट बोले , दो बूँदें आंसू के टपकाए और चल पड़े ।
सेठजी को पत्रकार लोग आगे न चलनें दिया , एक ने पूछ ही बैठा -----
सेठजी इस कालेज का नाम है - माँ अनाथ पोस्ट ग्रेजुएट कालेज
और द्वार पर जो परदे में सिमटी
मूर्ती खडी है , जिसके सामनें आप नें मत्था टेका था , लगता है ,
वह मूर्ती भी आप की माँ की ही होगी ।
क्या इन दोनों में कोई रिश्ता है ?
सेठजी अपनें को रोक न सके और दहाड़ें मार - मार कर रो पड़े , लोगों को बड़ा अफसोश हुआ लेकीन
जब वह पत्रकार सेठजी के चरणों में गिरकर माफी मांगनें लगा तब अंशू पोछते हुए सेठजी बोले -
बेटा आज पच्चास साल बाद किसी नें इस रिश्ते के बारे में पूंछा , मैं अपनें को रोक न सका , क्या करता ?
मुझे अपनी माँ का कोई पता नहीं , वह है भी कहीं या नहीं है , तो मैं उसे पर्देमें ही बंद रखना चाहा ।
पिछले पच्चास साल में मैं उनको कभी स्वप्न में भी न देखा और कोई ऐसा जीवन का पल भी न रहा होगा
जब वे मेरे साथ न थी लेकीन साकार रूप में उनको आप ने प्रश्न पूछ कर मुझे दिखा दिया ,
मैं आप का आभारी हूँ ।
जब मैं रो रहा था तो मुझे ऐसे लगा -----
माँ मेरी आंसू पोछ रही हैं और पूछ रही हैं ----
बेटा इतनें दिनों तक तुम कहाँ और कैसे रहे ?
मेरे मित्र - पत्रकार जी !
मैं आप का आभारी हूँ , आप मेरे लिए तो प्रभु हैं , मैं आप का कैसे धन्यबाद करू ?
पच्चास साल की खोज आज पूरी हुयी और सेठ जी अपनें को अपनी माँ की गोदी में पा कर
कितनें खुश हो रहे होंगें ?

====== ऐसे भी दिन आ ही जाते हैं ? =======

Saturday, November 27, 2010

राह सही है -------

जीवन भर हम लोग सही मार्ग पर चलते हैं -
हम सब कुछ ऐसा ही समझते रहते हैं लेकीन एक दिन ......
जब गले तक डूबा अपनें को पाते हैं तब भी जेहन में यह नहीं आता की -----
हो न हो हमसे कूई गलती हो गयी हो , हाँ , इतना कहते जरुर हैं की -----
सब ठीक ही चल रहा था , लगता है , किस्मत साथ नहीं दिया ।

इंसान के लिए प्रभु बार - बार गलती करता रहता है , इंसान प्रभु को माफ़ करता चला जाता है ,
इंसान एक ऐसा प्राणी है जो कभीं गलती करता ही नहीं और दुसरे की
गलती पर उसे सजा मिलती रहती है ।
मनुष्य केवल एक अपना स्वभा को बदल दे तो वह कभी दुखी हो नहीं सकता -----
दूसरों की गलती पर स्वयं को कष्ट देनें का स्वभाव ।
हम स्वयं दुखी नहीं हैं लेकीन जब यह देखते हैं की
दूसरा ऐसा क्यों कर रहा है तब तुरंत दुखी हो उठते हैं , जब तक हम दुसरे के कर्म पर नज़र नहीं डालते ,
हम दुःख से दूर रहते हैं ।
हम दूसरों के लिए दुःख पैदा करके सोचते हैं , सुख की गंगा में नहाना और यह प्रकृति के नियम के प्रतिकूल
है । हमारा हर कदम प्रकृति की बिपरीत दिशा में उठता है पर हम यही समझते रहते हैं की हमारा
मार्ग सही है । अमावस्या की रात को दिन समझ कर जो आंखें बंद करके तेज गति से चलेगा , वह तो
कदम - कदम पर टकराता ही रहेगा ॥
ध्यान एक ऐसा मार्ग है ------
जो हमारे जीव के मार्ग को निर्विकार बनाता रहता है ।
ध्यान में गुजरे दो पल मनुष्य के अन्दर की ऊर्जा को इतना तो पवित्र करही देते हैं जिसके प्रभाव में मनुष्य का
कोई कदम गलत उठ नहीं सकता ॥

===== अगला कदम किधर और क्यों उठ रहा है ? ======

Friday, November 19, 2010

मुझे नहीं पूछना था -------



मैं बस इतना पूछा था .....
शायद आप भी भारतीय ही हैं ।
एक लगभग सत्तर - पचहत्तर साल के रहे होंगे , जिनसे मैं यह बात पूछी थी । हमारे प्रश्न के बाद तो
उनका रंग ही फीका पड़ गया , वे मुझे देखे और इशारा किया साथ में बैठनें का , मैं बैठ तो गया लेकीन
अन्दर - अन्दर से पेशान हो उठा था , लग रहा था , मुझे पूछना नहीं चाहिए था । मैं धीरे से पूछा -
माफ़ करना , मझे पूछना नहीं चाहिए था , मुझे ऐसा नहीं लगा की यह बात आप के जख्मों को
खुरेदेगी , खैर आप मुझे माफ़ करें ।
वे भरे श्वर में बोल पड़े - ऎसी कोई बात नहीं है , आप मुझे देख कर भारतीय समझ बैठे थे , लेकीन मैं तो
फीजी का रहनें वाला हूँ ।
बचपन में मेरी माई मुझे भारत - अपनें देश की कहानियाँ सुनाया करती थी की मेरा देश ऐसा है , मेरे देश
की मिटटी की अपनी खुशबू है आदि - आदि । अभी तक तो मुझे मौक़ा न मिल पाया था , भारत जानें
का लेकीन घर की जिम्मेदारियां जब समाप्त हो गयी तो पिछले साल सोचा , चलते हैं अपना देश देखनें ।
भारत में मुझे दो चीजें सर्वत्र देखनें को मिली ------
[क] पश्चिम की सभ्यता का भारतीय - सभ्यता पर चढ़ता रंग और ----
[ख] गरीबों के तन की झांकती सुखी हड्डियां ।
मैं हैरान हो उठा , यह सोच कर की मेरी मैया , मुझसे इतना बड़ा झूठ क्यों बोला था ?
कहाँ है ------
भारतीयता .......
भारत की अपनी सभ्यता ....
भारतीय लोगों का आपसी प्यार .....
भारतीय पहनावे .......
भारतीय खान - पान ......
मैं जगह - जगह मिटटी को सूंघा लेकीन कहीं भी कोई मिटटी की सुगंध न मिली ।
कहाँ है -------
भारतीय संगीत .....
भारतीय - वाद्य
भारतीय नृत्य ......
और अपने भारतीय लोग ॥
भाई ! मुझे तो कुछ भी नज़र न आया , इतना कह कर वे सज्जन रो पड़े ॥
मैं हैरान हो उठा , पहले इतना प्रेमी ब्यक्ति कभी न देखा था जो भारतीय न होते हुए भी
भारत से इतना प्यार करता हो , आखिर करता क्यों न , उसके रगों में भी तो भारतीय
खून ही बह रहा था ॥
यह बात है अफ्रिका के एक एयर पोर्ट की ॥

==== ऐसे भी लोग - प्यारे लोग होते हैं =======

Thursday, November 18, 2010

कोई तो सुनता ही होगा ----



प्रभु की आवाज को , कौन सुनता होगा ?
बेहोशी में पहुंचनें के ठीक पहले एक मरीज की कराह को , कौन सुनता होगा ?
माँ बननें जा रही बेटी की कराह को कौन सुनता होगा ?
एक भीखारी की भूख मिटानें की आवाज को कौन सुनता होगा ?
सत को कौन सुनता होगा ?

दिल की आवाज को कौन सुनता होगा ?
एक असी साल के बुजुर्ग के सीने की दर्द को कौन सुनता होगा ?
एक ऐसे इन्शान की कराह को ,
जिसकी जान मात्र पल भर की ही शायद बाक़ी हो , कौन सुनता होगा ?
जब आत्मा देह छोड़ कर सफ़र करता है तो उसकी ध्वनि को कौन सुनता होगा ?

जो इन आवाजों को सुनता होगा , वह क्या होगा ?
सोचिये और सोच के ऊपर मन ओ केन्द्रित करके ....
शांत मन वाला बन कर .....
इन आवाजों को आप भी सुनें ॥
ये आवाजें ऎसी हैं जो .....
सीधे प्रभु से जोडती हैं ॥

=== आप भी सुननें का यत्न करें और .... =====

Wednesday, November 17, 2010

ना की मायूशी

ना की मायूशी हमें हिला दिया ......
वह आखीर किस सम्बन्ध में था ?

एक दिन अकेले बैठा था , इन्तजार कर रहा था -कोई गाँव का आये और उसे दो चार मन गड़ंत बाते
बता कर अपना खून बढ़ाऊ और उसका खून घटाऊ , लेकीन कोई आ नहीं रहा था , पता नहीं, इन
लोगों को क्या हो जाता है , कभीं तो सुबह - सुबह धमक पड़ते हैं और आज दोपहर आनें को है , किसी
का अता - पता तक नहीं चल रहा ।

इस तरह की सोच अन्दर ही अन्दर फ़ैल रही थी की ऐसी बात अन्दर एक दम आयी की
चलो आईने में अपनी तस्बीर देखते हैं और उठा लिया पास में रखे आईने को ।
आइनें से एक आवाज आई - बाबूजी ज़रा ध्यान से देखना , मैं तो घबडा गया ,
आगे - पीछे देखा पर वहाँ तो कोई न था । मैं अब इस सोच में पड़ गया की -
यह आवाज आई तो आई कहाँ से ? आइना बोलता है - बाबू जी
बहुत सालों तक मैं चुप था और देखता रहा आप को लेकीन अब तो बोलना ही पड़ रहा है ।
मैं सोचा - यह करिश्मा कैसा ? क्या आइना भी बोल सकता है ? कुछ भी समझ में न आया अंततः
मैं आइनें को रख चलनें को तैयार होनें लगा की इतनें में आइना फिर बोला ......
बाबूजी आज मैं आप जैसी तस्बीर चाहेंगे वैसी तस्बीर दिखाउंगा , आप देखें तो सही ?
आइना कहता है मेरे पास आप की तीन तस्बीरें हैं ----
[क] एक वह जैसा लोग आप को समझते हैं ......
[ख] दूसरी वह जैसा आप अपनें को समझते हैं ....
[ग] तीसरी वह है जैसे आप वास्तव में प्रभु की नजर में हैं ......
मैं कुछ बोलता की मुझे उस आइनें पर क्रोध उठ खड़ा हुआ और मैं उसे तोड़ दिया और कांच के टुकड़ों से
आवाज आयी ------
बाबूजी ! आपनें अच्छा ही किया लेकीन मैं आज आप को वह तस्बीर दिखाता जैसे आप हैं पर आप उस
तस्बीर को देख न पाते क्यों की सच्चाई को कौन देख सकता है , यह कहते -कहते वह आइना रो पडा ।
मेरा बदन कापनें लगा .......
सर घूमनें लगा ......
आँखे भर आई .....
और मैं स्वयं से अनेक प्रश्न पूछा , और सब का जब जबाब मुझे ना के रूप एन मिला तो .....
मैं उस आइनें की बात को समझ लिया और .......
अब एक महल छोड़ कर एक झोपड़े में हूँ , अपनी असली तस्वीर को देखा करता हूँ , मन के आइनें में ।
गंगा के किनारे रहते - रहते मेरा पापी मन अब गंगा की तरह पवित्र हो गया है और मुझसे कहता है ----
बहुत साथ दिया तेरा , अब तूं अपनें को देख और मैं अपनें को देख रहा हूँ ।
आखिर मुझे भी तो वहां जबाब देना होगा ॥
आज मैं प्रभु का धन्यबाद करता हूँ की .......
हे प्रभु उस आईने के रूप में आप मेरे सामनें आये लेकीन मैं अपनें अहंकार के नशे में आप को समझ न पाया , आप का धन्यबाद कैसे करूँ की समय रहते आप मुझे उस मार्ग पर ला दिया जो मार्ग आपमें पहुंचता है ॥

======ॐ=====

Monday, November 15, 2010

क्या करें ------



इन्द्रियों को वर्त्तमान में रस मिलता है
और
मन को गुजरे वक़्त की घटनाओं में ॥

आँखें खोजती हैं -- रूप - रंग को
और
कान खोजता है मधुर ध्वनि को ॥

जिह्वा खोजती है स्वाद को
और
नाक खोजती है सुगंध को ॥

त्वचा खोजता है संवेदना की लहर को
और
बुद्धि खोजती है , तर्क - वितर्क के बिषय को ॥

और ------
जहां -----
इन्द्रियाँ ......
मन .......
बुद्धि .....
एक साथ बसते हैं ,
वह है -----
परमात्मा का आयाम ॥

अब आप सोचो ......
जब सभी अंग लग - अलग यात्रा पर हैं
तो फिर अपना क्या होगा ?

====== कुछ तो करना ही है =======

Saturday, November 13, 2010

जीवन में कहाँ - कहाँ रस है ?

आप भी सोचें और मैं भी सोच रहा हूँ -------
जीवन में कहाँ - कहाँ हमें रस दिखता है ?



हम जब कुछ ऐसा कर रहे होते हैं जैसा कोई और न किया हो तो उसमें रस दिखता है ॥

घर में जब कोई नया बच्चा आता है तब उसमें हमें रस दिखता है ॥

जब हमें कोई कुछ उपहार देता है तब उसमें हमें रस दिखता है ॥

जब बेटा या बेटी परीक्षा में औअल आते हैं तब उसमे रस दिखता है ॥

जब पड़ोसी का बेटा / बेटी पढाई में अपने बेटे / बेटी से पीछे रहते हैं तब उसमे रस दिखता है ॥

जब कोई गरीब मेहमान घर आये तो उसमें रस दिखता है ॥

पढ़ोसियों में जब युद्ध हो रहा हो तब उसमे रस दिखता है ॥

अब आप सोचें की हम सब की गति -----

परमात्मा की ओर है , या ----

नरक की ओर ?

हमें क्या करना है और हम क्या कर रहे हैं ,
आखिर कुछ तो समझ होनी ही चाहिए ॥

फिर मिलेंगे अगले अंक में ....

Thursday, November 11, 2010

कौन सोचता होगा ?



कर्मसे कर्म - योग ,
कर्म - योग से ज्ञान
ज्ञान से ज्ञानेश्वर
तक की यात्रा का
नाम
गीता है ॥

भोग से योग
योग से संन्यास
संन्यास में ज्ञान
ज्ञान से नारायण
तक की यात्रा का
नाम गीता है ॥

राग में ध्यान
ध्यान में वैराग्य
वैराग्य में ज्ञान
ज्ञान से ज्ञानेश
तक की यात्रा का
नाम गीता है ॥

===== ॐ ======

ऐसी स्थिति क्यों है ?



कौन सा काँटा सीनें में चुभता रहता है ?
वह कौन सी दर्द है , जो चैनसे नहीं रहनें देती ?
तन जमीं पर और मन ब्रह्माण्ड में क्यों घूमता रहता है ?
अपनों से ऎसी एलर्जी क्यों है ?
बच्चों से बूढों तक को ये आँखें क्यों नहीं देखना चाहती ?
पहाड़ों से उतरता झरना ----
कल - कल बहती ये दरियां ----
खिलता हुआ कमल ......
मुस्कुराते हुए बाग़ ......
कोयल का सुर ......
हरिराम चौरसिया की बासुणी की धुन .....
बिस्मिल्लाह खान की सहनाई की धुन .....
गोदी के बच्चे की किलकारियां ----
आखिर क्या कारण है की पल - दो पल से अधिक ये भी इन्शान को पकड़ नहीं पाते ?
आखिर मनुष्य क्यों इतना तनहा है ?
मनुष्य न जीना चाहता है , न मरना लेकीन .....
अमरत्व की दवा आखिर क्यों खोज रहा है ?
अमरत्व की दवा खोजनें वाला इन्शान जहर खा कर क्यों मर रहे हैं ?
एक नहीं ऐसे अनेक प्रश्न हम - सब के अन्दर सदैव रहते हैं , लेकीन ......
हम इनसे बचनें के लिए कहीं ठहर नहीं पाते ॥
उठा दो परदे को .....
खोल दो जख्मों को , सूखनें दो इनको .....
अपनें दिल की किताब के एक - एक अक्षर को पढो , डरो नहीं और तब .......
आप के मर्ज की दवा आप के पास दिखेगी , जिसकी तलाश में ....
आप बादशाह होते हुए भी ----
भिखारी की तरह इधर से उधर , उधर से इधर ....
चक्कर काटनें में अपनें समय को गुजार रहे हो ॥

===== सब कुछ तो अन्दर है ======

Wednesday, November 10, 2010

लौट आये ----- ?

पत्नी, पति को देख कर कहती हैं --------
क्या हुआ , रास्ते में, की आप वापिस आगये ?
सुबह चार बजे उठे , नहाया - धोया , नास्ता तक नहीं किया , कह रहे थे , ब्रह्म सरोवर में नहा कर
पूजा करनें के बात वहीं कुरुक्षेत्र में नास्ता करूंगा और अभी घंटे भर भी न हुआ की लौट आये ?
पति का मूड खराब सा दिख रहा था
और धीरे से बोले ------
एक कप चाय यदि मिल जाती तो -----
पत्नी उठी एक कप चाय बना कर ले आयी और धीरे से बोली , आखिर बात क्या थी ------ ?
पति कहते हैं - क्या बताऊ , बश मन खराब सा हो उठा और नेसनल हाई- वे से ही वापिस हो लिया ।
पत्नी पूछती हैं , अरे बात तो बताओ की मन कैसे खराब हो गया ?
पति कहने लगे .....
मेरे सामनें एक सात आठ साल के स्कूली बच्चे को एक ट्रक वाला कुचल कर भाग गया , लोग और मैं
देखते ही रह गए । यही कारण है , मन खराब होनें का ।

पति जिसको मन खराब होनें का कारण बता रहे हैं ,
उस स्थिति के बारे में सोचना ।
जारहे थे उस स्थान को देखनें जहा संसार का पहला विश्व - युद्ध लड़ा गया था और आ गए वापिस एक
मौत को देख कर । जिस को मन खराब होनें का कारण बता रहे हैं - पतीजी ,
उस स्थिति को एक बार आप भी पुनः सोचो ।
बहुत से ऐसे मौके जीवन में मिलते हैं जहां से जीवन मार्ग एक मोड़ लेता है ।
यदि यह हादसा उनके जिगर में उतर गया होता तो .......
घर आकर चाय न माँगते ,
संन्यासी बन कर कहीं भिक्षा माग रहे होते ।
जीवन मार्ग जिस घड़ी मुड़ता है , वह घड़ी या तो ......
योगी बना देती है ।
वह स्थिति जहां तन , मन और बुद्धि में बहनें वाली
ऊर्जा स्थिर हो जाती है , उस घड़ी .....
मन दर्पण पर प्रभु दिख सकता है ॥
प्रभु का दिखना अर्थात ........
संन्यास में कदम रखना ॥

भविष्य में जब भी आप के जीवन में कोई ऎसी स्थिति आये जिस से मन खराब हो रहा हो , तो आप
वापिस घर आ कर चाय न पीना , जाना कुरुक्षेत्र जैसी जगह में और उस घाव को तब तक
हरा करते रहना जब तक प्रभु का दर्शन न हो जाए ॥

कुछ देखो और कुछ समझो

Tuesday, November 9, 2010

रहस्य और दर्शन

पाइथागोरस की प्रमेय है :------
ऐसा त्रिभुज जिसका एक कोण नब्बे अंश का हो , उसके कर्ण का यदि आप बर्ग करदे
जैसे यदि पांच इंच हो तो पांच का बर्ग होगा 5x5=25 , तो यह रकम शेष दो भुजाओं के
बर्ग के योग के बराबर होगी ॥
उदाहरण लेते हैं -----
जैसे एक ऐसा त्रिभुज है जिसका एक कोण नब्बे अंश का है , आधार चार इंच का है ,
दूसरी भुजा तीन इंच की है
तो -- तीन का बर्ग + चार का बर्ग और इस रकम का बर्गमूल जो होगा वह होगा
कर्ण की लम्बाई ।

यह प्रमेय वैदिक गणित में आठ सौ साल इशा पूर्व में दी जा चुकी है
और इस प्रमेय की आधार पर
मिस्र [ इजिप्त ] की सारी पिरामिडों की बनावटे आधारित हैं ।

हम चर्चा कर रहे हैं रहस्य और दर्शन के ऊपर , रहस्य वह है जिसको ब्यक्त किया ही नहीं जा सकता और
जो लोग इस असंभव को संभव बनाना चाहते हैं , उनको कहते हैं - दार्शनिक । रहस्य को जो देखता हुआ
चुप रह जाता है , वह है मिस्टिक , और जब वह अपनें नजदीक रहनें वालों को कुछ - कुछ बातें
बताता है तब उनमें से कुछ जो बुद्धि आधारित होते हैं , वे बिना अनुभव के रहस्य को शब्दों में बाधते है ।
जो लोग ऐसा करते हैं , उनको दार्शनिक कहते हैं ॥
मैं बहुत पहले लिखा था -------
जो बिना अनुभव गाता है , यह समझ कर की वह गा रहा है तो वह होता है - कबी
और जो जिसमें जीता है और उसको गाता है , वह है - ऋषि ॥

पाइथागोरस के ही समय [ लगभग ] भारत में महाबीर थे और बुद्ध , जो सत्य में जी रहे थे लेकीन कभी
गणित के बारे में सोचा भी नहीं क्योंकि
वे प्रकृति - पुरुष के द्रष्टा थे
और देखनें में उनको परम आनंद
मिलता था ।
आइन्स्टाइन का सापेक्ष - सिद्धांत बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गणित - रूप में आया लेकीन
महाबीर का सापेक्ष - सिद्धांत छब्बीस सौ साल पुराना है और उसको आज जाननें वाले शायद हो भी न ॥

===== जीवो मेरे प्यारों , अलमस्ती में जीवो =====

Monday, November 8, 2010

कितनें मौके आ रहे हैं ..........

हिन्दू परम्परा में कितनें मौके हैं , आगे सरकने के लेकीन ......
हम पहाड़ की भाँती एक जगह स्थिर हो चुके हैं , कुछ ऐसा दिखता है ॥

** अभी - अभी हमनें देखा गणेश पूजा ----
मिटटी से गणेश की प्रतिमा मन के आधार पर रची , उसे कुछ दिन घर में रख कर पूजी और एक दिन
उस प्रतिमा को पानी में प्रवाह कर दी , आखिर यह है क्या ?
पश्चिम के लोग कहेंगे , यह पागलपन है लेकीन यह साधाना की एक सीढ़ी है जो बहुत मजबूत है ।
प्रतिमा को बनाना , मन की साधना है ......
प्रतिमा प्रतिमा का नियमित पूजा करना , साकार साधना है .....
प्रतिमा का एक दिन विसर्जन कर देना है ------
साकार से निराकार में प्रवेश करना ॥
सीधे निराकार में कोई कैसे प्रवेश पा सकता है , ऐसे लोग शदियों बात अवतरित होते हैं जो जन्म से
निराकार में होते है ॥
** दीपावली आयी , चारों ओर रंग - बिरंगी रोशनिया देखनें को मिली ,
खूब खाया - पीया और ....
मौज उड़ाया और अब वह दिन भी गुजर गया लेकीन
क्या हम कुछ करवटें बदले ? जी नहीं वहीं के वहीं हैं ।

** अब आ रही है कार्तिक पूर्णिमा जिसको गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं ,
यह वह दिन है जिस दिन बुद्ध को
निर्वाण मिला था और धर्म शात्र कहते हैं .....
इस दिन चाँद से अमृत टपकता है ॥

क्या इस दिन को भी वैसे ही जानें देना है ?
तड़प तो हर इन्शान को है , सब पूर्ण से जुड़ना चाहते हैं क्योंकि हम सब में उसका अंश है ,
हम सब उसके ही अंश हैं , हम ऐसे हैं इस संसार में .......
जैसे मेले में कोई लड़का अपनें पिता की उंगली छूट जानें से कहीं गूम हो गया हो और उनको खोज रहा हो ।
ऐसा बच्चा घडी भर के लिए तो कहीं चुप हो जाता है लेकीन उसके अन्दर खोज की ऊर्जा बवंडर की
तरह चलती ही रहती है और जब -----
वह अपनें पिता को पा जाता है तब उसकी खुशी को देखना , यह वह खुशी है .....
जिसको परमानंद कहते हैं ॥

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सबसे अधिक लोग .....
निर्वाण प्राप्त करते हैं -----
सबसे अधिक लोग पागल भी होते हैं ------
पागल होनेंवालों में ......
स्त्रियों की संख्या कम और पुरुषों की संख्या अधिक होती है ॥

कार्तिक पूर्णिमा की रात चाँद की रोशनी ....
किसी को पागल बनाती है तो
किसी को निर्वाण में पहुंचाती है .....
आप क्या चाहते हैं ?

==== आओ चलें अब उस पार =====