Monday, July 21, 2014

बुद्धम् शरणम् गच्छामि

<> सिद्धार्थ गौतम बुद्ध <>
 ** बुद्धके सम्बन्ध में कुछ बातें **
 1- बुद्ध का ब्याह यशोधराके साथ 16 साल की उम्र में हुआ । 2- ब्याहके 13 साल बाद राहुलका जन्म हुआ ।
 3- घर त्यागके 5 साल बाद 35 साल की उम्रमें बोधगया में 49 दिन तक निर्जला ध्यान में डूब जानें पर बुद्धत्वकी प्राप्ति हुयी । 4- बुद्ध महल त्याग कर जब सत्य की खोज में राजागृह ( नालंदा के पास ) पहुँचे तब उनके साथ पांच और लोग उनसे जुड़ गए थे जिनमें वह वेदांती भी था जिसनें बुद्धके जन्मके समय स्पष्ट रूप से कहा था कि यह बुद्ध है और बुद्ध रहेगा , सम्राट नहीं बन सकता । 5- बुद्धत्व प्राप्ति के सात साल बाद बुद्ध कपिलवस्तु गए और बस्ती से बाहर एक बाग़ में अपनें कुछ भिक्षुओंके साथ रुके । यशोधरा बद्ध से मिली और पूछा , " क्या आप यह बताएँगे कि जिसकी प्राप्ति आपको घर - परिवार त्याग से मिली , क्या उसकी प्राप्ति यहाँ महल में रह कर नहीं की जा सकती थी ?"। रविन्द्रनाथ टैगोर जी इस सम्वन्ध में रचित कविता कहती है कि बुद्ध कुछ बोले नहीं , उनका मौन ही जबाब था । 
6- यशोधरा अपनें पुत्र राहुल को भेजा , पिता से मिलनें हेतु और राहुल जब बुद्ध की छाया में पहुँचे तब तन - मन दोनों बुद्ध को अर्पित हो गए और फिर लौट कर राज महल न आसके । 
<> वे जो जागने केलिए करवटें बदल रहे होते हैं , जब बुद्धके उर्जा क्षेत्र में पहुँचते हैं तब वे स्वतः बुद्ध में समा जाते हैं , उनके लिए उनका कोई अस्तित्व नहीं रह जाता और इस घटना को ही 
कहते हैं - 
" बुद्धम् शरणम् गच्छामि " । 
~~ ॐ ~~

Saturday, July 19, 2014

मैं और तूँ

● मैं एक माध्यम है तूँ को समझनें केलिए ।
मैं का अर्थ है अहंकार । भागवत में यदि आप मैत्रेय ,नारद , प्रभु कृष्ण और प्रभु कपिल जी के
तत्त्व - रहस्य को गंभीरता से देखें तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की ब्यक्त सूचनायें तीन प्रकारके अहंकारों से हैं । गुण आधारित सात्त्विक ,राजस और तामस ये हैं तीन अहंकार , जिनकी उत्पति महतत्त्वसे काल के प्रभाव में होती है ।
● मैं को कोई समझना नहीं चाहता और तूँ को समझनें में सारा जीवन गुजर जाता है पर सच्चाई यो यह है की जबतक मैं की गहरी परख नहीं हो जाती ,तूँ की परख करनी संभव नहीं ।
● अपनीं गलतियों को दूसरों से सुननें पर सारी उर्जा क्रोध में रूपांतरित हो उठती है और यदि अपनीं गलतियों को हम अकेले में प्रभुको साक्षी मानकर देखनें का अभ्यास करे तो यह होता है ,
अभ्यास -योग तो मैं के प्रति होश उठा कर परममें पहुँचाता है ,पर करनें की कोशिश करनें वाले
दुर्लभ हैं ।
** आज इतना ही **
~ हरि ॐ ~~

Friday, July 11, 2014

अपनें को पढ़ लो

** जीवन का हर पल किताब के पन्ने जैसा है जो स्वतः उलटता जा रहा है । जो इन पन्नों को होश में रहते हुये पढनें में सफल है , वह जीवनके परम रस से दूर नहीं और जो इन पन्नो को ठीक - ठीक पढनें में सफल नहीं ,वह जीवन का लुत्फ़ नहीं उठा पाता ।
** हिन्दू दर्शन में देह को जीव आत्मा का नौ द्वारों वाला महल कहा गया है और जब जीवात्मा इस महल को छोड़ कर चला जाता है तब लोग इस महल को जला देते हैं , देर नहीं करते , क्यों ? क्योंकि इस गिरे हुए महल में उनका अओअन महल दिखने लगता है । यदि देर तक किसी लाश को देखा जाए तो वैराग्य होना दूर नहीं । बुद्ध अपनें भिक्षुकों को प्रारम्भ में छः माह तक श्मसान में ध्यान कराते थे ।
** पशु जब तक अपनें बच्चों को पूर्ण स्वावलम्बी नहीं बना देते तबतक पुनः बच्चे पैदा नहीं करते लेकिन मनुष्य क्या कर रहा है ?
** मनुष्य के पास तरह - तरह के फंदे हैं , वह हर पल फंदों का निर्माण कर रहा है । मनुष्य निर्मित फंदे मनुष्य को बाधते चले जा रहे हैं और जब ये फंदे गले को बाधने लगते हैं तब वह ब्याकुल स्थिति में दम तोड़ देता है पर उस समय भी उसे स्वनिर्मित फंदों के राज का पता नहीं चल पाता ।
** क्या हो रहा है , इस स्वके संसार में ? अपना बनाते - बनाते जीवन सरक गया और अंत समय जब नज़दीक आया तो सभीं जिनको हम अपना बनानें में जीवन गुजार दिए , वे झट से पराये बन जाते है और मूह फेर लेते हैं ।
~~ रे मन कहीं और चल ~~

Thursday, July 10, 2014

कहाँ से कहाँ तक

1- तुम हाँ - ना पर टिकते हो वह भी पल भर के लिए , फिर जब टिकने की आदत ही नहीं ,उस परम असीम पर कैसे टिकोगे ? वह तो हाँ और ना के मध्य है जिसे न हाँ कह सकते न ना और हाँ - ना को नकार भी नहीं सकते , काम है , कठिन , पर करना तो पड़ेगा ही , चाहे कितनें और जन्म लेनें पड़े ।
2- मनुष्य योनि में ऐसा कोई न होगा जिसे कभीं उसका सन्देश किसी न किसी रूप में न मिलता हो लेकिन मायासे सम्मोहित मनुष्य उस परम - सन्देश की अनदेखी करता रहता है ।
3- कल दादा जी गए , वह भी देखा , आज अम्मा जी गयी वह भी देख रहा हूँ और कल हमारी भी बारी है जिसे हम न देख पायेंगे , वे देखेंगे जिनको अगले समय में जाना है , यह आवागमनका चक्र ही तो माया का विलास है ।
4- बहुत से लोग आते हैं गीता सुननें पर उनका मकसद सुनना नहीं होता ,सुनाना होता है , समय गुजारना होता है । प्रवचन सुननें के बाद भीड़ जब जानें लगती है तब उन लोगों के पीछे लग कर उनकी बातों को सुनना ; कोई कहता है , संतजी बहुत बढियाँ बोलते हैं , कोई कहता है ,क्या ख़ाक बोलये हैं ,इससे अच्छा तो वे बोलते थे जो इनसे पहले आये थे ,वे तो मेरे घर भी गए थे ।हम स्वयं को जगत गुरु समझते हैं और शंकराचार्य जैसे संतों की लम्बाई ,चौड़ाई और गहराई मापते रहते हैं । अब जरा सोचना ,ऐसी जब हमारी मानसिकता है तब हम क्या ख़ाक बदलेंगे और बिना बदले कुछ होनें वाला नहीं चाहे जो कर लो । 5- परमात्मा है या नहीं हैं - यह भ्रम लोगों को न मनुष्य की तरह रख पा रहा न जानवर की तरह और मनुष्य सम्पूर्ण जीवों का सम्राट होते हुए भी एक लाचार सा जीवन गुजार रहा है । मनुष्य बिचारा ,न भोग में रुक पाता है न योग में ; जब भोगमें उतरता है तब उसे योग खीचता है और जब योग में उतरता है तब भोग उसे सम्मोहित करता है ,मनुष्य भोग - योग के मध्य पेंडुलम सा लटक रहा है ।
6- सृष्टि से पहले और प्रलयके बाद , Big bang से पहले और ,Big crunch के बाद इन दोनों का द्रष्टा रूप में कौन होता है ?
7- Lao Tzu और शांडिल्य कहते हैं , " ब्यक्त करनें पर सत्य असत्य बन जाता है " और जे कृष्ण मूर्ति कहते हैं ," Truth is pathless journey" और हम परमात्मा की लम्बाई , चौड़ाई और ऊँचाई मापना चाहते हैं और दो कौड़ी के चार सड़े बतासे को उन्हें दिखा कर प्रसन्न करना चाहते हैं जिससे हमें भोग के वे साधन उपलब्ध हो जाएँ जो हमारे पास अभीं तक नहीं हैं ।परमात्मा क्या हमारे अन्तः करण को नहीं देखता होगा ? मनुष्य औरों को धोखा देते -देते इतना मज जाता है की बाद में अपनें को भी धोखा फेने लगता है और जब अपनें को धोखा दे दे पर मार चुका होता है तब पहुँचता है मंदिर ,वहाँ परमात्मा को लालच दिखा दिखा कर धोखा देता रहता है और एक दिन ----
8- न इधर का हो पाता है न उधर का और मनुष्य योनि से पहुँच जाता है पशु योनि में ।
9- आये तो थे प्रभु में बसेरा बनानें पर संसार में ब्याप्त माया निर्मित भोग का ऐसा सम्मोहन छाया कि भूल गए अपनें मूलको और पहुँच गए कहाँ ?
10- मनुष्य मात्र एक जीव है जिसके अन्दर किसी न किसी रूप में परमात्मा की सोच का बीज होता है। बीसवीं शताब्दी के महान मनोवैज्ञानिक सी . जी . जुंग कहते हैं , 40 साल की उम्र के ऊपर वाले लोगों में ऐसे को खोजना कठिन काम है जिसके दिमाक में प्रभु की सोच किसी न किसी रूप में न हो ।
~~ ॐ ~~

Monday, July 7, 2014

सुना और खूब सुना

● सुना और खूब सुना ●
1- जब परिवार में लोग इकठ्ठा होते हैं और जब कार्यक्रम समाप्त होने पर लोग अपनें -अपनें स्थानको वापिस चले जाते हैं तब जो वहाँ रहते हैं उनको सूना लगता है ।
2- जब कोई परिवार का सदस्य घर से दूर जाता है तब उसके जानें के बाद घर में सूना - सूना लगता
है ।
3- जब कोइ परिवार का सदस्य नाराज होकर घर छोड़ कर चला जाता है तब बहुत सूना लगता है ।
4- अकेलापनमें दो दरवाजे हैं ; एक पागलपन में खुलता है और दुसरा परममें ।
5- जीवन को क्या समझोगे वह तो बहती दरिया जैसा है बेहतर होगा तुम अपनी उर्जा स्वयं को समझनें में लगाओ ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, July 5, 2014

भारत की आबादी भाग - 1

● भारत की आबादी भाग - 1● 
<> कैसा कौन सा वैज्ञानिक कारण हो सकता है कि भारत आबादी की दृष्टि से सदैव सर्पोपरि रहा है। आइये चलते हैं श्रीमद्भागवत पुराण में और देखते हैं कि उस समय भारतमें आबादी की क्या स्थिति रही होगी ?
 1-भागवत :10.50> जरासंध नालंदा बिहार से मथुरा पर श्री कृष्ण से युद्ध करनें हेतु 18बार आक्रमण किया । हर बार उसके पास 23 अक्षौहिणी सेना होती थी और सारी सेना मारी जाती
 थी । 18 बार में जरासंधके कुल 90,541,800 सैनिक मारे गए । अब आप इस गणित के बारे में सोचें । 
2-भागवत :10.50 > मलेक्ष राज कालयबन 03 करोड़ मलेक्षों की सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण किया था और सारी सेना मारी गयी थी ।यह बात इस समय की है जब 18वीं बार जरासंध अपनें 5,030,100 सैनिकों के साथ चढ़ाई किया था अर्थात एक समय में मथुरा में माते गए सैनकों की संख्या हुयी 3 करोड़ 50 लाख 30 हजार एक सौ। इतनी मौतें एक साथ एक शहर में !
 3-भागवत :9.30> शशि बिंदु की रानियों की संख्या थी 10,000। हर रानीसे पुत्र थे 100,000 अर्थात कुल पुत्रों की संख्या हुयी one billion ( एक अरब ) ।एक राजा के पुत्र जन एक अरब हैं तो पूरे भारत की आबादी जी क्या स्थिति रही होगी ? 
4- भागवत : 9.8> सम्राट सगर के 60,000 पुत्र गंगा सागर पर कपिल मुनि के तेज से भष्म हुये थे , एक ही समय ।
 5-भागवत :10.90 > सम्राट उग्रसेन के पास एक नील सेना थी और फ्वारका के आस पास की टापुओं पर रहती थी । द्वारका जा क्षेत्रफल था 45 वर्ग मील । (10,000,000,000,000) <> देखा आपनें ! अगले अंक में कुछ और ऐसे उदाहरण आप देख सकते हैं ।
 ~~हरे मुरारी ~~

Tuesday, July 1, 2014

● क्या खोया ? - भाग - 1●

* बड़े प्यारे लोग थे पर उनको लोगों की नज़र लग गयी थी ।एक दिन लगभग 35 साल के बाद मुझे उनसे मिलना हुआ ,मैं हैरान हो गया ,उनको देख
कर ।
* थे तो गरीब ही लेकिन उनके बड़े भाई उनके लिए पिता तुल्य थे , उनको पढानें में कोई कसर न छोड़ी थी । उस जबानें में इंजीनियरिंग के स्नातक हुए जबकि दूर -दूर तक ऐसे लोग दुर्लभ हुआ करते थे।
* मैं उनको करीब से जानता हूँ लेकिन इधर बहुत दिनों से उनकी स्मृति कुछ धुधली सी जरुर हो गयी थी ।मैं उनको जानता हूँ तबसे जब वे केंद्र सरकार में कार्य रत थे ,जब वे विश्व विद्यालय में सहायक प्राध्यापक थे , जब वे किसी लिमिटेड कंपनी में सिनिअर ऑफिसर थे और जब वे विदेश यात्रा की थी लेकिन यह सब देखनें के बाद आज जब मैं उनसे मिला तो दंग रह गया ,उनको देख कर ।
* बाहर -बाहर से देखनें में उनका रंग तो बहुत लुभावनासा दिखता है पर वे अन्दर से अब एक कब्रिस्तान बन चुके हैं ,मुझे तो उनके साथ कुछ दिन रहनें से ऐसा ही दिखा ।
* दो बेटे हैं ,प्यारे हैं ,एक प्रथम पांच iit मेसे एक का विद्यार्थी रह चूका है और दूसरा देश के कुछ प्रमुख nit में से एक के शिक्षा लिया हुआ है । दोनों बेटो का कद अब इतना उचा हो चूका है की उनकी लम्बाई देखते बनती है । दोनों बेटे उनसे प्यार करते हैं लेकिन कुछ तो है जो उनको कब्रिस्तान बना रहा है। * आखिरी दिन आ गया , मैं उनसे बिदा होनें जा रहा था ,वे अन्दर घर में गए हुए थे , बोल गए थे कि जरा रुकना ,चले न जाना । मैं घर के बाहर उनके आनें का इन्तजार कर रहा था । वे आये , गले मिले ,और उनका गला भरा था ,अन्दर आंसू की धरा बह रही थी लेकिन बाहर बाहर से सामान्य दिख रहे थे ।
*जब मैं चलनें लगा ,मुझे कपडे में लिपटी कोई चीज दी और बोले , तुम तो उनसे बहुत प्यार करते थे पर हिम्मत न जुटा पाए ,उनके बारे में पूछनें को , इतना कह कर हस पड़े और बोले , अच्छे जा फिर मिलेंगे। * जब मैं कपडे को खोला तो दंग रह गया ,उस वस्तु को देख कर जो उस कपडे में लपेट के वे मुझे दिए
थे । वह फोटो थी ,उनकी पत्नी की ,उस समय की जब उनका बड़ा बेटा रहा होगा 2-3 साल का जो आज 35 साल का है ।
* वे मेरे कंधो पर अपना हाँथ रखे और धीरे से भरे हुए गले से बोले , अगर खुदा ने इजाजत दी और हम फिर कभीं मिले तो मैं इनके बारे में भी बताऊंगा , जो तुम पूछ न पाये । वे अब भी हैं ,न दूर हैं न नज़दीक लेकिन हैं , इतना कह कर आंसू पोछते हुए घर के अन्दर चले गए और दरवाजा बंद कर ली ।
* आप सोच सकते हैं कि मेरे पर क्या बीती होगी और उन पर क्या बीत रही थी ,यह तो आप समझ ही सकते है लेकिन इतना जरुर मैं कह सकता हूँ कि उनको लोगों की नज़र लग गयी थी ।। क्या खोया ? इस श्रृखला के अगले अंक में कुछ और दृष्यों को देखेंगे ।
* यह एक सत्य कहानी है *
~~ हरे हरे ~~