** जीवन का हर पल किताब के पन्ने जैसा है जो स्वतः उलटता जा रहा है । जो इन पन्नों को होश में रहते हुये पढनें में सफल है , वह जीवनके परम रस से दूर नहीं और जो इन पन्नो को ठीक - ठीक पढनें में सफल नहीं ,वह जीवन का लुत्फ़ नहीं उठा पाता ।
** हिन्दू दर्शन में देह को जीव आत्मा का नौ द्वारों वाला महल कहा गया है और जब जीवात्मा इस महल को छोड़ कर चला जाता है तब लोग इस महल को जला देते हैं , देर नहीं करते , क्यों ? क्योंकि इस गिरे हुए महल में उनका अओअन महल दिखने लगता है । यदि देर तक किसी लाश को देखा जाए तो वैराग्य होना दूर नहीं । बुद्ध अपनें भिक्षुकों को प्रारम्भ में छः माह तक श्मसान में ध्यान कराते थे ।
** पशु जब तक अपनें बच्चों को पूर्ण स्वावलम्बी नहीं बना देते तबतक पुनः बच्चे पैदा नहीं करते लेकिन मनुष्य क्या कर रहा है ?
** मनुष्य के पास तरह - तरह के फंदे हैं , वह हर पल फंदों का निर्माण कर रहा है । मनुष्य निर्मित फंदे मनुष्य को बाधते चले जा रहे हैं और जब ये फंदे गले को बाधने लगते हैं तब वह ब्याकुल स्थिति में दम तोड़ देता है पर उस समय भी उसे स्वनिर्मित फंदों के राज का पता नहीं चल पाता ।
** क्या हो रहा है , इस स्वके संसार में ? अपना बनाते - बनाते जीवन सरक गया और अंत समय जब नज़दीक आया तो सभीं जिनको हम अपना बनानें में जीवन गुजार दिए , वे झट से पराये बन जाते है और मूह फेर लेते हैं ।
~~ रे मन कहीं और चल ~~
Friday, July 11, 2014
अपनें को पढ़ लो
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