* मौनका आकर्षण अतुल्य है
* मौनका आकर्षण ध्यानकी गहराई के साथ सघन होता चला जाता है ।
* ध्यानकी गहराई के प्रवेश द्वार पर पहले जो प्रसाद मिलता है यह है मौन ।
* मौन जब पकता है तब वह ध्यानीको द्रष्टा - साक्षी बना देता है ।
* मौन सत्यका बसेरा है ।
* मौन घटित होनें पर अंतः करण निर्विकार अवस्था में शुद्ध हीरे की तरह विकिरण द्वारा जो किरणें फैलाता रहता है , वे किरणें चरों तरफ एक परम ऊर्जा का क्षेत्र निर्मित करती हैं । वह जो जगना चाह रहा होता है , वह इस ऊर्जा क्षेत्र से आकर्षित होता चला जाता है । उसका यह आकर्षण उसे मौनी बना देता है ।
~~~ ॐ ~~~
Wednesday, June 17, 2015
कतरन - 16
Friday, June 5, 2015
कतरन - 15 जन्म से जो कर्म ...
1 - जन्मसे जो कर्म मिला है वह तो परिवर्तनीय है लेकिन कर्म से जो जन्म मिला है उसे तो जीना ही
पडेगा ।
2 - जो जहाँ से आता है उसे देर - सबेर वहीँ लौटना ही पड़ता है । उस स्थानको गीत : 2.28 अब्यक्तकी संज्ञा देता है ।
3 - हमसब का वर्तमान एक यात्रा है पर ऐसी सोच रखता कौन है ? जो ऐसी सोच से तृप्त है , वह है ,
बैरागी ।
4 - जो मजा रिश्ता बनानें में मिलता है वह मजा रिश्ता बना कर जीनें में नहीं रह पाता लेकिन ऐसी बात उनसे सम्बंधित है जो बासनाके सम्मोहन में रिश्ते जोड़नें में जल्दी करते हैं । भक्त और मालिक का आपसी संबंध जिसे रिश्ता तो नहीं कहा जा सकता , तबतक बना रहता है जबतक दोनों आमनें - सामनें होते हैं लेकिन वह वक़्त भी आ ही जाता है जब भक्त अपनें मालिक में समा जाता है ।
5 - दूसरे के जीवन पर अपनीं आँख न गड़ाओ , तुझे जो मिला है , इसका मज़ा लो ।
~~~ ॐ ~~~