Wednesday, March 18, 2015

कतरन - 10

* अपना -अपना करते -करते हम स्वयं, अपनों के मध्य पराये बन जाते हैं और जब सत्यका आभाष होता है तबतक़ बहुत देर हो चुकी होती है । 
* परायेको अपना और अपनेंको पराया बनानें की सोचमें जीवन सिमट कर रह जाता है और संसारकी हवा उस तरफ रुख भी नहीं होनें देती जहाँ न कोई अपना है न पराया । 
* जिस पल अपनें और परायेकी सोच बुद्धिसे निकल जाती 
है ,मनुष्य बेचैन हो उठता है। 
* वही बेचैनी होती है समत्व योगसे निर्विकार हुयी हमारी आँखेंमें ।
 * इन आँखों से टपकती रहती हैं ,  आँसूकी बूँदें जो एक तरफ परमसे जुडी रहती हैं और दूसरी तरफ पृथ्वी पर स्थित भोग तत्त्वोंको सूचित करती रहती हैं कि आ ! और देख उसे, जिससे तुम , हम और संसारका अन्य दृश्य वर्ग है । 
●~~~ ॐ ~~~●

Saturday, March 14, 2015

कतरन - 9

सोच - सोच कर ----
* सोच - सोच कर जब बुद्धि - मन उपराम की स्थिति में आते हैं तब उसकी मामूली सी झलक मिलती है ।
* उसकी परीक्षा में कोई - कोई और कभीं - कभीं औअल आता है ज्यादातर लोग असफल ही होते हैं पर कुछेक कक्षोन्नति दर्जे में सफल होनें में कामयाब हो पाते हैं ।
* उसकी परीक्षा ऐसी होती है जिसकी कोई पूर्व सूचना नहीं होती और ज्यादातर लोग बिना तैयारी इम्तहान देते हैं तथा इम्तहानके बाद भी बहुत कमको यह पता चलता है कि उसका इम्तहान हो चूका है ।
* यात्राका मज़ा तब मिलता है जब तन यात्रा पर हो और मन शांत हो कर यात्राका द्रष्टा बन गया हो ।
* संसारमें भोगकी यात्रा सुख - दुःखकी यात्रा है और इन दो तत्त्वोंके मध्यसे जो समभावकी यात्रा है ,वह है परमकी यात्रा ।
●~~~ ॐ ~~~●

Saturday, March 7, 2015

कतरन - 8

* मुझे 16 सालसे अधिक यह समझनें और महसूश करनें में लगे कि खूनके रिश्ते रेशमके धागे जैसे मजबूत और सूक्ष्म बंधन हैं जो ध्यानकी गहराई में उतरनें नहीं देते ।
* जब सोचता हूँ कि बुद्ध आधी रातको पत्नीके प्रसव वेदनाकी चीख सुन कर और नवजात पुत्रकी पहली आवाज सुनकर कैसे वैराज्ञ में उतरे होंगे ? तब मुझे कुछ - कुछ ऐसा लगनें लगता है कि उस समय वे अपनें जन्मकी स्मृति में पहुँच गए होंगे जहाँ एक जंगल में उनकी माँ प्रसव वेदना में चीख रहे होंगी और प्रसवके बाद शिशु रूपमें बुद्ध रो रहे होंगे ।बुद्ध बाद में आलय विज्ञानकी खोज की जिसे महावीर जाति स्मरण नाम दिया था ।यह विज्ञान एक ध्यानकी विधि है जिसमें अपनीं चेतनाको अपनें पिछले जन्मों तक के अनुभवों में पहुँचाया जाता है ।वर्तमान जीवनके अनुभव से गर्भके अनुभव तक और गर्भके अनुभवसे गर्भमें आनेंके अनुभव तक और इस प्रकार अपनें पिछले जन्मोंनके जीवनोंके अनुभवोंमें पहुँचना ही आलय विज्ञान है ।बुद्ध का बेटा 16 साल इंतजारके बाद पैदा हुआ , ऐसी परिस्थिति में बुद्धको उसका जन्म रेशम के सूक्ष्म धागे जैसे स्नेहके बंधनसे बध जाना था लेकिन हुआ उल्टा , वे बंधन मुक्त होकर वैराग्य में पहुँच गए ।
* वक़्त या काल की अपनीं नज़ाकत है ; एक तरफ ख़ुशीके लड्डू रख देता है और दूसरी तरह दिलको गमकी आँसू से भर देता है ,ऐसी स्थिति में जो होता है , वह क्या करे ?
* आये दिन शुभ कामनाएं मिलती रहती हैं जैसे होली ,दशहरा , दीपावली , शिव रात्रि ,बसंत पंचमी ,गुरु पर्व , ईद , बड़ा दिन आदि -आदि । आखिर इतनी सारी शुभ कामनाएं जाती कहाँ हैं , हम तो दिन प्रति दिन घटते ही जा रहे हैं ?
* भारत दुनिया भरके पर्वोंको मनाता है ,जितनें पर्व भारत में मनाये जाए हैं उतनें पर्व संभवतः पृथ्वीके किसी और भागमें नहीं मनाये जाते होंगे लेकिन इन पर्वोंका लोगोंके दिल पर कोई असर नहीं दिखता ।
* पर्वों का मनाना ध्यानका एक माध्यम हुआ करता था पर अब क्षणिक मनोरंजनका साधन बन कर सिकुड़ सा गया है ।
●~~~ ॐ ~~~●

Wednesday, March 4, 2015

कतरन - 07

* मनुष्यके अन्दर दो ऐसे स्पेस हैं जहां भाव पैदा होते रहते हैं - मन और हृदय ।
* मनके भावको जो भाषा में ढ़ालनेका यत्न करते हैं ,कवि बन कर रह जाते हैं
> और <
* जो हृदयके भावोंकी धारामें बहनेंका अभ्यास कर लेते हैं , वे नानक -मीरा जैसे भक्त बन कर एक दिन बहते - बहते परम सागरमें पहुँच कर स्वयं परम सागर बन जाते हैं ।
●~~~ ॐ ~~~~●

Monday, March 2, 2015

कतरन - 6

मर्म और मलहम 
 <> क्या रिश्ता है , इन दोनों में ? 
* वह जो मर्मको समझता है , वहीं सही मलहम लगानेंकी तकनीकको समझ सकता है । 
* जितनें मरहम लगानें वाले आपको मिलेंगे , उनमें शायद ही कोई ऐसा मिले जो अपनें दिल से चोट की गाम्भीरताको पकड़नेकी कोशिश भी करता हो , वरना तो , चोट पर मिर्च छिड़कनेंके बहानें ही लोग मरहमकी डिब्बी लेकर आपके पास आते हैं । 
* चोटकी गंभीरताको दिल से समझना , और आँखें बंद करके दिलसे उस चोटको सहलाना, मरहम लगानेंसे उत्तम परिणाम देता है । 
* वह जो मर्मको समझता है , उसे भौतिक मरहम की कोई जरुरत नहीं । 
* चोटकी गंभीरताको देखते ही हृदय से उपजे और आँखोंसे टपके दो बूँद आँसू , परम मरहम का काम करते हैं । 
~~~ ॐ ~~~