Monday, June 30, 2014

कैसा रहा यह सफ़र

# कभीं - कभीं ऐसा लगनें लगता है कि अब हम जिन्दा क्यों हैं ? और जो अभीं - अभीं इस संसार से जा रहे होते हैं , उनके न होनें पर दुख भी हो रहा होता है , आखिर ऐसा क्यों ? यह इसलिए हो रहा होता है कि हम जहाँ हैं इसके विपरीत हमारी दृष्टि जम जाती है , इस उम्मीदसे कि हो न हो वह ठीक हो । द्वैत्यकी उर्जा में लिपटा यह मनुष्य अपनें को एक पेंडुलम जैसा बना रखा है पर पेंडुलम से कुछ सीखता नहीं क्योंकि पेंडुलमके गतिका प्रारंभ और अंत जहाँ है वहाँ जो है वह समभाव है और समभाव में स्थित ब्यक्ति स्थिर प्रज्ञ होता है जिसकी आँखें प्रभुके प्यार से भरी होती
हैं ।
# जवानी में कदम रखते ही एक उबाल उठनें लगता है , कोई ऐसा ब्यक्ति जो अभीं - अभीं जवानी में कदम रखा हो और वह अपनें को दुनिया का सम्राट न समझता हो , ऐसा संभव नहीं लेकिन जवानी में देखे गए सारे सपनें एक - एक करके टूटते जाते हैं और वह ब्यक्ति जो आज लगभग 60 साल का हो चूका होता है , अपनें इस जीवनका एक अज्ञान द्रष्टा बना रह जाता है ।
# जो मिला है एक दिन उसे खोना होगा और मनुष्य पाना तो सारा संसार चाहता है पर खोना एक कौड़ी भी नहीं चाहता जो सम्भव नहीं । # एक बह रही दरिया में उसकी धारा के विपरीत जो बहना चाहेगा उसे दर्द तो होगा ही । हम प्रकृतिके विपरीत चलना चाहते हैं और यह हमारी चाह हमसे सुख छीन लेती है और हम कहीं एक कोने में बैठ कर किस्मत का इन्तजार कर रहे होते हैं ।क्या होगा इस रोने - धोने से ?
-- दुनिया का मेला --

Monday, June 16, 2014

यहाँ क्या हो रहा है ?

1- जहाँ हम हैं , वहाँ हर पल समझनें का पल है लेकिन हम और को क्या समझेंगे जब स्वयं को समझते की भी कोशिश नहीं करते ।
2- संसार एक ऐसा रंगमंच है जहाँ समझानें वाले अधिक और समझनें वाले न के बराबर हैं ।
3- संसार में लोग कामयाब होनें केलिए अपनेंको नहीं अपने रंगको बदलते रहते हैं पर सफलता पाना फिरभी कठिन ही दिखता है ।
4- इस संसार में झूठे ज्यादा कामयाब से दिखते हैं लेकिन उनके कामयाबी का रंग बहुत जल्दी फीका पढनें लगता है ।
5- इस संसारसे जितनें रोज जा रहे हैं ज़रा उनके मुह पर से कफ़न उठा कर देखना कि उनमें से कितनें मुस्कुराते हुए जा रहे हैं , शायद आपको कोई भी ऐसा न दिखे , आखिर ऐसा क्यों ? लोग प्रभुके पास पहुँचने केलिए लाख कोशिश करते हैं लेकिन जब जाना होता है तब सभींका मुह गिर जाता है ,क्यों ?
~~~ हरे कृष्ण ~~~

Friday, June 6, 2014

किधर - किधर देखूँ

# आइये आप और मैं दोनों एक साथ समझते हैं उसे जो घट रहा है पर हम सब अभीं तक उसकी ओर अपनी -अपनी आँखे बंद किये बैठे हैं ।अब जरा समझना , नीचे दी जा रही बातों को :---
* परिवार रचाया क्यों , क्या शांतिके लिए ?
* बस्ती बनाई क्यों , क्या शांति से रहनें केलिए ?
* सम्बन्ध स्थापित किये क्यों , क्या शांति से रहनें केलिए ?
* ब्यापार खडा किया , क्यों , क्या चैन से जीवन गुजारनें केलिए ?
* युद्ध लड़े ,क्यों , क्या शांतिसे रहनें केलिए ?
* मंदिर बनाए , क्यों , क्या शांति केलिए ?
* मंदिर में मूर्ति स्थापित किये ,क्यों ? क्या मन शांति केलिए ?
* खूबसूरत महल खडा किये ,क्यों , क्या दो घडी शांति से रहने केलिए ?
* जीवन गुजार दी ,भाग -दौड़ में ,आखिर क्यों , क्या शांति की खोज केलिए ?
** लेकिन अब ज़रा रुकना और सोचना :--
1- यहाँ इस संसार में हमारा सारा प्रयाश जो शांति और सुरक्षा से जीवन गुजारनें केलिए हुए ,क्या वे विफल नहीं हुए ?
2- यहाँ शांति सभीं चाहते हैं ,पर हैं , कितनें शांति
में ?
3- यहाँ सभीं प्यार में रहना चाहते हैं ,लेकिन हैं कितनें प्यार में ?
4- यहाँ सभीं प्रभुको दिल में बसाना चाहते हैं लेकिन कितनों के पास ऐसा दिल भी है ?
## कहना और सुनना तो बहुत हो चुका पर मिला कुछ नहीं ,क्योंकि कहनें और सुननें से होना
(बदलना ) था पर हम सबकुछ करनें को तैयार हैं पर बदलना नहीं चाहते , फिर क्या होना था ? न होना
था , न होगा कुछ ।
** जो भी हमनें किये , उनके करने से हमें बदल जाना था , पर :---
# हम स्वयंको बदलना नहीं चाहते और जैसे हैं उसी स्थिति में प्रभुको अपनें सामने लाना चाहते हैं , आखिर क्यों ?
# क्योंकि हम उसे भी अपनें अर्थ केलिए प्रयोग करना चाहते हैं ।
# हम जितनें गहरे अज्ञानी हैं , प्रभु को भी अपनें जैसा ही अज्ञानी क्यों समझते हैं ?
# हम संसार में लोगों को धोखा देते - देते इतने मज गए हैं की सब स्वयं को भी बड़ी बारीकी से धोखा दे बैठते हैं और प्रभु को भी खूब धोखा दे रहे हैं , है न नाजे की बात ?
~~ रे मन कहीं और चल ~~