Tuesday, November 14, 2023

पतंजलि योग दर्शन में प्राणायाम भाग - 1



प्राणायाम भाग - 01

प्राणायाम (प्राण + आयाम) पतंजलि अष्टांगयोग के आठ अंगों ( यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि ) में चौथा अंग है । प्राण शब्द  शरीर में स्थित 10 प्रकार की वायुयों के लिए प्रयोग किया गया है जो निम्न प्रकार हैं ⤵️

10 वायु और देह में उनकी स्थिति ⬇️

प्राण

 वायु

अपान 

वायु⬇️

समान

वायु⬇

उदान

वायु⬇️

व्यान

वायु ⬇️

हृदय में

गुदा में 

नाभि में

कंठ में

देह में सर्वत्र 

नाग 

वायु

कूर्म वायु⬇️

कृकल वायु⬇️

देवदत्त वायु⬇

धनन्जय  वायु⬇️

वमन नियंत्रण

उन्मीलन नियंत्रण

क्षुधा नियंत्रण

जम्हाई नियंत्रण 

मृत्यु बाद भी कुछ समय तक रहता है


प्राणायाम को समझने के लिए पतंजलि योग सूत्र साधन पाद सूत्र : 49 - 53 तक को समझना होगा जिन्हें अगले अंक में दिया जाएगा।

~~ ॐ ~~

Sunday, November 12, 2023

पतंजलि समाधिपाद सूत्र 1 - 4 का हिंदी भाषान्तर

समाधिपाद सूत्र : 1 , 2 , 3 और सूत्र : 4 

का हिंदी भाषान्तर ⤵️

सूत्र निम्न प्रकार हैं

ऊपर दिए गए सूत्रों का सरल हिंदी भाषा में  भाषान्तर ⬇️

" योग अनुशासन है जिसके अभ्यास से चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है । चित्त वृत्ति निरोध से चित्ताकार पुरुष अपनें मूल स्वरूप में स्थित हो जाता है अन्यथा पुरुष चित्त वृत्ति स्वरूपाकार ही रहता है " 

ऊपर दिए गए सूत्रों का हिंदी भाषान्तर में योग , अनुशासन , चित्त की वृत्तियां , चित्त वृत्ति निरोध , चित्त का चित्ताकार स्वरूप और चित्त का मूल स्वरूप विषयों को बिना समझे , सूत्रों को ठीक - ठीक समझना संभव नहीं अतः इन शब्दों को पहले समझते हैं …

अनुशासन का अर्थ है ,  ऐसी जीवन पद्धति जो पहले से प्रयोग में हो । चित्त की 05 वृत्तियां

 ( प्रमाण , विपर्यय, विकल्प , निद्रा और स्मृति ) हैं ।

चित्त के दो धर्म हैं - व्युत्थान और निरोध । व्युत्थान में वृत्तियां ऊपर नीचे होती रहती हैं और निरोध में वृत्तियां शांत रहती हैं । चित्त धर्म का व्युत्थान से निरोध में बदल जाना , योग साधना का फल है । निरोध धर्म पर चित्त का टिक जाना समाधि में पहुंचाता है । जब प्रकृति -पुरुष संयोग होता है जब मूल प्रकृति के विकृत होने से  23 तत्त्वों की निष्पत्ति होती है ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महभूत ) । बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं

 ( सांख्य दर्शन में ) और इस समूह को अंतःकरण भी कहते हैं ।  प्रकृति अचेतन और जड़ है अतः इसके 23 कार्य भी जड़ और अचेतन होते हैं । शुद्ध चेतन पुरुष , प्रकृति -पुरुष संयोग के बाद चित्ताकार हो जाता है और चित्त माध्यम से संसार को देखता है । मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं , चित्त का मूल स्वरूप निर्गुण एवं शुद्ध चेतन है और चित्ताकार पुरुष का स्वरूप त्रिगुणी एवं अचेतन का है लेकिन उसे अपनें मूलस्वरूप का बोध बना रहता है ।आगे समाधि पाद सूत्र - 12 में महर्षि कह रहे हैं …

" अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोध: " अर्थात अभ्यास - वैराग्यसे चित्त वृत्तियों का निरोध होता है ।

~~ ॐ ~~

Friday, November 10, 2023

सांख्य दर्शन से परिचय

सांख्य दर्शन से परिचय

भारतीय षड् दर्शनों का संकेत उपनिषदों में भी मिलता है । सांख्य , योग , न्याय , वैषेशिक , मीमांसा और वेदांत - ये 06 षड् दर्शन हैं । इनमें सांख्य और मीमांसा निरिश्वरबादी दर्शन हैं।

 प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान और शब्द ये 04 प्रमाण सामान्यतः सभीं दर्शनों को मान्य हैं । मीमांसा इन 04 प्रमाणों के साथ अर्थापत्ति और अनुपलब्धि  प्रमाणों को भी मानता

है।

 प्रमाण विचार , सृष्टि मीमांसा , पुनर्जन्म , आचार , योग और मोक्ष साधन षड् दर्शनों के सामान्य विषय हैं । 

ब्रह्मसूत्र वेदांत का मूल ग्रन्थ है जिसमें अन्य दर्शनों का खंडन किया गया है। ब्रह्मसूत्र का प्राचीनतम भाष्य आदि शंकराचार्य का है ।

 5वीं शताब्दी में ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित सांख्यकारिका वर्तमान में सांख्य दर्शन के एक मात्र प्रमाणित संदर्भ हैं जिसमे कुल मात्र 72 कारिकाये हैं । इन 72 करिकाओ में  अंतिम 04 कारिकाये बाद में जोड़ी गयी सी दिखती हैं । सांख्य दर्शन निरिश्वरबादी द्वैत्यवाद है जिसमें आत्मा ,जीवात्मा , ब्रह्म , माया और ईश्वर संबंधित कोई संदर्भ नहीं हैं । 

सांख्य में प्रकृति - पुरुष दो सनातन स्वतंत्र तत्त्वों की मान्यता है । प्रकृति जड़ है एवं जगत् के होने का कारण है।  तीन गुणों की साम्यावस्थ को मूल प्रकृति कहते हैं । पुरुष शुद्ध चेतन है जो न तो कारण है और न ही  कार्य है । प्रकृति और पुरुष संयोग से सृष्टि रचना हुई है । 

पतंजलियोग दर्शन का तत्त्व मीमांसा , सांख्य दर्शन है । सांख्य सिद्धांत देता है और पतंजलि इन सिद्धांतों के आधार पर योग विकसित करते हैं । पतंजलि योग सूत्र में 195 सूत्र हैं ।

आचार्य ईश्वर कृष्ण द्वारा आर्या छन्द में रचित 72 सांख्य कारिकाओं में से प्रारंभिक दो कारिकाओं को यहां देखते हैं ।

सांख्य कारिका - 1

दुःख त्रय अभिघात् जिज्ञासा तद् अपघातक हेतौ

दृष्टे स अपार्था च एकान्त अत्यंत अभावत् 

   तीन प्रकारके दुःख हैं । इन दुःखों से अछूता रहने की जिज्ञासा उत्पन्न होनी स्वाभाविक है । उपलब्ध साधनों से इन दुःखों से पूर्ण रूप से मुक्त होना संभव नहीं क्योंकि  उपलब्ध साधन दुःखों को अस्थायी रूप से मुक्त कराते हैं ।

कारिका - 2

द्रष्टवत् अनुश्रविक स ह्य विशुद्धि क्षय अतिशय युक्त

तत् विपरित श्रेयां व्यक्त अव्यक्तज्ञ विज्ञानात् 

अनुश्रविक उपाय ( दुःख निवारण हेतु वैदिक उपाय जैसे यज्ञ आदि करना ) भी दृश्य उपायों (अन्य उपलब्ध उपायों ) की भाँति हैं । ये वैदिक उपाय अविशुद्धि क्षय - अतिशय दोष से युक्त हैं । अतः तीन प्रकार के दुखों की निवृत्ति अव्यक्त ( प्रकृति ) और ज्ञ ( पुरुष ) का विज्ञान रूपी उपाय श्रेयस्कर हैं - अर्थात प्रकृति - पुरुष का विवेक ज्ञान ही दुखों को निर्मूल करने में सक्षम है ।

~~ ॐ ~~ 

Sunday, November 5, 2023

पतंजलि योग दर्शन में ईश्वर का स्वरूप


( स्लाइड में प्रभु श्री कृष्ण की फोटो रामानंद सागर कृष्ण सीरियल के ली गई है )

महर्षि पतंजलि योग सूत्र दर्शन में  समाधि , साधन , विभूति और कैवलय नाम से चार पाद ( अध्याय )  हैं . इन चार अध्यायों में  195 सूत्र हैं ।  महर्षि पतंजलि ईश्वर संबंधित  07 सूत्र समाधिपाद में और दो सूत्र साधन पाद में दिए हैं , जिनका सार आगे दिया जा रहा है ।

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग दर्शन एक दूसरे  के पूरक दर्शन हैं । सांख्य दर्शन के बिना पतंजलि योग दर्शन का होना संभव नहीं और बिना पतंजलि योग दर्शन , सांख्य दर्शन के तत्त्व ज्ञान को ठीक - ठीक समझना संभव नहीं ।

यह देख कर आश्चर्य होता है कि सांख्य दर्शन में ईश्वर शब्द नहीं है पर सांख्य दर्शन आधारित पतंजलि योग दर्शन  में पुरुष विशेष रूप में ईश्वर को चित्त वृत्ति निरोध के उपायों में एक उपाय के आलंबन के रूप में दिखाया गया है । सांख्य में तत्त्वों की संख्या 25 है और पतंजलि योग दर्शन में भी यह सांख्य 25 ही है लेकिन पुरुष तत्त्व के अंतर्गत पुरुष विशेष रूप में ईश्वर को भी बताया  गया है ।

अब पतंजलि योग दर्शन में ईश्वर संबंधित 09 सूत्रों के सार को देखते हैं और सार  देखने  के बाद सूत्रों का हिंदी में भावार्थ भी देखेंगे ।

पतंजलि का ईश्वर , ( प्रणव )  है जिसका जाप करने से चित्त की वृत्तियाँ शांत होती हैं और योग साधना में आने वाली सभीं बाधाएं दूर होती हैं  । ईश्वर क्लेश , कर्म , कर्मफल और चित्त से अछूता  है । यह सनातन , सर्वश्रेष्ठ , पूर्व में  उत्पन्न सभीं गुरुओं का गुरु है और सर्वज्ञता का बीज है। अब सूत्रों को देखते हैं⬇️

1 - समाधि पाद सूत्र - 23

चित्त वृत्ति निरोध के अन्य उपायों के अतिरिक्त ईश्वर प्रणिधान भी एक उपाय है ।

2 - समाधिपाद सूत्र - 24

पुरुष विशेष ईश्वर , क्लेश , कर्म , विपाक ( कर्म फल ) और आशय (चित्त ) से अछूता है । 

05 क्लेशों और उनकी 04 अवस्थाओं को यहां देखें ⬇️

साधनपाद सूत्र : 13 - 14 में पतंजलि कहते हैं , क्लेशों के रहते मोक्ष पाना संभव नहीं ।

3 - समाधिपाद सूत्र - 25

तत्र + निरतिशयम् + सर्वज्ञबीजम् 

 पुरुष विशेष ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है और सर्वज्ञता का बीज है ।

4 - समाधिपाद सूत्र - 26

ईश्वर सनातन है । यह पूर्वकाल में उत्पन्न सभीं गुरुओं का भी  गुरु है। 

5 - समाधि पाद सूत्र - 27 

ईश्वरका सम्बोधन प्रणव (ॐ ) है ।

6 - समाधि पाद सूत्र : 28 

प्रणवका अर्थ समझते हुए उसका जाप करें ।

 7 - समाधिपाद सूत्र - 29

जाप करने से अपने अंदर चेतन का बोध होता है और योग साधनामें आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती है ।

8 - 🌷पतंजलि साधन पाद सूत्र - 1 

क्रियायोग का तीसरा अंग ईश्वर प्रणिधानि है ⬇️

साधन पाद सूत्र : 10

" क्रियायोगसे क्लेशोंका नाश होता है "

9 -🌷पतंजलि साधन पाद सूत्र - 45

  ईश्वर प्रणिधानि अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम का पांचवां अंग भी है । नियम के 05 अंगों को यहां देखें ⬇️

~~ ॐ ~~ 

Thursday, November 2, 2023

सांख्य दर्शन में 50 प्रकार की बुद्धि होती है

सांख्य दर्शन में 50 प्रकार की बुद्धि

संदर्भ : कारिका 46 - 52 ( 07 कारिकाएँ ) 

सांख्य दर्शन में 50 प्रकार की बुद्धि  ⤵️

कारिका : 46 - 48

#:बुद्धि को महत् और प्रत्यय भी कहते हैं #

बुद्धि या प्रत्यय सर्ग (सृष्टि ) 04 प्रकार की हैं - विपर्यय , अशक्ति , तुष्टि और सिद्धि 

इन चारों में गुणों की विषमताके कारण ….

 🌷बुद्धि सर्ग के कुल 50 भेद निम्न प्रकार से हैं 

1 - विपर्यय 05 प्रकार की है 

2 - इन्द्रियों की विकलता से अशक्ति  28 प्रकार की है

 3 - तुष्टि 09 प्रकार की है 

4 - सिद्धि  08 प्रकार की है 

(ऊपर स्लाइड में 50 प्रकार की बुद्धियों को देखें )

1.1 विपर्यय के भेद - उपभेद 

1- तम  08 प्रकार का  है 

2 - मोह 08 प्रकार का  है 

3 - महामोह ( आसक्ति ) 10 प्रकार का है 

4 - तामिस्र ( क्रोध )18 प्रकार का है 

5 - अंधतामिस्र (अहंकार ) 18 प्रकार का  है 

इस प्रकार विपर्यय 62 प्रकार की हुई 

# कारिका : 49

अशक्ति के कुल 28 भेद हैं 

# कारिका : 50 + 51

💐 आध्यात्मिक तुष्टि निम्न  04 प्रकार की है 

1 - प्रकृति 2 -  उपादान 3 - काल और 4 - भाग्य 

👌 बाह्य तुष्टि 05 तन्मात्रों के उपादान रूपी 08 प्रकार की होती है । 

👌  08 प्रकार की सिद्धियाँ  ⤵️

ऊह ,  शब्द , अध्ययन  ,  तीन प्रकार के दुःखों का विघात ,  सुहृत्प्राप्ति और  दान  

👍 सिद्धियों के 03 बाधक हैं 

👉 विपर्यय , अशक्ति और तुष्टि 

# कारिका : 52

💐 भाव सृष्टि के बिना लिङ्ग सृष्टि की कल्पना नहीं हो सकती लिङ्ग सृष्टि के बिना भाव सृष्टि की निष्पत्ति नहीं हो सकती है अतः भौतिक और प्रत्ययय ऐसी दो प्रकारकी सृष्टि प्रवृत्त होती है ।

1 - भाव सृष्टि या प्रत्यय ( बुद्धि ) सृष्टि में विपर्यय ,अशक्ति आदि आती है , देखे सूत्र : 46 - 51 तक ) 

2 - लिङ्ग सृष्टि को तन्मात्र सृष्टि या भौतिक सृष्टि भी कहते हैं 

~~ॐ ~~