करलो इकठ्ठा पर ...
** यह भी हो ,वह भी हो ,ऐसा भी हो ,वैसा भी हो , ये ठीक रहेगा ,वह ठीक रहेगा - ऐसे बंधनों से जुड़े मनकी गति हर पल और तेज होती जाती है लेकिन हृदय सिकुड़ता चला जारहा है ।
** ऐसे लोग जिनके आँखों की पुतलियाँ कहीं रुकती नहीं , जो ऊपर बताये बंधनों से गहरी तन्मयता स्थापित कर रखी है , उनमें अधिकाँश लोग ब्लड प्रेसर , शुगर और हृदय रोग से ग्रसित हैं ।
** जैसे - जैसे इकठ्ठा करनें की उर्जा बढ़ रही है ,वैसे - वैसे लोग हृदय विहीन होते जा रहे हैं । भोगी अपनें हाँथ ऊपर उठा कर आकाश को पकड़नें की कोशिश में सुध - बुद्धि सब खो रहा है तो योगी बंद अपनीं आँखों से उसी आकाशकी शून्यता में बिना सोचे जो पाता है ,वह उसे तृप्त कर देता है और उसका शेष जीवन नाचते -नाचते गुजर जाता है ।
** योगी सब कुछ खो कर परनानंद को पा जाता है और भोगी सबकुछ पाते हुए भी भिक्षुक बना हुआ है । ** मनुष्य राज पथोंका निर्माण करवाता है लेकिन उनका जीवन राज पथ पर नहीं चलता , उसका हर कदम एक नए ऐसे मार्ग का निर्माण करता है जिस पर वह जैसे -जैसे आगे कदम बढाता जाता है वैसे - वैसे उसके पैरोंके निशान स्वतःमिटते चले जाते हैं । ** जीवन यात्रा एक पगडण्डी यात्रा है; ऐसी पगडण्डी यात्रा जिसको शब्दों में बाधना तो संभव नहीं लेकिन इस यात्राके हर पल रोमांचित जरुर करते रहते हैं । **यहाँ यह न देखो कि वह कैसे चल रहा है , यह देखो कि जैसे भी तुम चल रहे हो ,क्या वह तुमको आनंदित कर रहा है ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~
Wednesday, May 28, 2014
करलो इकठ्ठा पर ---
Wednesday, May 21, 2014
यह भी एक बात है
Monday, May 19, 2014
यह खेल है , जब आये हो तो खेलो
* खेल , खेल है , इसमें इतना तन्मय न हो जाओ कि भूल जाओ उसे जो खिला रहा है , उसे जो खेल रहा है और उसे जो इसका द्रष्टा है ।कैसी खेल है जिसमें खेलनें वाला , खिलानेवाला और द्रष्टा तीन नहीं एक
है ?
* अनेक योनियों से गुजरनेंके बाद जिसका अनुभव गहरा जाता है उसे मनुष्य योनि मिलती है और मनुष्य योनि में आया जीव यह समझ सकता है कि वह स्वयं क्या है ,यह संसार क्या है और इन सबके माध्यमसे उसका द्रष्टा बन सकता है जो इन सबके होनें का माध्यम है और जिसे प्रभु की माया कहते हैं । भागवत कहता है ,भक्त माया का द्रष्टा होता है ।वह मनुष्य जो माया का द्रष्टा बन जाता है ,निराकार प्रभु उसके लिए साकार हो उठता है और उस परम अप्रमेय ,सनातन और अब्यक्त में वह अपना बसेरा बना लेता है।
~~ रे मन कहीं और चल ~~
Wednesday, May 14, 2014
रे मन कहीं और चल
1-जीवन में आये दिन कुछ ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं जिनसे मनुष्य कुछ ऐसी स्थिति में आ जाता है जैसे बीच दरिया में चल रही नाव किसी असामान्य तूफ़ानमें फस गयी हो ।ऐसी घटनाएँ मनुष्य को एक नयी उर्जा क्षेत्र में पहुँचाना चाहती हैं लेकिन होता क्या है ? जब एक ग्रह अपनें आर्बिट को छोड़ता है और अपनें आर्बिट से बाहर कदम रखता है तब वह या तो समाप्त हो जाता है या फिर धीरे -धीरे अपना एक नया आर्बिट बना लेता है लेकिन आर्बिट बदलना एक जोखिम भरा कदम है जिसके लिए कोई तैयार नहीं । वह जो इस जोखिम को स्वीकार करके अपनें पुरानें आर्बिट के बाहर कदम उठता है , वह अगर संसारके अस्तित्व में बना रहा तो पूज्यनीय बन जाता है ।
2- जीना कौन नहीं चाहता लेकिन कोई नहीं चाहता कि उसके अलावा कोई और भी जीये , आखित
क्यों ?
3- इस संसारका निर्माण कैसे हुआ और इसके निर्माणके पीछे कौन सा राज छिपा है ? यह एक तर्क शास्त्रका बिषय है लेकिन इतना तो स्पष्ट दिखता है कि यह संसार योगी ,भोगी ,देवता और साकार रूपमें अवतरित हुए स्वयं परम पुरुष तक को एक समान आकर्षित करता है ,क्यों औत कैसे ?
4- संसारकी रचना निर्मल प्यारकी उर्जा से हुयी होगी , इसमें भी कोई शक नहीं दिखता लेकिन यहाँ जो रहते हैं वे सभीं एक दुसरेके भोजन हैं और एक दुसरे को समाप्त करनें में लगे हुए हैं ,ऐसा क्यों ?
5- इस माया निर्मित संसार में सबका मुह खुला ही क्यों रहता है ,सभीकी रोजाना उम्र घटती जा रही है और उनकी अत्रिप्तता बढती जा रही है , आखिर
क्यों ?
6- यहाँ सभीं लगे हुए हैं चाहे भोगी हों ,चाहे योगी हों या फिर चाहे अन्य जीव हैं ,किसी न किसी रूप में तृप्त होनें में लेकिन सबके तृप्त होनें के साधन छोटे होते जा रहे हैं और उनकी अतृप्ता बड़ी होती जा रही हैं , ऐसा क्यों ?
~~ रे मन ! कहीं और चल ~~
Friday, May 9, 2014
सुनाऊ तो किसको और कैसे ?
1- किसी से यदि आप कुछ कहना चाह रहे हैं ? तो रुको, सोच लो , ठीक -ठीक कि जो आप कहना चाह रहे हो उसके लिए यह समय उचित भी है ?
2- आप जो कहना चाह रहे हो क्या वह आपके अपनें अनुभव की बात है या किसी और से आपको उधार में मिली है ?
3- इतनी सी बात याद रखना कि भोग संसारमें सबका अपना -अपना भिन्न - भिन्न अनुभव होता है , पर सतकी अनुभूति सबकी एक होती है ।
4- किसी और की बात हो तो औरों को सुनाऊ भी अब अपनी ही बात जिसे अभीं तक मैं छिपा रखा है ,उसे सुनाऊतो कैसे और किससे ?
5- कभीं -कभीं न कहनें वाली बात कही जाती है और जिस बात को कहना होता है उसे हम कह नहीं पाते ।
6- जो कहनें जा रहे हो इसे कहो लेकिन इतना तो देख ही लो कि आस - पास जो लोग हैं उनके सुननें लायक भी वह बात है या नहीं ।
7- गावों में अक्सर ऐसा होता है कि छोटे -छोटे बच्चों की उपस्थिति को बिना सोचे बड़े लोग ऐसी बातें कर बैठते हैं जिन बातों को बच्चे कई साल बाद समझ पाते हैं । बच्चों के अन्दर ऐसे बीज न रखो जो उनके बड़े होनें के साथ -साथ नासूर बनते हों ।
8- आये दिन गौवों की सेवा केलिए दान इकठ्ठा करनें वाले गलियों से गुजरते हैं । वे लाउस स्पीकरके माध्यम से बोलते हैं , " मेरे प्यारे सज्जनों , माताएं और बहनों ! जगह - जगह से लंगड़ी - लाचार गौओं को हम इकठ्ठा करते हैं ,उनका इलाज करते हैं और उनका पालन करते हैं । इस कार्य हेतु 33 करोड़ देवी -देवताओं को धारण करनें वाली गौ माता के पालन हेतु आप के सहयोग की जरुरत है " ।अब आप समझें की इन गौओं को अनाथ और अपाहिज कौन बना कर लावारिश छोड़ते हैं ? क्या वे हम - आप तो नहीं ? यदि हाँ तो समस्या बहुत जटिल है । हम उनको लावारिश बनाते हैं ,हम गो शाला बनाते हैं और हम इसके भरण -पोषण हेतु भीख भी माँगते हैं , है न मजे की बात ?
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~