Wednesday, May 28, 2014

करलो इकठ्ठा पर ---

करलो इकठ्ठा पर ...
** यह भी हो ,वह भी हो ,ऐसा भी हो ,वैसा भी हो , ये ठीक रहेगा ,वह ठीक रहेगा - ऐसे बंधनों से जुड़े मनकी गति हर पल और तेज होती जाती है लेकिन हृदय सिकुड़ता चला जारहा है ।
** ऐसे लोग जिनके आँखों की पुतलियाँ कहीं रुकती नहीं , जो ऊपर बताये बंधनों से गहरी तन्मयता स्थापित कर रखी है , उनमें अधिकाँश लोग ब्लड प्रेसर , शुगर और हृदय रोग से ग्रसित हैं ।
** जैसे - जैसे इकठ्ठा करनें की उर्जा बढ़ रही है ,वैसे - वैसे लोग हृदय विहीन होते जा रहे हैं । भोगी अपनें हाँथ ऊपर उठा कर आकाश को पकड़नें की कोशिश में सुध - बुद्धि सब खो रहा है तो योगी बंद अपनीं आँखों से उसी आकाशकी शून्यता में बिना सोचे जो पाता है ,वह उसे तृप्त कर देता है और उसका शेष जीवन नाचते -नाचते गुजर जाता है ।
** योगी सब कुछ खो कर परनानंद को पा जाता है और भोगी सबकुछ पाते हुए भी भिक्षुक बना हुआ है । ** मनुष्य राज पथोंका निर्माण करवाता है लेकिन उनका जीवन राज पथ पर नहीं चलता , उसका हर कदम एक नए ऐसे मार्ग का निर्माण करता है जिस पर वह जैसे -जैसे आगे कदम बढाता जाता है वैसे - वैसे उसके पैरोंके निशान स्वतःमिटते चले जाते हैं । ** जीवन यात्रा एक पगडण्डी यात्रा है; ऐसी पगडण्डी यात्रा जिसको शब्दों में बाधना तो संभव नहीं लेकिन इस यात्राके हर पल रोमांचित जरुर करते रहते हैं । **यहाँ यह न देखो कि वह कैसे चल रहा है , यह देखो कि जैसे भी तुम चल रहे हो ,क्या वह तुमको आनंदित कर रहा है ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

Wednesday, May 21, 2014

यह भी एक बात है

* जब तक संसारकी पूरी हवा नहीं लग जाती है तबतक एक युवाको जीवन रंगीन दिखता रहता है और उसके जीवनके हर पल एक नए आयाम जैसे होते है। धीरे -धीरे वही युवक समयके प्रभाव में वहाँ पहुँच चुका होता है जहाँ वही उसका जीवन उसे बोझ बन जाता है ,यह घटना नहीं है ,यह जीवन यात्रा के दो रंग हैं जो हमारी बंद आँखों को खोलना चाहते हैं पर हम अपनी आँखों को और बंद करते चले जाते हैं और एक दिन अपनीं आँखे थक कर हमेशा केलिए बंद होजाती हैं फलस्वरूप अपना भौतिक अस्तित्व सदैव केलिए समाप्त हो जाता है । 
* हर बेटा पिता बनता है हर पिता दादा बनता है । हर लड़की माँ बनती है ,हर माँ दादी बनती है यदि अन्य बाते सामान्य रहें तो लेकिन क्या इस परिवर्तनका किसी को पूर्वानुमान होता है ? पूर्वानुमान न होनें के कारण तरह -तरह की सामाजिक समस्याएं खड़ी होती रहती हैं और हम सब इन समस्याओं में उलझे -उलझे वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ से इस संसार को तन्हाई में छोड़ना पड़ता 
है । 
* यह मेरे कुल की मर्यादा है ,यह मेरे इज्जतका सवाल है , यह मेरे धर्म के प्रतिकूल है , ऐसा नहीं हो सकता ,वैसा नहीं हो 
सकता , ऐसे एक नहीं अनेक बंधनों में हम अपनें उत्तराधिकारी को बाद कर रखते हैं इन बंधनों की इतनी गहरी पकड़ होती है कि उस बिचारे के दिल के अरमा सिकुड़ते चले जाते हैं और उसके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता कि वह भी अपनें पिता की बातोंको अपनें उत्तराधिकारियों के ऊपर थोपे । अप ज़रा अपनी निगाह समाजमें दौड़ाएं और देखें , क्या ऐसा ही नहीं हो रहा ? 
 <> ऐसी स्थिति में और क्या हो सकता है ? ऐसे कितनें दिखते हैं जो अपनी आगे की पीढ़ी के बच्चो को मौका दे रहे हो संसार के अनुभव को प्राप्त करने केलिए ? क्या बिना कुछ किये भी अनुभव मिलता है ? 
~~~ ॐ ~~~

Monday, May 19, 2014

यह खेल है , जब आये हो तो खेलो

* खेल , खेल है , इसमें इतना तन्मय न हो जाओ कि भूल जाओ उसे जो खिला रहा है , उसे जो खेल रहा है और उसे जो इसका द्रष्टा है ।कैसी खेल है जिसमें खेलनें वाला , खिलानेवाला और द्रष्टा तीन नहीं एक
है ?
* अनेक योनियों से गुजरनेंके बाद जिसका अनुभव गहरा जाता है उसे मनुष्य योनि मिलती है और मनुष्य योनि में आया जीव यह समझ सकता है कि वह स्वयं क्या है ,यह संसार क्या है और इन सबके माध्यमसे उसका द्रष्टा बन सकता है जो इन सबके होनें का माध्यम है और जिसे प्रभु की माया कहते हैं । भागवत कहता है ,भक्त माया का द्रष्टा होता है ।वह मनुष्य जो माया का द्रष्टा बन जाता है ,निराकार प्रभु उसके लिए साकार हो उठता है और उस परम अप्रमेय ,सनातन और अब्यक्त में वह अपना बसेरा बना लेता है।
~~ रे मन कहीं और चल ~~

Wednesday, May 14, 2014

रे मन कहीं और चल

1-जीवन में आये दिन कुछ ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं जिनसे मनुष्य कुछ ऐसी स्थिति में आ जाता है जैसे बीच दरिया में चल रही नाव किसी असामान्य तूफ़ानमें फस गयी हो ।ऐसी घटनाएँ मनुष्य को एक नयी उर्जा क्षेत्र में पहुँचाना चाहती हैं लेकिन होता क्या है ? जब एक ग्रह अपनें आर्बिट को छोड़ता है और अपनें आर्बिट से बाहर कदम रखता है तब वह या तो समाप्त हो जाता है या फिर धीरे -धीरे अपना एक नया आर्बिट बना लेता है लेकिन आर्बिट बदलना एक जोखिम भरा कदम है जिसके लिए कोई तैयार नहीं । वह जो इस जोखिम को स्वीकार करके अपनें पुरानें आर्बिट के बाहर कदम उठता है , वह अगर संसारके अस्तित्व में बना रहा तो पूज्यनीय बन जाता है ।
2- जीना कौन नहीं चाहता लेकिन कोई नहीं चाहता कि उसके अलावा कोई और भी जीये , आखित
क्यों ?
3- इस संसारका निर्माण कैसे हुआ और इसके निर्माणके पीछे कौन सा राज छिपा है ? यह एक तर्क शास्त्रका बिषय है लेकिन इतना तो स्पष्ट दिखता है कि यह संसार योगी ,भोगी ,देवता और साकार रूपमें अवतरित हुए स्वयं परम पुरुष तक को एक समान आकर्षित करता है ,क्यों औत कैसे ?
4- संसारकी रचना निर्मल प्यारकी उर्जा से हुयी होगी , इसमें भी कोई शक नहीं दिखता लेकिन यहाँ जो रहते हैं वे सभीं एक दुसरेके भोजन हैं और एक दुसरे को समाप्त करनें में लगे हुए हैं ,ऐसा क्यों ?
5- इस माया निर्मित संसार में सबका मुह खुला ही क्यों रहता है ,सभीकी रोजाना उम्र घटती जा रही है और उनकी अत्रिप्तता बढती जा रही है , आखिर
क्यों ?
6- यहाँ सभीं लगे हुए हैं चाहे भोगी हों ,चाहे योगी हों या फिर चाहे अन्य जीव हैं ,किसी न किसी रूप में तृप्त होनें में लेकिन सबके तृप्त होनें के साधन छोटे होते जा रहे हैं और उनकी अतृप्ता बड़ी होती जा रही हैं , ऐसा क्यों ?
~~ रे मन ! कहीं और चल ~~

Friday, May 9, 2014

सुनाऊ तो किसको और कैसे ?

1- किसी से यदि आप कुछ कहना चाह रहे हैं ? तो रुको, सोच लो , ठीक -ठीक कि जो आप कहना चाह रहे हो उसके लिए यह समय उचित भी है ?
2- आप जो कहना चाह रहे हो क्या वह आपके अपनें अनुभव की बात है या किसी और से आपको उधार में मिली है ?
3- इतनी सी बात याद रखना कि भोग संसारमें सबका अपना -अपना भिन्न - भिन्न अनुभव होता है , पर सतकी अनुभूति सबकी एक होती है ।
4- किसी और की बात हो तो औरों को सुनाऊ भी अब अपनी ही बात जिसे अभीं तक मैं छिपा रखा है ,उसे सुनाऊतो कैसे और किससे ?
5- कभीं -कभीं न कहनें वाली बात कही जाती है और जिस बात को कहना होता है उसे हम कह नहीं पाते ।
6- जो कहनें जा रहे हो इसे कहो लेकिन इतना तो देख ही लो कि आस - पास जो लोग हैं उनके सुननें लायक भी वह बात है या नहीं ।
7- गावों में अक्सर ऐसा होता है कि छोटे -छोटे बच्चों की उपस्थिति को बिना सोचे बड़े लोग ऐसी बातें कर बैठते हैं जिन बातों को बच्चे कई साल बाद समझ पाते हैं । बच्चों के अन्दर ऐसे बीज न रखो जो उनके बड़े होनें के साथ -साथ नासूर बनते हों ।
8- आये दिन गौवों की सेवा केलिए दान इकठ्ठा करनें वाले गलियों से गुजरते हैं । वे लाउस स्पीकरके माध्यम से बोलते हैं , " मेरे प्यारे सज्जनों , माताएं और बहनों ! जगह - जगह से लंगड़ी - लाचार गौओं को हम इकठ्ठा करते हैं ,उनका इलाज करते हैं और उनका पालन करते हैं । इस कार्य हेतु 33 करोड़ देवी -देवताओं को धारण करनें वाली गौ माता के पालन हेतु आप के सहयोग की जरुरत है " ।अब आप समझें की इन गौओं को अनाथ और अपाहिज कौन बना कर लावारिश छोड़ते हैं ? क्या वे हम - आप तो नहीं ? यदि हाँ तो समस्या बहुत जटिल है । हम उनको लावारिश बनाते हैं ,हम गो शाला बनाते हैं और हम इसके भरण -पोषण हेतु भीख भी माँगते हैं , है न मजे की बात ?
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

Sunday, May 4, 2014

चिरकुट लाल - 1

चिरकुट लाल को सम्मानित करनें के लिए देश - विदेशसे लोग आज गाँव में आनें वाले हैं । गाँवको एक नया रूप दिया जा रहा है लेकिन चिरकुटलालको इसका कोई इल्म नहीं ,वे मजे से दरवाजे पर अपनी टूटी खाट पर बैठे हुक्का पी रहे हैं । >> कौन चिरकुट लाल ? वही जो गाँव के दक्षिणी भाग में नीम के पेड़ के नीचे एक झोपड़ी में अकेले रहता है ? यह प्रश्न रमई काका का था जो उस ब्यक्ति से पूछ रहे थे जो ढोल बजा - बजा कर सारे गाँव में यह समाचार प्रसारित कर रहा था । >> वह चिरकुट लाल जिसे गाँव के लोग वास्तव में गाँव का चिरकुट ही समझते रहे , आज उसका नाम गाँव में गूँज रहा है ,यह बात वहाँ के लोगों को पच नहीं रही थी लेकिन आयोजन तो सरकार की ओर से हो रहा था लोग करते भी तो क्या करते ? >> कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि वह चिरकुट लाल जिसे मुस्किल से रोटी नसीब हो पा रही थी , उसे सम्मानित किया जा रहा है ? बश ! यही प्रश्न गाँव के हर नुक्कड़ पर इकट्ठे हुए लोगों में रह -रह कर उठ रहा था ,पर इसका उत्तर न मिलनें से लोगों में बेचैनी साफ़ - साफ़ दिख रही थी। >> चिरकुट लाल अपना हुक्का दिवार से सटा कर रख दिया और उठायी अपनी डंडी और जा कर पास के अपनें एक बूढ़े ब्यक्ति से पूछ रहे थे कि भाई ! आज गाँव में यह सब क्या हो रहा है ? कोई बड़ा हाकिम आनें वाला है क्या ? अभीं चिरकुट लाल की बात पूरी भी न हो पायी थी कि पुलिश की एक जीप वहाँ रुकी और चिरकुट लाल को लेकर नौ दो इग्यारह हो गयी। सूरज डूबते -डूबते चिरकुट लालका गाँव जगमगा उठा ,गाँव के चौपाल पर एक बड़ा सामियाना लगा था , उसके नीचे हजारों लोग इकट्ठे थे ,सरकारकी ओर से मुख्या मंत्री जी सहित पूरा सरकारी तंत्र वहाँ इकठ्ठा हो चूका था और किसी का इन्तजार कर रहा था । >> कुछ ही पल में वहाँ एक हेलीकोप्टर उतरा , उसमें से कुछ लोग नीचे उतरे और आगये चौपाल पर जहाँ लोग उन सबका इन्तजार कर रहे थे । मुख्या मंत्री महोदय अपनें अल्प भाषण के बाद सामनें कुर्सी पर बैठे चिरकुट लाल की ओर इशारा करके बोले , आप लोग काका चिरकुट लाल को तो जानते ही होंगे । इसके साथ जो महोदय बैठे हैं वे हैं तो किसी और मुल्क के प्रधान मंत्री लेकिन इनका सीधा सम्बन्ध इस गाँव एवं चिरकुट लाल के खानदान से है। ये सज्जन आज हमाते अथिति हैं और हम इनका स्वागत करते हैं ।अब मैं इनसे गुजारिश करूँगा कि ये दो शब्द कहें । >> वहाँ आये अथिति महोदय कुछ बोल तो नहीं पाए लेकिन उनकी आँखों से टपकते आँसू सबकुछ कह रहे थे । > सैकड़ो साल बाद चिरकुट लाल के खानदान का कोई सदस्य अपनें पुर्बजों के गाँव को देखनें समुद्र पार के एक देशके प्रधान मंत्री की हैसियत से यहाँ आया हुआ है और गाँव एवं चिरकुट लाल के झोपड़े को देख कर यह अनुमान लगाकर रो रहा है की सैकड़ो साल पहले हमारे पूर्वज क्या रहे होंगे ? और वे यहाँ से क्यों गये थे ? >> लोग तो चले गए ,जलसा पूरा हो गया लेकिन चिरकुट लाल का क्या हुआ ? इस बात को हम देखेंगे अगले अंक में --- -- क्रमशः --

Friday, May 2, 2014

ना तेरा ना मेरा

<> एक फ़क़ीर , सम्राटके महल - द्वार पर खड़ा सुरक्षा कर्मी से ऊँची आवाज में कुछ पूछ रहे थे । फ़क़ीर की आवाज में कुछ ऐसी कशिश थी जो सम्राट को द्ववार पर आनें को मजबूर कर दी । सम्राटकी आँखें जब फ़क़ीर की आँखों से मिली तब वह भूल ही गया कि वह सम्राट है और एक भक्त की भांति फ़क़ीर को महलके अन्दर आनें को आमंत्रित किया । * सम्राट महलके अन्दर फ़क़ीरको उचित आसन देनें केबाद पूछे ,प्रभु ! आप द्वारपालसे किस बात पर बहस कर रहे थे ? फ़क़ीर बोले ," मैं कह रहा था कि इस सराय में आज मुझे रुकना है और वह कह रहा था कि यह सराय नहीं सम्राट का महल है । " मैं इसे महल के रूप में नहीं मान रहा था और वह इसे सराय माननें को तैयार न था ,बश इतनी सी बात थी । * सम्राट बोले ," प्रभु ! यह तो मेरा महल है जिसे आप एक सराय समझ रहे हैं ,फिर तो वह द्वारपाल ठीक कह रहा था लेकिन आप यहाँ जितनें दिन चाहें रुक सकते हैं , यह मेरा भाग्य है की मेरे महल में आप जैसे फ़क़ीर के पैर पड़े हैं । * फकीर कुछ बोले नहीं ,दीवारों पर लगी उन तस्बीरों को देखते रहे जो सम्राट के पूर्बजों की थी । फ़क़ीर तस्वीरों को देखते -देखते हसने लगे । फ़क़ीर कहते हैं ,देखो ,इस तस्बीर को , कुछ साल पहले ये कहते थे कि यह मेरा महल है , फिर इस तस्बीर को देखो ,ये भी यही बात कहते थे और आज तुम उनकी कही बात को दुहरा रहे हो ,आखिर बात क्या है ? जहां लोग रहते है वह महल या घर होता है और जहां लोग आते - जाते रहते हैं उसे सराय कहते हैं ,फिर तुम समझो कि यह महल है या फिर सराय । # सम्राट फ़क़ीर के चरणों में गिर पड़ा और अगले दिन अपनें सेनापति को राज्य सौप कर फ़क़ीर के साथ हो लिया । ** सोचिये इस कथा पर ** ~~~ सत नाम ~~~