1- किसी से यदि आप कुछ कहना चाह रहे हैं ? तो रुको, सोच लो , ठीक -ठीक कि जो आप कहना चाह रहे हो उसके लिए यह समय उचित भी है ?
2- आप जो कहना चाह रहे हो क्या वह आपके अपनें अनुभव की बात है या किसी और से आपको उधार में मिली है ?
3- इतनी सी बात याद रखना कि भोग संसारमें सबका अपना -अपना भिन्न - भिन्न अनुभव होता है , पर सतकी अनुभूति सबकी एक होती है ।
4- किसी और की बात हो तो औरों को सुनाऊ भी अब अपनी ही बात जिसे अभीं तक मैं छिपा रखा है ,उसे सुनाऊतो कैसे और किससे ?
5- कभीं -कभीं न कहनें वाली बात कही जाती है और जिस बात को कहना होता है उसे हम कह नहीं पाते ।
6- जो कहनें जा रहे हो इसे कहो लेकिन इतना तो देख ही लो कि आस - पास जो लोग हैं उनके सुननें लायक भी वह बात है या नहीं ।
7- गावों में अक्सर ऐसा होता है कि छोटे -छोटे बच्चों की उपस्थिति को बिना सोचे बड़े लोग ऐसी बातें कर बैठते हैं जिन बातों को बच्चे कई साल बाद समझ पाते हैं । बच्चों के अन्दर ऐसे बीज न रखो जो उनके बड़े होनें के साथ -साथ नासूर बनते हों ।
8- आये दिन गौवों की सेवा केलिए दान इकठ्ठा करनें वाले गलियों से गुजरते हैं । वे लाउस स्पीकरके माध्यम से बोलते हैं , " मेरे प्यारे सज्जनों , माताएं और बहनों ! जगह - जगह से लंगड़ी - लाचार गौओं को हम इकठ्ठा करते हैं ,उनका इलाज करते हैं और उनका पालन करते हैं । इस कार्य हेतु 33 करोड़ देवी -देवताओं को धारण करनें वाली गौ माता के पालन हेतु आप के सहयोग की जरुरत है " ।अब आप समझें की इन गौओं को अनाथ और अपाहिज कौन बना कर लावारिश छोड़ते हैं ? क्या वे हम - आप तो नहीं ? यदि हाँ तो समस्या बहुत जटिल है । हम उनको लावारिश बनाते हैं ,हम गो शाला बनाते हैं और हम इसके भरण -पोषण हेतु भीख भी माँगते हैं , है न मजे की बात ?
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~
Friday, May 9, 2014
सुनाऊ तो किसको और कैसे ?
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नुक्कड़ की सोच
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