Friday, December 28, 2012

कौन सुनता है ? कोई तो सुनता ही होगा

दिल से कौन सुनता है ?


  • गुरुद्वारा से आ रही गुरुवानी की परम धुन को .....
  • मंदिर से  उठती ओम् की धुन को .....
  • मस्जिद से आ रही अल्लाह ओ अकबर की पुकार को .....
  • खाली पेट वाले की भूख के दर्द को ......
  • वक्त की पुकार को .....
  • सब के सीनें में दबी दर्द को ......
  • मीरा के भजन को .....
  • कबीर जी के वचनों को .....
  • नानक जी के ह्रदय के भाव को .....
  • गायत्री के छंद को ......
  • पृथ्वी की दर्द भरी आवाज को ....

ऎसी  एक नहीं अनेक बातें हैं, हम इन्शान को सुननें के लिए

 लेकिन ---

हम क्यों नहीं सुन पा रहे , कोई तो कारण होगा ही ?
जी , हाँ , कारण है और गहरा कारण है .....
हम यदि स्वयं को देखें तो एक चलती - फिरती लाश के अधिक नहीं जिसकें गति तो है ....
लेकिन
 चेतना नहीं 
ऐसा कौन सा धर्म ग्रन्थ है जो यह न कहता हो कि ----
परमात्मा तुम्हारे ह्रदय में है , हम जानते भी हैं लेकिन समझते नहीं , न ही समझनें की कोशिश करते हैं /

प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं : -----

बहुत कम लोग ऐसे हैं जो जानते हैं उसे अपनें ह्रदय से समझते भी हैं /

सौ साल जीना ब्यर्थ है यदि बेहोशी में जीया जाए
और
होश भरा एक  पल का जीवन ही वह जीवन है .....
जिसकी तलाश हम सब को है //

==== ओम् =====

Friday, December 21, 2012

केवल दो घडी , सोचना

  • आज कौन जीना चाहता है ?
  • आज कौन मरना चाहता है ?
  • आज मनुष्य अपनें जीनें - मरनें का क्या मापदंड बना रखा है
  • क्यों लोग भोग के लिए जीना और भोग के लिए मरना चाह रहे हैं ?
  • आज क्यों लोग परमात्मा को पीठ पीछे रख रहे हैं ?
  • आज क्यों मनुष्य की सोच नकारात्मक हो रही है ?
  • आज जितना भय मनुष्य को मनुष्य से है उतना भय और किसी जीव से नहीं , क्यों ?
  • आज का मनुष्य आखिर चाहता क्या है ? मात्रा कामना - काम की तृप्ति /
  • आज वे सबहीं पराये से क्यों दिखाते हैं जो पहले अपने हुआ  करते थे ?
बहुत सारे प्रश्न हैं और प्रश्न रहित मन - बुद्धि कभी शांत नहीं हो सकते / शांत मन - बुद्धि जिसे देखते हैं वह होता है परम सत्य और हम अपनें मन - बुद्धि को प्रश्न रहित करना नहीं चाहते , आखिर वह कौन सी मजबूरी है ?

एक घडी ही सही ....

आज नहीं तो कल ही सही ....

लेकिन ....

आप शांत मन - बुद्धि के आयाम में बैठ कर परम सत्य में जरुर डूबें /

==== ओम् =====

Wednesday, December 12, 2012

एक नज़र इस पर भी

कौन परमात्मा से नहीं मिलना चाहता ?
कौन परमात्मा की ओर पीठ करके रहना चाहता है ?
कौन शास्त्रों को नही पढ़ना चाहता ?
कौन शात्रों को अपनें  जीवन की डोर बनाना चाहता है ?
कौन गीता - उपनिषदों को नक्कारता है ?
कौन गीता - उपनिषदों को अपनें जीवन में उतारना चाहता है ?
कौन झूठ बोलना चाहता है ?
कौन सत्य पर यकीन करता है ?
कौन किसी से सलाह नहीं लेता ?
यहाँ सलाह देनें वालों की कतारें खडी हैं लेकिन उनकी सलाह को लेनें वाले कितनें हैं ?
मंदिर में प्रसाद लेनें वालों की लंबी लाइन लगी दिखती है लेकिन प्रभु के प्रसाद - प्राप्ति के बाद भी वे अतृप्त क्यों दिखते हैं ?
कौन किसको और कब अपना समझता है ?
मंदिर - गुरुद्वारा  में जा रहे हैं और साथ में पेस्तौल लटकाए हैं , क्यों प्रभु पर विश्वास नही ?
कौन प्रभु पर और किस लिए विश्वास करता है ?
प्रभु पर हमारा  विश्वास कितना गहरा है ?
** मैं बहुत  से ऐसे  लोगों से मिल रहा  हूँ जो राधे - राधे , कृष्ण - कृष्ण , राम - राम कहते हुए अब जीवन के आखिरी पायदान पर जा पहुंचे हैं / मैं  उनसे एक सवाल करता हूँ , क्या आप कभीं स्वप्न में भी  राधा को , या कृष्ण को या राम को देखा ? सब का एक उत्तर मिलता है , जी नहींऔर वह भी  गुस्से में  पर  एक सज्जन ऐसे भी मिले जो बतानें से पूर्व रो पड़े  और बोले , यदि दिखे होते तो आज यहाँ गंगा किनारे क्यों बैठा होता ?
सत् की स्मृति यदि गहरी हो तो जीवन सत् में गुजरता है
 न कि ....
जीवन सत्य की खोज में गुजरता है / 
बश एक पल , मात्रा एक पलांश जब गहरी सोच की लहर ह्रदय में उठेगी तब वह  स्वप्न में ही नहीं वर्तमान में आप के सामनें दिखनें लगेगा 
और 
तब आप वही कहेंगे जो गीता कहता है -----
वह सबे बाहर , सबसे दूर , सब के समीप , सब के अंदर है 
और 
सभीं उसके फैलाव स्वरुप हैं 
==== ओम् ========

Friday, December 7, 2012

अपनें को सुनो और देखो भी

एक सूनी सड़क के मध्य खडा हो कर सड़क को देखो ....
सड़क एक दम सीधी हो तो उत्तम रहेगा /
दोनों किनारे एक दूसरे के समानांतर चलते हैं पर .....
सड़क के दोनों किनारे सामनें कही दूर आपस में मिलते हुए से दिखते हैं .....
लेकिन ऐसा होता नहीं /
क्या कभीं आप  अपनें इस  भ्रान्ति के सम्बन्ध में सोचा है ?
दोनों किनारे समानांतर चलते हैं और आपस में मिलते  हुए से भी  दिखते हैं .....
दो आँखें और एक बुद्धि हमें किस भ्रान्ति में रख रहे हैं ....
आप कभीं इस पर सोचा नहीं होगा ?

सड़क की भांति हमारे जीवन का भी रहस्य है .....
भोग - योग दोनों समानांतर चलते से दिखते हैं लेकिन ऐसा है नहीं /
भोग एक माध्यम है जिसमें उठा होश ही योग है और योग वाहन पहुंचाता है ......
जहाँ दोनों मिलते से दिखते भर नहीं मिलते भी हैं ....
और उस मिलन को कहते हैं अब्यक्त , अचिन्त्य , अप्रमेय , ब्रह्म और .......
सांख्य - योगी जिसे कहते हैं परम पुरुष और ......
जिसे ध्यान में उतरे योगी अपनें ह्रदय में देखते हैं ....
ब्रह्म चारी अपने ब्रह्म चर्या में पाते हैं ....
तप करनें वाले अपनें तप की ऊर्जा में देखते हैं ...
और ...
प्रेमी  अपनें प्यार में पाते हैं //
=== ओम् =====

Sunday, December 2, 2012

जबतक -------

[क] जबतक श्वासें चल रही हैं , उसके लिए

  • अपनें - पराये हैं
  • यह तेरा और यह मेरा है
  • जाति - धर्म है
  • दिन - रात हैं
  • सुख - दुःख है
  • अच्छा - बुरा है
और ----
वह सब है जो चाह आधारित  है
लेकिन -----

[ख] जब श्वासें चलानी बंद हो जाती है , तब

  • वह स्वयं अपना सांसारिक अस्तित्व खो बैठता है
  • पलंग से उसे उसके अपनें ही उठा कर जमीं पर लिटा देते हैं
  • उसका नाम रामानंद - ज्ञानानंद नहीं रह जाता 
  •  उसे अब उसके अपनें ही मुर्दा कहनें लगते हैं
  • उसकी कोई जाति नहीं रहती
  • उसका कोई धर्म नहीं होता
  • उसकी कोई चाह नहीं रहती , भौतिक स्तर पर
  • उसके लिए उसके कोई अपनें - पराये नहीं रहते
  • उसे सुख - दुःख , गर्म - ठंढा और अन्य सभीं  द्वैत्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
  • उसे संसार में हो रही घटनाएँ नहीं हिला पाती
और ----
वह जिस आयाम में होता है उसके लिए .......
उस घडी जो रहता है , उसे गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ----
अब्यय , अप्रमेय , अब्यक्त , सनातन
और .....
मनुष्य जीवन भर भागता रहता है , जो उसे मिलता है उससे उसे क्षण भर की शांति मिलती है लेकिन .....
वे धन्य हैं ----
जिनको उनकी श्वास चलते अपनी श्वासों के मध्यम से उस परम अब्यय की खुशबू मिल जाती है ----
और उस खुशबू में वे तृप्त हो उठते हैं
उनके लिए ---
सभीं द्वित्य तिरोहित हो उठते हैं
और ---
वह अद्वैत्य की ऊर्जा में अलमस्त रहता है
=== ओम् =====