[क] जबतक श्वासें चल रही हैं , उसके लिए
- अपनें - पराये हैं
- यह तेरा और यह मेरा है
- जाति - धर्म है
- दिन - रात हैं
- सुख - दुःख है
- अच्छा - बुरा है
वह सब है जो चाह आधारित है
लेकिन -----
[ख] जब श्वासें चलानी बंद हो जाती है , तब
- वह स्वयं अपना सांसारिक अस्तित्व खो बैठता है
- पलंग से उसे उसके अपनें ही उठा कर जमीं पर लिटा देते हैं
- उसका नाम रामानंद - ज्ञानानंद नहीं रह जाता
- उसे अब उसके अपनें ही मुर्दा कहनें लगते हैं
- उसकी कोई जाति नहीं रहती
- उसका कोई धर्म नहीं होता
- उसकी कोई चाह नहीं रहती , भौतिक स्तर पर
- उसके लिए उसके कोई अपनें - पराये नहीं रहते
- उसे सुख - दुःख , गर्म - ठंढा और अन्य सभीं द्वैत्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
- उसे संसार में हो रही घटनाएँ नहीं हिला पाती
वह जिस आयाम में होता है उसके लिए .......
उस घडी जो रहता है , उसे गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ----
अब्यय , अप्रमेय , अब्यक्त , सनातन
और .....
मनुष्य जीवन भर भागता रहता है , जो उसे मिलता है उससे उसे क्षण भर की शांति मिलती है लेकिन .....
वे धन्य हैं ----
जिनको उनकी श्वास चलते अपनी श्वासों के मध्यम से उस परम अब्यय की खुशबू मिल जाती है ----
और उस खुशबू में वे तृप्त हो उठते हैं
उनके लिए ---
सभीं द्वित्य तिरोहित हो उठते हैं
और ---
वह अद्वैत्य की ऊर्जा में अलमस्त रहता है
=== ओम् =====
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