Saturday, November 22, 2014

कतरन भाग - 3

* नाना प्रकार के जीव प्रकृति में जन्म - जीवन - मृत्यु के चक्र का मजा ले रहे हैं । जीवों में मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो अपनें अन्दर भोग और भगवान दोनों की चाह रखता है ; कभीं भोग - भाग उस को नियंत्रित करता है तो कभीं परमात्मा की सोच उसे चैन से भोग में घडी भर से ज्यादा रुकनें नहीं देती । इस भोग -भगवान के मध्य एक साधारण पेंडुलम की भांति मनुष्य चक्कर काट रहा है । 
* शायद ही कोई ऐसा हो जिसके मन में कभीं यह संदेह न उठता हो कि क्या परमात्मा है भी ? परमात्मा है या परमात्मा नहीं है - इन दो सोचों के मध्य मन संदेह की रस्सी से ऐसा बधा हुआ है कि उसे घडी भर को भी चैन नहीं । 
* परमात्मा है - इस सोच में डूबा मन , मंदिर , गुरुद्वारा , चर्च और मस्जिद आदि का निर्माण करते नहीं थकता और परमात्मा नहीं है कि उर्जा से भरा मन जो कर रहा है , उसको क्या ब्यक्त 
करें ? आप -हम सब लोग हर पल अपनें चारो तरफ देख ही रहे
 हैं ।
 * एक बार बंगाल के एक शास्त्री जी अपनें 500 शिष्यों के साथ परम हंस श्री रामकृष्ण जी के पास दक्षिणेश्वर मंदिर पधारे । वे कुछ दिन पहले संदेसा भेजवाये थे कि मैं अपनें समर्थकों के साथ आप के पास आ रहा हूँ । मैं आप को बताना चाहता हूँ कि देवी - देवता और और परमात्मा मात्र एक भ्रम है ,इनका कोई अस्तित्व नहीं है ।
 * कई दिनों तक शास्त्री जी परम हंस जी को अपनें तर्क के आधार पर बतानें की कोशिश की कि आपकी काली माता की सोच मात्र एक भ्रम है , देवी -देवता और परमात्मा नाम को कोई चीज नहीं , जो है वह सब प्रकृति -पुरुष के योग से है । 
* जब भी शास्त्री जी बोलना बंद करते ,परम हंस जी नाचनें लगते और शास्त्री जी के पैरों पर गिर कर कहते - हे मेरे प्रभु ! मेरे से ऐसा क्या गुनाह हुआ कि आप बोलना बंद कर दिए ? बोलिए न ? * शास्त्री जी बोल -बोल कर थक गए और मौन हो गए । कुछ दिन यों ही मौन में रहे । एक दिन सुबह -सुबह उनका एक प्रमुख शिष्य बोला ," आचार्य ! अब हम सबको वापिस चलना चाहिए ।
" शास्त्री जी बोले , " तुम सब जाओ और खोजो , हमें तो वह मिल गया जिसकी खोज में मैं अभीं तक भाग रहा था ।" 
# शास्त्री जी परमहंसजीके साथ अपना जीवन गुजार दिया ।
 # शास्त्री जी अपनें संस्मरण में लिखते हैं ," मुझे आजतक कोई पता नहीं कि परमात्मा क्या है लेकिन परम हंस जी से जब आँखें मिलती हैं तब ऐसा लगनें लगता है कि - हो न हो यही परमात्मा
 हो ।" 
# अब आप सोचो कि परमात्मा है या नहीं । 
<> क्या करोगे सोच के ? नानक जी कहते हैं ," सोचै सोच न होवहीं " अर्थात उसकी सोच की उपज हमारी सोच से संभव
 नहीं । क्यों संभव नहीं ? क्योंकि हमारी सोच गुण - तत्त्वों एवं अहंकार की उपज है जबकि उसकी सोच इनके परे की है । 
<> 10 दिन अपनें मनके द्वार पर चौकीदारी करो । यह देखते रहो कि इन दो बातों में से एक भी बात आपके मन में प्रवेश न कर
 सके । 
<> यह 10 दिनका अभ्यास - योग आपको परम सत्य से भर देगा <> 
...... ॐ .......

Sunday, November 16, 2014

कतरन भाग - 2

<> आये दिन हम लोगों के अन्तः करण के दर्द की आवाज कि लगता है अब सारे रास्ते बंद हो चुके हैं को सुनते रहते हैं पर चूँकि यह दर्द की आवाज किसी और की होती है अतः इसका हम पर कोई असर नहीं पड़ता । 
<> आइये ! आज हम और आप मिल कर सोचते हैं इस दर्द की आवाज पर । 
* हम यह तो कहते - सुनते रहते हैं कि परमात्मा सभीं जड़ -चेतन में एक समान है पर यह बात हमारे अनुभव में नहीं घटती और बिना अनुभव ज्ञान , अज्ञान ही बना रहता है क्योंकि बिना अनुभव हम स्वयं अज्ञानी रहते हैं । 
* मन -बुद्धि की वह स्थिति जहाँ सभीं रास्ते बंद नज़र आते 
हों  , एक परम घटना है जो स्थिर - प्रज्ञता में पहुँचा सकती है । स्थिर - प्रज्ञ रास्ता नहीं खोजता वह जहाँ और जैसे होता है वहाँ उसके चारों तरफका क्षेत्र और वह स्वयं परममय होता है । 
 * लेकिन ऐसा ब्यक्ति जो यह कहता है कि ,' लगता है , अब सभीं रास्ते बंद हो चुके हैं ' , वह किसी न किसी रूप में किसी ऐसे रास्ते की तलाश में डूबा हुआ रहता है जिन रास्तों पर वह पहले भी चलता रहा है और जिनकी यात्रा उसे यहाँ तक पहुँचाई है कि वह पूर्ण निराशा में डूब रहा है ।
 * मन -बुद्धि की यह निराशा भरी स्थिति में होश की अगर एक किरण पड़ जाय तो यहीं मन -बुद्धि का आयाम प्रभुमय बना सकता है ।
 ** प्रभु हमसे दूर नहीं , हम उससे दूर भाग रहे हैं । 
** प्रभु कहीं दूर तीर्थों में नहीं मिलता ,वहाँ होश की वह किरण मीलती है जो हमारे अन्दर बसे प्रभु का दर्शन कराती है । 
** जब हमेंस्वयं पर यकीन नहीं फिर यह यकीन कैसे हो कि हमारे अन्दर प्रभु हैं ।
 <> प्रभुममें बसनें का एक ही रास्ता है - संदेह पर संदेह करना प्रारम्भ करो । यह ध्यान -विधि आपको संदेह रहित बना कर श्रद्धा में स्थिर कर देगी और श्रद्धा प्रभु को पहचानती है ।
 ~~~ ॐ~~~

Monday, November 10, 2014

कतरन भाग - 1

● कतरन भाग - 1●
# कबतक सहारेके इन्तजार में बैठे और उसके बारे में सोचते हुए समय को बर्बाद करते रहोगे ? क्या तुम्हें अपनें पर भरोषा नहीं कि अकेले कुछ कर
सको ? उठो और कदम बढाओ आगे , समय की गति को कौन जानता है , कहीं देर न हो जाए ।
# तुम भी उनकी तरह ही हो,एक इंच भी उनसे छोटे नहीं , फिर क्यों अपनें को सिकोड़ते चले जा रहे हो ? उठो , उनको प्रणाम करो ,जिनका तुम इंतज़ार कर रहे हो और अहंकार रहित भाव दशा में अपनें भविष्य निर्माण का पहला कदम भरो ।
# सच्ची लगन से तुम अपना पहला कदम तो उठाओ, दूसरा सही कदम स्वतः उठेगा, तुम संदेह क्यों करते हो , संदेह में सत्य असत्य सा दिखने लगता है ।
# पराश्रित रहना स्वयं को जीते जी कब्र में रखनें जैसा है ,मनुष्य हो ; मात्र मनुष्य एक ऐसा प्रकृति का उपहार है जिसके आश्रित संपूर्ण जड़ -चेतन हैं और यदि वह किसी के आश्रय जीना चाहता है तो वह जियेगा सही लेकिन मुर्दे जैसी जिंदगी उसे
मिलेगी ।परमात्मा के सहारे पर भरोषा मजबूत करो। क्या किसी ब्यक्ति के सहारे के भिखारी बनें बैठे हो ? एक भिखारी दुसरे भिखारी को क्या दे सकता है ? ज़रा गंभीर हो के सोचो तो सही ?
# क्या कभीं इस बात पर सोचते हो कि तुम जिससे सहारा चाह रहे हो , वह स्वयं किसी के सहारे का भिखारी है , तुम इतना तो जानते हो कि तुम्हारे अन्दर परमात्मा रहता है जो सभीं सहारों का सहारा है , फिर क्यों बाएं - दायें देख रहे हो कि कोई मिल जाय , उससे बड़ा और कौन है ?
~~ ॐ ~~

Sunday, November 2, 2014

कुछ तो सुनते ही हैं

# पृथ्वी के पास क्या नहीं है ? पेट्रोल , कोयल ,
गैस , सोना ,चांदी , हीरे और वह सब कुछ जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं पर क्या कभीं पृथ्वी सीना तान कर कुछ कहती भी है ?
# अब ज़रा अपनें को देखते हैं । क्या हमारे पास कोई ऐसी चीज है जिसको हम पृथ्वी से न चुराए हों ? सोचना पड़ेगा और यह कहते मुह नहीं दुखता कि हमारे पास यह है ,वह है आदि -आदि ,अरे भाई ! जो हमारे पास है ,वह हमारा कैसे हुआ ? क्या किसी चीज पर अपनीं मोहर लगानें से अपनीं हो जाती है ,क्या ?
# क्या पृथ्वी कुछ कहती भी है ? मनुष्य कहेगा जी नहीं , पृथ्वी क्या कहेगी ? लेकिन पृथ्वी भी कहती है जिसकी आवाज मनुष्यको छोड़ अन्य सभीं जीव सुनते हैं और उसकी बात को मानते भी हैं ,ऐसे जीव जिनका सम्बन्ध पृथ्वी से है ।
#अब एक नज़र इस पर भी :
* जब भूकप्प आता है ...
* जब तूसामी अपना जलवा दिखाती है ...
* या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा आती है ..
°° तब कौन मरते हैं ?
1- मनुष्य और पालतू जीव जिनको मनुष्य अपनें स्वार्थ - सिद्धिके लिए गुलाम बना रखा है ।
~ पर ~
2- जंगल में प्रकृति की गोद में बसेरा करनें वाले आदि बासी और अन्य जीवोंके मरनें की संभावना बहुत कम रहती हैं ,क्यों ? क्योंकि वे आपदा आनें से पहले पृथ्वी की आवाज को सुन लेते हैं और अपनीं सुरक्षाका बंदोबस्त आपदा आनें से पहले कर लेते
हैं ।
^^ मनुष्य जैसे - जैसे प्रकृति से दूर होता जा रहा है , उसकी तन्हाई बढती जा रही है और प्रकृति जो समझने के लिए उपकरणों का निर्माण करनें में अपनी ऊर्जा लगा रहा है । उपकरणों का निर्माण करो पर स्वयं को प्रकृति से दूर न रखो
# विज्ञान तर्क आधारित है ....
# तर्क संदेह आधारित है ....
~~~ और ~~~
● सत्य तर्क - वितर्क और संदेह से परे है ● ………ॐ ………