<> आइये ! आज हम और आप मिल कर सोचते हैं इस दर्द की आवाज पर ।
* हम यह तो कहते - सुनते रहते हैं कि परमात्मा सभीं जड़ -चेतन में एक समान है पर यह बात हमारे अनुभव में नहीं घटती और बिना अनुभव ज्ञान , अज्ञान ही बना रहता है क्योंकि बिना अनुभव हम स्वयं अज्ञानी रहते हैं ।
* मन -बुद्धि की वह स्थिति जहाँ सभीं रास्ते बंद नज़र आते
हों , एक परम घटना है जो स्थिर - प्रज्ञता में पहुँचा सकती है । स्थिर - प्रज्ञ रास्ता नहीं खोजता वह जहाँ और जैसे होता है वहाँ उसके चारों तरफका क्षेत्र और वह स्वयं परममय होता है ।
* लेकिन ऐसा ब्यक्ति जो यह कहता है कि ,' लगता है , अब सभीं रास्ते बंद हो चुके हैं ' , वह किसी न किसी रूप में किसी ऐसे रास्ते की तलाश में डूबा हुआ रहता है जिन रास्तों पर वह पहले भी चलता रहा है और जिनकी यात्रा उसे यहाँ तक पहुँचाई है कि वह पूर्ण निराशा में डूब रहा है ।
* मन -बुद्धि की यह निराशा भरी स्थिति में होश की अगर एक किरण पड़ जाय तो यहीं मन -बुद्धि का आयाम प्रभुमय बना सकता है ।
** प्रभु हमसे दूर नहीं , हम उससे दूर भाग रहे हैं ।
** प्रभु कहीं दूर तीर्थों में नहीं मिलता ,वहाँ होश की वह किरण मीलती है जो हमारे अन्दर बसे प्रभु का दर्शन कराती है ।
** जब हमेंस्वयं पर यकीन नहीं फिर यह यकीन कैसे हो कि हमारे अन्दर प्रभु हैं ।
<> प्रभुममें बसनें का एक ही रास्ता है - संदेह पर संदेह करना प्रारम्भ करो । यह ध्यान -विधि आपको संदेह रहित बना कर श्रद्धा में स्थिर कर देगी और श्रद्धा प्रभु को पहचानती है ।
~~~ ॐ~~~
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