* शायद ही कोई ऐसा हो जिसके मन में कभीं यह संदेह न उठता हो कि क्या परमात्मा है
भी ? परमात्मा है या परमात्मा नहीं है - इन दो सोचों के मध्य मन संदेह की रस्सी से ऐसा बधा हुआ है कि उसे घडी भर को भी चैन
नहीं ।
* परमात्मा है - इस सोच में डूबा मन , मंदिर , गुरुद्वारा , चर्च और मस्जिद आदि का निर्माण करते नहीं थकता और परमात्मा नहीं है कि उर्जा से भरा मन जो कर रहा है , उसको क्या ब्यक्त
करें ? आप -हम सब लोग हर पल अपनें चारो तरफ देख ही रहे
हैं ।
* एक बार बंगाल के एक शास्त्री जी अपनें 500 शिष्यों के साथ परम हंस श्री रामकृष्ण जी के पास दक्षिणेश्वर मंदिर पधारे । वे कुछ दिन पहले संदेसा भेजवाये थे कि मैं अपनें समर्थकों के साथ आप के पास आ रहा हूँ । मैं आप को बताना चाहता हूँ कि देवी - देवता और और परमात्मा मात्र एक भ्रम है ,इनका कोई अस्तित्व नहीं है ।
* कई दिनों तक शास्त्री जी परम हंस जी को अपनें तर्क के आधार पर बतानें की कोशिश की कि आपकी काली माता की सोच मात्र एक भ्रम है , देवी -देवता और परमात्मा नाम को कोई चीज नहीं , जो है वह सब प्रकृति -पुरुष के योग से है ।
* जब भी शास्त्री जी बोलना बंद करते ,परम हंस जी नाचनें लगते और शास्त्री जी के पैरों पर गिर कर कहते - हे मेरे प्रभु ! मेरे से ऐसा क्या गुनाह हुआ कि आप बोलना बंद कर
दिए ? बोलिए न ?
* शास्त्री जी बोल -बोल कर थक गए और मौन हो गए । कुछ दिन यों ही मौन में रहे । एक दिन सुबह -सुबह उनका एक प्रमुख शिष्य बोला ," आचार्य ! अब हम सबको वापिस चलना चाहिए ।
" शास्त्री जी बोले , " तुम सब जाओ और खोजो , हमें तो वह मिल गया जिसकी खोज में मैं अभीं तक भाग रहा था ।"
# शास्त्री जी परमहंसजीके साथ अपना जीवन गुजार दिया ।
# शास्त्री जी अपनें संस्मरण में लिखते हैं ," मुझे आजतक कोई पता नहीं कि परमात्मा क्या है लेकिन परम हंस जी से जब आँखें मिलती हैं तब ऐसा लगनें लगता है कि - हो न हो यही परमात्मा
हो ।"
# अब आप सोचो कि परमात्मा है या नहीं ।
<> क्या करोगे सोच के ? नानक जी कहते हैं ," सोचै सोच न होवहीं " अर्थात उसकी सोच की उपज हमारी सोच से संभव
नहीं । क्यों संभव नहीं ? क्योंकि हमारी सोच गुण - तत्त्वों एवं अहंकार की उपज है जबकि उसकी सोच इनके परे की है ।
<> 10 दिन अपनें मनके द्वार पर चौकीदारी करो । यह देखते रहो कि इन दो बातों में से एक भी बात आपके मन में प्रवेश न कर
सके ।
<> यह 10 दिनका अभ्यास - योग आपको परम सत्य से भर देगा <>
...... ॐ .......
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