● उस घडी जब महाकाल सामनें खड़ा होता
है , सोच -सोच में जो जीवन गुजरा होता है , इसकी फिल्म हमारे नज़र के सामनें चल रही होती है और हम उस समय उसे देख नहीं
पाते ,रह -रह कर करवट बदलते रहते हैं पर जिधर भी हमारी नज़र पड़ती है ,उधर ही वह हमारे जीवन की फिल्म दिखती रहती है ।
● ऐसी परिस्थिति में हम न उसे नक्कार सकते हैं और न ही देख सकते हैं और ----
<> जब आँखें बंद होनें लगती हैं ,तब वह काल हमारे लिंग शरीर को स्थूल शरीर से खीच लेता है और हमारा लिंग शरीर ,स्थूल शरीर को देखते हुए महाकाल के संग यात्रा पर निकल जाता है ।
** लिंग शरीर क्या है ? यह वैसा होता है जैसे हवाई जहाज़ के ब्लैक बाक्स में स्थित घटनाओं का हिसाब -किताब रखनें वाला सूक्ष्म यंत्र होता है ।
** मनवा काहे तूँ घबडाये **
~~~ ॐ ~~~
5 comments:
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