Monday, September 30, 2013

एक नज़र - 2

● एक नज़र - 2 ●
1- सब लोग शांतिकी खोज में हैं लेकिन शांति में कोई बसना नहीं चाहता क्योंकि शांति मौत के मार्ग को दिखाती है ।
2- परायेको अपना बनाते - बनाते अपनें पराये हो जाते हैं और भनक तक नहीं मिल पाती , है न मजे की बात ?
3- जो खुश हैं इस संसार में वे या तो ब्रह्म वित् हैं या पूरे मूढ़ , दूसरा खुश हो नहीं सकता ।
4- मन और मन नियंत्रित इन्द्रियोंसे प्यार हो नहीं सकता , प्यार तो उनको मिलता है जो प्रभुमें बसेरा करते हैं ।
5-पृथ्वी उन पर हसती है जो इसे अपना गुलाम रूप में देखते हैं , वह कहती है - देख अपनें गुलामके दिलको , तूँ जब भी पनाह के लिए परेशान होगा , कोई तेरे अपनें तुमको पनाह न देंगे तब तुम मेरे पास आना , ढाई गज जगह तेरेको तो मिलेगी ही ।
6- भिखारी हो या सम्राट सबको एक दिन इस मिटटी में मिल जाना है ।
7- क्यों इतनी तेज गतिसे सब भाग रहे हैं ? कुछ तो कारण होगा ही । सब लोग दुःख से दूर सुख में सर्वोपरि स्थान पर आखिरी श्वास भरना चाहते हैं लेकिन सच्चाई क्या है ?
8- जिसे हम अपना बनाते हैं वह पराया हो जाता है , क्या हममें कोई कमी है ?
9- जिस डाल को हम हिलाते हैं उस डाल से आम नही टपकता , टपकता कहीं और से है फिर हम
बार - बार क्यों डाल हिला रहे हैं ?
10- जिस पेड़पर फूल खिल रहे होते हैं उसके नीचे जमीन पर कल के खिले फूल आखिरी श्वास भर रहे होते हैं लेकिन अपनीं आगे की पीढ़ी की मुस्कान देख कर वे खुश रहते हैं ।
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, September 24, 2013

एक में अनेक

●● एकमें अनेक●●
1- दर्द की दवा है श्रद्धा , श्रद्धा भक्तकी उर्जा है , जिसका केंद्र है भगवान जहाँ दर्द आनंदका ही एक रूप होता है
2- है न कमाल ! उसे सभीं खोज रहे हैं , और वह सबको देख रहा है
3- वह जिसके रूप, रंग , गंध , स्पर्शका कोई इल्म नहीं उसे हम खोज रहे हैं
4- देखते हैं और रोज देखते हैं कि डूबता सूरज वही है जिसे उगते समय हम जल चढ़ाये थे लेकिन यह भूल जाते हैं कि जन्म जिस तख्ती पर लिखा है उसी पर दूसरी तरफ मौत भी लिखा है
5- मौतका भय उसके लिए है जिसके ह्रदयमें प्रभुके लिए कोई जगह नहीं
6- कुछ भी कर लो , कुछ भी बन जाओ लेकिन तबतक चैन न मिलेगा जबतक भक्ति की हवा नहीं लगती
7- कुछ दिन और , फिर देखना जैसे जंगलमें बीमार पशुका अंत होता है वैसा अंत निर्धन ब्यक्तियोंका राज पथों पर होगा
8- पहले सर दर्द - बदन दर्द होता था जिसके इलाजके लिए वक़्त मिल जाता था लेकिन अब तो हृदयदर्दके मरीज ज्यादा हो रहे हैं जहां इलाजके लिए वक़्तही नहीं मिल पाता
9- मुट्ठी भर लोग हैं जो अपनीं चादर से पृथ्वी को ढक रखा है , उनके ही मंदिर हैं , उनके ही ऋषि लोग हैं , उनके ही अदालते हैं और उनके ही राजा हैं लेकिन इस संसारमें प्रजाकी उंगली पाकड़ने वाला कोई नहीं है , अगर कोई होगा तो वह परमेश्वर ही होगा
10- शांति सभीं चाहते हैं पर शांत कोई नही रहता ~~~~ ॐ ~~~~

Tuesday, September 17, 2013

सिद्धोकी बस्ती - 1

¢ सिद्धो की बस्ती - ¢ 
" In the oriental conception , there is something that exists beyond the ordinary perception of things which is beyond the minds' reasoning . " 
~~ Einstein ~~ 
°° जो राग-द्वेषसे सम्मोहित हैं , उनके लिए एक संदेह भरी कल्पना है । 
°° जो तत्त्व योगीका बसेरा है । 
°° जो खोजिओं का लक्ष्य है ।
 ● उस सिद्ध लोगोंकी बस्तीकी एक झांकी आपको यहाँ दिखानेंका असफल प्रयास किया जा रहा है , आइये ! ध्यान -मार्गसे चलते हैं उस बस्तीकी ओर :----
 सन्दर्भ : भागवत : 9.12 , 9.22 , 11.15
 <> श्री रामके पुत्र कुशसे आगे 19वें बंसज मरू एवं कौरव -पाण्डव बंशमें शंतनुके बड़े भाई देवापि सिद्ध हैं ,दोनों आज कलाप गाँवमें रह रहे हैं । कहाँ हो सकता है यह कलाप गाँव ? ऐसी सिद्धों की तीन बस्तियाँ हैं जो आज भी रहस्य दर्शियों और खोजिओंके लिए रहस्य हैं - काशी , कूफा और कलाप ।
 ** कलियुगके अंतमें सूर्य -चन्द्र बंशी क्षत्रियोंका बंश जब समाप्त हो जायेगा तब ये दोनों - मरू एवं देवापि क्रमशः सूर्य बंश एवं चन्द्र बंशकी पुनः स्थापना करेंगे ,यह बात भागवतमें है । 
● क्या हैं यह सिद्धियाँ ? 
<> प्रभु श्री कृष्ण अपनी स्वधाम यात्राके समय अपनें मित्र उद्धवको उपदेश देते समय 18 प्रकार की सिद्धियोंको ब्यक्त कियाहै। सिद्धि साधनासे प्राप्त वह आयाम है जहाँ साधक अपनीं इन्द्रियोंसे वह करनें में सक्षम होता है जो एक सामान्य ब्यक्ति के लिए अचम्भा है । 
^^ कौन है सिद्ध ? 
सिद्धि प्राप्त योगी अभेद्य दीवारों , चट्टानों आदि से गुजर सकता
 है , अपनेंको मनकी गति से चला सकता है , अपनीं कल्पना करनें मात्र से बस्तुओंको प्राप्त कर सकता है , स्व इच्छासे अपनें रूप -रंगको बदल सकता है , दृश और अदृश्य दोनों मेंरह सकता है , भोजन ,वायु और पानी बिना रह सकता है और त्रिकाल दर्शी होता है । 
^^ सिद्धि क्या है ? 
 साधनाके पूर्ण होनें पर सिद्धिका आयाम मिलता है । सिद्धि प्राप्तिके बाद जो लोग सिद्धि का प्रयोग ब्यापार की तरह करनें लगते हैं और पुनः नियमित ध्यानको त्याग देते हैं ,वे धीरे -धीरे अपनीं विशुद्ध उर्जा खोनें लगते हैं और पुनः भोग में उतर आते हैं । सिद्धि प्राप्तिके बाद जो सिद्धिका प्रयोग नहीं करते और ध्यानका त्याग भी नहीं करते उनको परम गति मिलती है और वे आवागमन से मुक्त हो जाते हैं । 
<> सिद्ध पुरुष जो परमात्मामें अपना बसेरा बना रखा होता है उसे भोगी नहीं देख सकता। 
● भागवतमें ब्यक्त कलाप गाँव ठीक अल्कूफा गाँव जैसा है जो सिद्ध सूफी संतोंकी बस्ती है और जिसको फ़्रांसिसी खोजी पिछले पांच सौ सालसे खोज रहे हैं । अल कूफा गाँव इरान -ईराक के रेगिस्तान या सऊदी अरबके रेगिस्तानमें कहीं है लेकिन अभीं तक कोई ब्यक्ति ठीक तरहसे इस अदृश्य गाँवको पकड़ नहीं पाया है पर इसके होनें के कई प्रमाण मिल चुके हैं । 
<> बुद्ध मान्यतामें ऐसे सिद्धों को अरहन्त और जैन परम्परामें जिन कहते हैं । जो ध्यानकी उस परम गहराई को छूता है जहाँ से परम पदकी सीमा प्रारम्भ होती है , वह सिद्ध होता है । सिद्ध चाहे तो परम धाम जा सकता है और चाहे तो ध्यानियोंको मार्ग दिखानेंके लिए मृत्यु लोकमें रह सकता है । सिद्ध साकार और निराकार दोनों आकारोंमें भ्रमण करते हैं । 
<> ध्यानका पुजारी जो निर्विकार स्थिति में अपनें भ्रमण कालमें जब सिद्ध क्षेत्रसे गुजरता है तब वह क्षेत्र उसे खीचनें लगता है और उस क्षेत्रसे बाहर वह नहीं होना चाहता। 
 ● जहाँ जाने - अनजानें में पहुचनें पर बाहर की निर्विकार उर्जा नाभि मार्गसे देहमें भरनें लगे और देह रोमांचित हो उठे और ऐसा लगनें लगे कि हमें वह मिल गया है जिसकी हमें तलाश थी , तो वह क्षेत्र सिद्धों का क्षेत्र होता है ।वह जो वहाकं की ऊर्जा की तीब्रता को सहनें नें सक्षम हो कर वहाँ रुक जाता है ,वह उसे पा लेता है जिसके लिए वह कई जन्मों से भाग रहा है । 
● सिद्ध समयातीत होते हैं । सिद्ध भोगीको पहचानते हैं पर भोगी सिद्धको नहीं पहचानता। 
<> इजिप्तमें पिरामिडकी ख़ोज करनें वाले लोगों में कितनें ऐसे हैं जो सत्यको देखते ही आम लोगोंके लिए पागल सा दिखनें लगे क्योंकि वे जो देखे , उसे न औरोंको दिखा सके और न उसे ब्यक्त कर पाए अतः लोग उन्हें पागल की संज्ञा दे दिए । पिरामिडोंके अन्दर जानें पर ऐसे लोग , वैज्ञानिक थे लेकिन अन्दर जानेंके बाद उनकी उर्जा बदल गयी ,वे सत्य को देखनें में सफल हुए पर बाहर आ कर अपनें अनुभूति को ब्यक्त न कर पाए और उनके अपनें ही साथी पागल कहनें लगे। आज तक इस बात पर कोई अनुसंधान नहीं हुआ की आखिर ऐसे लोग क्यों अपनी स्मृति खो दी ? 
* अल्कूफाकी खोज करनें वालों में भी बहुतसे लोग पागल हो चुके हैं , आम लोगोंकी दृष्टिमें लेकिन वे पागल नहीं हैं , उनका मार्ग भर बदल गया है , वे सत्य को समझ गए हैं पर सत्य को ब्यक्त नहीं कर पाए । 
** सत्य भोग केन्द्रितके लिए एक भ्रम है और योगीके लिए भोग एक सहज मार्ग है जो सत्यमे पंहुचा सकता है । 
** भोग की सीमा जहां समाप्त होती है वहांसे ध्यान प्रारम्भ होता
 है । 
** ध्यानमें आँखे बंद होती हैं पर मार्ग स्पष्ट दीखता रहता है । 
** ध्यानके पीठ पीछे भोगका आयाम होता है और भोगकी ग्रेविटी बहुत शक्तिशाली है । 
** ध्यान वह चिराग है जो वह रोशनी देता है जिससे अब्यक्त ब्यक्त हो उठता है । 
** सिद्ध बस्तीमें ऐसा ब्यक्ति जो भोगके आखिरी सीमा पर खड़ा होता है , वहाँ का ऊर्जा क्षेत्र उसके अन्दर की ऊर्जा को रूपांतरित कर देता है और वे अपनें राग -द्वेष एवं अहंकारसे बनी स्मृति को खो कर अपनें मूल स्मृति में पहुँच जाते हैं । 
** ऐसे ब्यक्ति भोग संसार के लिए पागल होते हैं और साधनाके लिए सिद्ध योगी होते हैं। 
 ~~~ ॐ ~~~

Sunday, September 15, 2013

स्व चिंतन - 01

● स्वचिंतन ●
1- स्व दर्पण पर अपनें मूल चेहरे को देखो लेकिन इस दर्पण को साफ़ तो करना ही होगा जो ध्यानसे संभव है ।
2- अपनीं आँखोंसे मोहका चस्मा उतारो और निर्मोह आँखोंसे जो दिखे उस पर सोचो नहीं , उसे अपनें हृदय में पहुँचाओ , तुम्हें आश्चर्य होगा कि वह तुम्हारे हृदय में पहले से है ।
3- जब सबमें तुम और तुममें सब दिखनें लगें तब आँखें स्वयं बंद हो जाती हैं ।
4- जो कल आपके साथ थे , उनमेंसे कुछ आज आपके साथ न होंगे , जो आज आपके साथ हैं उनमें से कुछ कल न होंगे और यह चक्र चलता ही रहेगा । आप कल भी चुक गए थे , देखना आज भी न चूक जाना , बार - बार चुकनें से जीवन सत्य से दूर होता जाता है । जो आप को आज मिला है , वह आपको कुछ दे रहा है लेकिन आप तो अपनीं मुट्ठी बंद किये और आँखें बंद किये उनकी ओर पीठ किये बैठे हो फिर इस स्थितिमें आपको क्या मिलेगा ? क्या बार - बार चुकते रहनें के लिए प्रभु आप को भेजा है ? जीवन भाग रहा है आगे की ओर और आप सरक रहे हैं पीछे की ओर फिर ऐसे में आपको एक बेहोशी भरी मौत के अलावा और क्या मिलेगा ? प्रभु आप से पूछेगा कि तुमको इतनें मौके मिले लेकिन तुम गवाते रहे , आखिर तुम मनुष्य योनि में रहते हुए पशु - जीवन गुजारा अतः अब तुमको वही मिल रहा है जो तुमको भाता रहा है , जाओ और अगला जीवन काम - भोजनकी तलाश में गुजार कर जब तृप्त हो जाना तब पुनः मेरे पास आना ।
5- जिनके कारण तुम सम्राट बन कर चल रहे हो , उनको धन्यबाद देना भी नहीं चाहते ? ज़रा अकेलेमें सोचना कि प्रभुके सामनें जब तुम और ओ आमानें सामनें होगे तब तुम्हारी स्थिति क्या होगी ?
6- अभी भी वक़्त है , अभी तुम इतनी ऊचाई पर नहीं पहुँचे जहाँ से नीचे गिरनें से तुम्हारा अस्तित्व खतरेमें पड़ जाय , जाओ और उनका नमन करो जिनके प्रसादसे तुम यहाँ तक का सफ़र किये हो ।
~~~~ ॐ ~~~~

Monday, September 9, 2013

यह शरीर किसकी संपत्ति है ?

● यह शरीर किसकी संपत्ति है ? ● 
1- क्या उसकी जो इसका भरण -पोषण करता है ? 
 2- क्या उसकी जो अपना बीज देकर इसे पैदा किया है ?
 3- क्या उसकी जो इसे 09 माह अपनें गर्भमें रखी ? 
 4- क्या पत्नी/पतिकी जो इसका भोग करती/ करता है ?
 5- क्या नाना / नानीकी जो इसकी मूल हैं ? 
6- क्या उस अग्निकी जो इसे अंत में राख बना देती है ? 
 7- क्या उस धरतीकी जो इसके अस्तित्वको अपनें में मिला लेती है ? 
8- क्या उस प्रकृतिकी जिसमें यह रहता है ?
 9- क्या उस पशुकी जो इस आस में बैठा है कि कब मौका मिले और मैं उसे अपना भोजन बनाऊँ ? 
 10- क्या उस बंसजकी जो इससे हुआ है ?
 <> जी नहीं ---- 
°° यह शरीर माया निर्मित एक संकेत है जो उसे दिखानेंकी कोशिशमें अस्तित्वको खो देता है , जो इसमें रहता है ।
 °° यह शरीर एक माध्यम है , उस अब्यक्त अप्रमेय सनातन को समझननेंका जिससे यह है । 
°° यह एक ब्रिज है जो भोग -योगको सम्हालता है ।
 °° यह भक्त है उसका जो इसमें रहता है और जब वह निकलता है इसके बाहर, तब यह अपना अस्तित्त्व खो देता है ।
 ~~~ ॐ ~~~

Sunday, September 8, 2013

फिर वही

●● फिर वही ●●
1- भोग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण होता है और योग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण नहीं होता ।
2-भोगकी यात्रा सुनितोजित यात्रा होती है और योगकी यात्रा एक घटना है जो कभीं भी किसीके साथ घट सकती है ।
3- विधि - विधान और तर्क आधारित यात्रा करनें वाले चूक जाते हैं और प्रकृति पर जो आश्रित हो कर सहज जीवन जीते हैं वे पहुँच जाते हैं ।
4- सुबहसे देर रात तक ब्यस्त जीवनसे आज आप को जो मिला क्या उससे आप संतुष्ट हैं ? यदि नहीं तो क्यों ? अपनीं असफलताके लिए अपनें परिवारके किसी कमजोर इकाईको बलिका बकरा न बना कर , आप स्वयं में झाँक कर देखें कि चूक कहाँ हुयी ।
5- जो आप प्राप्त करना चाहते हैं क्या वह आप को तृप्त कर देगा और यदि आप तृप्त हो भी जाते हैं तो कितनें समय के लिए ? तृप्तता क्षणिक क्यों होती है , कभीं क्या इस बिषय पर आप सोचते हैं ?
6- गुण प्रभावित मन - बुद्धिसे जो प्राप्त होता है उसकी तृप्तता क्षणिक ही होती है और जिस घडी बिना कामना - मोह या अहंकार से जो होता है उसका फल चाहे जो हो पर वह आप को पूर्ण तृप्त कर देगा । 7- ज्यादा नहीं केवल दो को जो अपनें जीवन में समझ लिया , वह योगी हो गया , वे दो तत्त्व हैं कामना और अहंकार ।
8- कामना - अहंकार की गांठें मृत्युके बाद भी वैसी बनी रहती हैं ।
9- मोह और भय का आपसी गहरा प्यार है , दोनों साथ - साथ रहते हैं ।
10- मोहका अहंकार मीठा जहर है और कामना का अहंकार दूर से दिखता है ।
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, September 3, 2013

कुछ

●● कुछ ●●
1- इस देहको धोते रहनें केलिए इसे ढ़ोते रहो जबतक यह स्वतः निर्विकारमें न मिल जाए ।
2- आपसे जो कुछ भी हो रहा है उसे प्रभुका
आदेश - पालन समझ कर करते रहो , उसका करना ही प्रभु की पूजा है ।
3- न किसीसे प्रभावित होओ न किसीको प्रभावित करो ।
4- स्वयंमें उस रोशनीको तलाशते रहो जो अन्धकारमें भी आप जो राह दिखाती है ।
5- जबतक प्रभुकी खोज भोग आधारित होगी प्रभु आपको अब्यक्त ही रहेगा ।
6- पहले इस बातको सोचो कि आप प्रभुसे क्यों जुड़ रहे हो ? प्रभु इस बातको समझता है और वह दिखाई नहीं देता ।
7- संसार धोखा देने - लेने की मंडी बन गया है लेकिन प्रभुको क्यों धोखा दे रहे हो ?
8- अपनेंको कुछ भी बना लो लेकिन उसके सामनें तो सर स्वतः झुक जाता है ।
9- आज जो हैं कल वे न होंगे और जो कल होंगे वे परसों लुप्त हो जायेंगे चाहे वे नदी हों , पहाड़ हों या और कुछ हों लेकिन प्रभु कालसे अप्रभावित वैसा ही रहेगा ।
10- जितना बाहर देखते हो उसका 1/10 भाग भी अगर अपनें अन्दर देखनें का अभ्यास करो तो वह दिखनें लगेगा ।
~~~~ ॐ ~~~~