● एक नज़र - 2 ●
1- सब लोग शांतिकी खोज में हैं लेकिन शांति में कोई बसना नहीं चाहता क्योंकि शांति मौत के मार्ग को दिखाती है ।
2- परायेको अपना बनाते - बनाते अपनें पराये हो जाते हैं और भनक तक नहीं मिल पाती , है न मजे की बात ?
3- जो खुश हैं इस संसार में वे या तो ब्रह्म वित् हैं या पूरे मूढ़ , दूसरा खुश हो नहीं सकता ।
4- मन और मन नियंत्रित इन्द्रियोंसे प्यार हो नहीं सकता , प्यार तो उनको मिलता है जो प्रभुमें बसेरा करते हैं ।
5-पृथ्वी उन पर हसती है जो इसे अपना गुलाम रूप में देखते हैं , वह कहती है - देख अपनें गुलामके दिलको , तूँ जब भी पनाह के लिए परेशान होगा , कोई तेरे अपनें तुमको पनाह न देंगे तब तुम मेरे पास आना , ढाई गज जगह तेरेको तो मिलेगी ही ।
6- भिखारी हो या सम्राट सबको एक दिन इस मिटटी में मिल जाना है ।
7- क्यों इतनी तेज गतिसे सब भाग रहे हैं ? कुछ तो कारण होगा ही । सब लोग दुःख से दूर सुख में सर्वोपरि स्थान पर आखिरी श्वास भरना चाहते हैं लेकिन सच्चाई क्या है ?
8- जिसे हम अपना बनाते हैं वह पराया हो जाता है , क्या हममें कोई कमी है ?
9- जिस डाल को हम हिलाते हैं उस डाल से आम नही टपकता , टपकता कहीं और से है फिर हम
बार - बार क्यों डाल हिला रहे हैं ?
10- जिस पेड़पर फूल खिल रहे होते हैं उसके नीचे जमीन पर कल के खिले फूल आखिरी श्वास भर रहे होते हैं लेकिन अपनीं आगे की पीढ़ी की मुस्कान देख कर वे खुश रहते हैं ।
~~~ ॐ ~~~
Monday, September 30, 2013
एक नज़र - 2
Tuesday, September 24, 2013
एक में अनेक
●● एकमें अनेक●●
1- दर्द की दवा है श्रद्धा , श्रद्धा भक्तकी उर्जा है , जिसका केंद्र है भगवान जहाँ दर्द आनंदका ही एक रूप होता है
2- है न कमाल ! उसे सभीं खोज रहे हैं , और वह सबको देख रहा है
3- वह जिसके रूप, रंग , गंध , स्पर्शका कोई इल्म नहीं उसे हम खोज रहे हैं
4- देखते हैं और रोज देखते हैं कि डूबता सूरज वही है जिसे उगते समय हम जल चढ़ाये थे लेकिन यह भूल जाते हैं कि जन्म जिस तख्ती पर लिखा है उसी पर दूसरी तरफ मौत भी लिखा है
5- मौतका भय उसके लिए है जिसके ह्रदयमें प्रभुके लिए कोई जगह नहीं
6- कुछ भी कर लो , कुछ भी बन जाओ लेकिन तबतक चैन न मिलेगा जबतक भक्ति की हवा नहीं लगती
7- कुछ दिन और , फिर देखना जैसे जंगलमें बीमार पशुका अंत होता है वैसा अंत निर्धन ब्यक्तियोंका राज पथों पर होगा
8- पहले सर दर्द - बदन दर्द होता था जिसके इलाजके लिए वक़्त मिल जाता था लेकिन अब तो हृदयदर्दके मरीज ज्यादा हो रहे हैं जहां इलाजके लिए वक़्तही नहीं मिल पाता
9- मुट्ठी भर लोग हैं जो अपनीं चादर से पृथ्वी को ढक रखा है , उनके ही मंदिर हैं , उनके ही ऋषि लोग हैं , उनके ही अदालते हैं और उनके ही राजा हैं लेकिन इस संसारमें प्रजाकी उंगली पाकड़ने वाला कोई नहीं है , अगर कोई होगा तो वह परमेश्वर ही होगा
10- शांति सभीं चाहते हैं पर शांत कोई नही रहता ~~~~ ॐ ~~~~
Tuesday, September 17, 2013
सिद्धोकी बस्ती - 1
Sunday, September 15, 2013
स्व चिंतन - 01
● स्वचिंतन ●
1- स्व दर्पण पर अपनें मूल चेहरे को देखो लेकिन इस दर्पण को साफ़ तो करना ही होगा जो ध्यानसे संभव है ।
2- अपनीं आँखोंसे मोहका चस्मा उतारो और निर्मोह आँखोंसे जो दिखे उस पर सोचो नहीं , उसे अपनें हृदय में पहुँचाओ , तुम्हें आश्चर्य होगा कि वह तुम्हारे हृदय में पहले से है ।
3- जब सबमें तुम और तुममें सब दिखनें लगें तब आँखें स्वयं बंद हो जाती हैं ।
4- जो कल आपके साथ थे , उनमेंसे कुछ आज आपके साथ न होंगे , जो आज आपके साथ हैं उनमें से कुछ कल न होंगे और यह चक्र चलता ही रहेगा । आप कल भी चुक गए थे , देखना आज भी न चूक जाना , बार - बार चुकनें से जीवन सत्य से दूर होता जाता है । जो आप को आज मिला है , वह आपको कुछ दे रहा है लेकिन आप तो अपनीं मुट्ठी बंद किये और आँखें बंद किये उनकी ओर पीठ किये बैठे हो फिर इस स्थितिमें आपको क्या मिलेगा ? क्या बार - बार चुकते रहनें के लिए प्रभु आप को भेजा है ? जीवन भाग रहा है आगे की ओर और आप सरक रहे हैं पीछे की ओर फिर ऐसे में आपको एक बेहोशी भरी मौत के अलावा और क्या मिलेगा ? प्रभु आप से पूछेगा कि तुमको इतनें मौके मिले लेकिन तुम गवाते रहे , आखिर तुम मनुष्य योनि में रहते हुए पशु - जीवन गुजारा अतः अब तुमको वही मिल रहा है जो तुमको भाता रहा है , जाओ और अगला जीवन काम - भोजनकी तलाश में गुजार कर जब तृप्त हो जाना तब पुनः मेरे पास आना ।
5- जिनके कारण तुम सम्राट बन कर चल रहे हो , उनको धन्यबाद देना भी नहीं चाहते ? ज़रा अकेलेमें सोचना कि प्रभुके सामनें जब तुम और ओ आमानें सामनें होगे तब तुम्हारी स्थिति क्या होगी ?
6- अभी भी वक़्त है , अभी तुम इतनी ऊचाई पर नहीं पहुँचे जहाँ से नीचे गिरनें से तुम्हारा अस्तित्व खतरेमें पड़ जाय , जाओ और उनका नमन करो जिनके प्रसादसे तुम यहाँ तक का सफ़र किये हो ।
~~~~ ॐ ~~~~
Monday, September 9, 2013
यह शरीर किसकी संपत्ति है ?
Sunday, September 8, 2013
फिर वही
●● फिर वही ●●
1- भोग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण होता है और योग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण नहीं होता ।
2-भोगकी यात्रा सुनितोजित यात्रा होती है और योगकी यात्रा एक घटना है जो कभीं भी किसीके साथ घट सकती है ।
3- विधि - विधान और तर्क आधारित यात्रा करनें वाले चूक जाते हैं और प्रकृति पर जो आश्रित हो कर सहज जीवन जीते हैं वे पहुँच जाते हैं ।
4- सुबहसे देर रात तक ब्यस्त जीवनसे आज आप को जो मिला क्या उससे आप संतुष्ट हैं ? यदि नहीं तो क्यों ? अपनीं असफलताके लिए अपनें परिवारके किसी कमजोर इकाईको बलिका बकरा न बना कर , आप स्वयं में झाँक कर देखें कि चूक कहाँ हुयी ।
5- जो आप प्राप्त करना चाहते हैं क्या वह आप को तृप्त कर देगा और यदि आप तृप्त हो भी जाते हैं तो कितनें समय के लिए ? तृप्तता क्षणिक क्यों होती है , कभीं क्या इस बिषय पर आप सोचते हैं ?
6- गुण प्रभावित मन - बुद्धिसे जो प्राप्त होता है उसकी तृप्तता क्षणिक ही होती है और जिस घडी बिना कामना - मोह या अहंकार से जो होता है उसका फल चाहे जो हो पर वह आप को पूर्ण तृप्त कर देगा । 7- ज्यादा नहीं केवल दो को जो अपनें जीवन में समझ लिया , वह योगी हो गया , वे दो तत्त्व हैं कामना और अहंकार ।
8- कामना - अहंकार की गांठें मृत्युके बाद भी वैसी बनी रहती हैं ।
9- मोह और भय का आपसी गहरा प्यार है , दोनों साथ - साथ रहते हैं ।
10- मोहका अहंकार मीठा जहर है और कामना का अहंकार दूर से दिखता है ।
~~~ ॐ ~~~
Tuesday, September 3, 2013
कुछ
●● कुछ ●●
1- इस देहको धोते रहनें केलिए इसे ढ़ोते रहो जबतक यह स्वतः निर्विकारमें न मिल जाए ।
2- आपसे जो कुछ भी हो रहा है उसे प्रभुका
आदेश - पालन समझ कर करते रहो , उसका करना ही प्रभु की पूजा है ।
3- न किसीसे प्रभावित होओ न किसीको प्रभावित करो ।
4- स्वयंमें उस रोशनीको तलाशते रहो जो अन्धकारमें भी आप जो राह दिखाती है ।
5- जबतक प्रभुकी खोज भोग आधारित होगी प्रभु आपको अब्यक्त ही रहेगा ।
6- पहले इस बातको सोचो कि आप प्रभुसे क्यों जुड़ रहे हो ? प्रभु इस बातको समझता है और वह दिखाई नहीं देता ।
7- संसार धोखा देने - लेने की मंडी बन गया है लेकिन प्रभुको क्यों धोखा दे रहे हो ?
8- अपनेंको कुछ भी बना लो लेकिन उसके सामनें तो सर स्वतः झुक जाता है ।
9- आज जो हैं कल वे न होंगे और जो कल होंगे वे परसों लुप्त हो जायेंगे चाहे वे नदी हों , पहाड़ हों या और कुछ हों लेकिन प्रभु कालसे अप्रभावित वैसा ही रहेगा ।
10- जितना बाहर देखते हो उसका 1/10 भाग भी अगर अपनें अन्दर देखनें का अभ्यास करो तो वह दिखनें लगेगा ।
~~~~ ॐ ~~~~