Tuesday, September 24, 2013

एक में अनेक

●● एकमें अनेक●●
1- दर्द की दवा है श्रद्धा , श्रद्धा भक्तकी उर्जा है , जिसका केंद्र है भगवान जहाँ दर्द आनंदका ही एक रूप होता है
2- है न कमाल ! उसे सभीं खोज रहे हैं , और वह सबको देख रहा है
3- वह जिसके रूप, रंग , गंध , स्पर्शका कोई इल्म नहीं उसे हम खोज रहे हैं
4- देखते हैं और रोज देखते हैं कि डूबता सूरज वही है जिसे उगते समय हम जल चढ़ाये थे लेकिन यह भूल जाते हैं कि जन्म जिस तख्ती पर लिखा है उसी पर दूसरी तरफ मौत भी लिखा है
5- मौतका भय उसके लिए है जिसके ह्रदयमें प्रभुके लिए कोई जगह नहीं
6- कुछ भी कर लो , कुछ भी बन जाओ लेकिन तबतक चैन न मिलेगा जबतक भक्ति की हवा नहीं लगती
7- कुछ दिन और , फिर देखना जैसे जंगलमें बीमार पशुका अंत होता है वैसा अंत निर्धन ब्यक्तियोंका राज पथों पर होगा
8- पहले सर दर्द - बदन दर्द होता था जिसके इलाजके लिए वक़्त मिल जाता था लेकिन अब तो हृदयदर्दके मरीज ज्यादा हो रहे हैं जहां इलाजके लिए वक़्तही नहीं मिल पाता
9- मुट्ठी भर लोग हैं जो अपनीं चादर से पृथ्वी को ढक रखा है , उनके ही मंदिर हैं , उनके ही ऋषि लोग हैं , उनके ही अदालते हैं और उनके ही राजा हैं लेकिन इस संसारमें प्रजाकी उंगली पाकड़ने वाला कोई नहीं है , अगर कोई होगा तो वह परमेश्वर ही होगा
10- शांति सभीं चाहते हैं पर शांत कोई नही रहता ~~~~ ॐ ~~~~

1 comment:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 25/09/2013 को
अमर शहीद वीरांगना प्रीतिलता वादेदार की ८१ वीं पुण्यतिथि - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः23 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra