●● फिर वही ●●
1- भोग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण होता है और योग में जो होता है उसके पीछे कोई कारण नहीं होता ।
2-भोगकी यात्रा सुनितोजित यात्रा होती है और योगकी यात्रा एक घटना है जो कभीं भी किसीके साथ घट सकती है ।
3- विधि - विधान और तर्क आधारित यात्रा करनें वाले चूक जाते हैं और प्रकृति पर जो आश्रित हो कर सहज जीवन जीते हैं वे पहुँच जाते हैं ।
4- सुबहसे देर रात तक ब्यस्त जीवनसे आज आप को जो मिला क्या उससे आप संतुष्ट हैं ? यदि नहीं तो क्यों ? अपनीं असफलताके लिए अपनें परिवारके किसी कमजोर इकाईको बलिका बकरा न बना कर , आप स्वयं में झाँक कर देखें कि चूक कहाँ हुयी ।
5- जो आप प्राप्त करना चाहते हैं क्या वह आप को तृप्त कर देगा और यदि आप तृप्त हो भी जाते हैं तो कितनें समय के लिए ? तृप्तता क्षणिक क्यों होती है , कभीं क्या इस बिषय पर आप सोचते हैं ?
6- गुण प्रभावित मन - बुद्धिसे जो प्राप्त होता है उसकी तृप्तता क्षणिक ही होती है और जिस घडी बिना कामना - मोह या अहंकार से जो होता है उसका फल चाहे जो हो पर वह आप को पूर्ण तृप्त कर देगा । 7- ज्यादा नहीं केवल दो को जो अपनें जीवन में समझ लिया , वह योगी हो गया , वे दो तत्त्व हैं कामना और अहंकार ।
8- कामना - अहंकार की गांठें मृत्युके बाद भी वैसी बनी रहती हैं ।
9- मोह और भय का आपसी गहरा प्यार है , दोनों साथ - साथ रहते हैं ।
10- मोहका अहंकार मीठा जहर है और कामना का अहंकार दूर से दिखता है ।
~~~ ॐ ~~~
Sunday, September 8, 2013
फिर वही
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सत्यमें ठहरो
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