Wednesday, October 31, 2012

आइये देखते हैं स्वयं को -------

जो मिला हुआ है वह आज नहीं तो कल टल ही जायेगा 
लेकिन ----
जो हमनें  स्वयं ले रखा है उसका क्या होगा ?

जो गट्ठर हमारी पीठ पर रखा गया है वह तो समझो उतर ही रहा है 
लेकिन -----
जो हमनें स्वयं रखा है उसका क्या होगा ?

हम चिंतित हैं क्यों ? 
इसलिए नहीं कि हमारे पास वह नहीं जिसे हम चाहते हैं 
लेकिन----
 इस लिए कि वह  उनके पास क्यों है ?

मनुष्य दूसरे की गलती पर स्वयं को ताडित करता है , क्यों ?
जैसे यदि कोई हमें गाली दे दे तो हमारा  खून खौलनें लगता है , ऐसा क्यों ?
 यदि वह गाली दे रहा है हम उसे ले क्यों रहे हैं ,
 उसे यदि न लिया जाए तो वह वापिस जा कर उस ब्यक्ति के सीनें में चोट मारेगा 
लेकिन----
 हम ऐसा करनें का अभ्यास नहीं करते 

==== ओम् =====

Saturday, October 27, 2012

कभीं अकेले में ही सही सोचना ----

जीवन कितना लंबा है ....
जीवन कितना चौड़ा है ....
जीवन कितना गहरा है ....
जीवन की चौड़ाई को हम नित पल खीच - खीच कर बढानें  में लगे हैं लेकन जब जीवन की लम्बाई की सोच आती है तब हम बेचैन से होनें लगते हैं , ऐसा क्यों ?
जीवन की गहराई के सम्बन्ध में हमारा मन कभीं नही सोचता और हम अपनें जीवन के इन तीन आयामों में से मात्र एक पर टिके हुए जीवन गुजार रहे हैं /
सभीं यहाँ परम आनंद के आशिक हैं लेकिन जीवन का मात्र एक तिहाई आयाम को पकडे हुए चल रहे हैं , भला ऎसी स्थिति में कैसे परम आनंद की झलक मिल सकती है ? ऐसा जीवन तो  तनहा जीवन ही रहेगा / 
परम आनंद प्रभु का द्वार है , जो जीवन की गहराई में कहीं अनंत में जा कर परम  प्रकाश के माध्यम से दिखता है और वह भी कई शताब्दियों में किसी - किसी  को और एक हम हैं जो जीवन  की गहराई  के सम्बन्ध में कभीं सोचते ही नहीं , फिर हमें परम आनंद कैसे मिल  सकता है ?
जीवन की गणित आम गणित से भिन्न है , इस गणित पर गुरजिएफ के एक महान शिष्य एवं महान गणितज्ञ ओस्पेंसकी खूब सोचे हैं और सोचते - सोचते वे जरुर परम आनंद में पहुंचे होंगे /
जीवन की लम्बाई हमारे दो श्वासों के बीच की दूरी के एक अंश के बराबर होती है , जिसको हम कभीं नहीं देखना चाहते , क्योंकि बुद्ध कहते हैं - एक घंटा जो रोजाना अपनी प्राण - अपान वायुओं को देखता रहता है उसे निर्वाण प्राप्त हो सकता है और निर्वाण परम आनंद का द्वार है जहाँ से परम प्रकाश की अनुभूति होती है / 
हम अपनें जीवन की चौड़ाई को अपनें अहँकार की रस्सी से मापते हैं ; जितना बड़ा अहंकार उतना चौड़ा 
जीवन ; यह  एक ऐसा भ्रम है जो सीधे नरक के द्वार पर ले जा कर कहता है - जा , अब तेरी मंजिल आगयी /
जीवन का मजा लेना चाहते हो तो -----
आज से रोजाना कुछ समय के लिए अपनी यातो प्राण वायु को या  फिर अपान वायु को विचार रहित मन - बुद्धि से देखनें का अभ्यास प्रारम्भ करें , क्या पता यही आप को निर्वाण में पहुंचा दे ?
===== ओम् =====

Tuesday, October 23, 2012

जरा समझना ------

  • वे आप के साथ हैं या आप उनके ......
  • पुत्र आप के साथ है या  आप  पुत्र के साथ .....
  • पत्नी आप के साथ है या आप पत्नी के साथ ......
  • परिवार आप के साथ है या आप परिवार के साथ .....
  • आप अपनी सोच के गुलाम हैं या आप की सोच आप की ......
  • आप इंद्रियों के गुलाम हैं या इन्द्रियाँ आप की ......
  • आप अपनें मन के संग हैं या मन आप के संग ......
  • आप परमात्मा को खोज रहे हैं या परमात्मा आप को ......
  • आप से परमात्मा है या परमात्मा से आप ......
  • आप के संग परमात्मा है या परमात्मा के संग आप .......
  • आप प्रकृति से हैं या प्रकृति आप से .......
सोच - सोच के सोच में आयी स्थिरता के आइनें में कभीं झांकना ,
वहाँ जो दिखेगा , उस से और उस में यह ब्रह्माण्ड है

==== ओम् ========

Sunday, October 7, 2012

जरा रुकना बश दो घडी

  • कौन दुखी रहना चाहता है ?
  • यहाँ कितने सुखी हैं , तन एवं मन से ?
  • कितनें अपने दुःख का कारण स्वयं को समझते हैं ?
  • कितनें अपनें दुःख को समझते हैं ?
  • कितनें औरों के दुःख को समझते हैं ?
  • कितनें औरों के दुःख  को देख कर आनंदित होते हैं ?
  • कितनें दुःख की मूल को देखना चाहते हैं ?
  • कितनें सच्चाई को समझना चाहते हैं ?
  • कितनें दूसरों को दुखी कर के सुख का अनुभव करते हैं ?
  • कितनें दूसरों के दुःख को अपनें दुःख की भांति देखते हैं ?
यहाँ हम क्या सोच रहे हैं ? क्या कर रहे हैं ? हमें स्वयं को पता न भी हो सकता है लेकिन कोई तो है ------
जो सब पर बराबर नजर डाले हुए है और जहाँ एक दिन सबको पहुँचना है और पहुँच कर अपनें किये गए का जबाब भी देना  है , जहाँ कोई तर्क - वितर्क की कोई संभावना नहीं , जहाँ चेहरा देख कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाता है /
समय किसी का इन्तजार नहीं करता , दो घडी कभीं अकेले में बैठ कर सोचना कि ........
जिनके लिए इतनी गति से भाग रहे हो क्या वे आप के साथ चिता जलनें तक भी रुक पायेंगे ?
==== ओम् =======

Tuesday, October 2, 2012

जीवन दर्शन - 58

क्रोध और मोह की उर्जा देह में कंपन पैदा करती है
क्रोध - ऊर्जा की आवृति प्रति सेकण्ड अधिक होती है
मोह - उर्जा इन्द्रियों को सुखाता है
क्रोध - उर्जा नाश की ओर ले जाता है
कामना में जब गहरा अहँकार होता है तब जब वह कामना दूटती है , क्रोध उठता है
कमजोर अहँकार की कामना  - ऊर्जा मोह में बदल जाती है
कामना देह की कोशिकाओं में फैलाव लाता है
मोह कोशिकाओं को सिकोड़ता है
मोह का अहंकार बाहर से नही दिखता , यह अंदर सिकुड़ा रहता है
कामना का अहँकार बाहर परिधि पर छाया रहता है
==== ओम् ========