Saturday, October 27, 2012

कभीं अकेले में ही सही सोचना ----

जीवन कितना लंबा है ....
जीवन कितना चौड़ा है ....
जीवन कितना गहरा है ....
जीवन की चौड़ाई को हम नित पल खीच - खीच कर बढानें  में लगे हैं लेकन जब जीवन की लम्बाई की सोच आती है तब हम बेचैन से होनें लगते हैं , ऐसा क्यों ?
जीवन की गहराई के सम्बन्ध में हमारा मन कभीं नही सोचता और हम अपनें जीवन के इन तीन आयामों में से मात्र एक पर टिके हुए जीवन गुजार रहे हैं /
सभीं यहाँ परम आनंद के आशिक हैं लेकिन जीवन का मात्र एक तिहाई आयाम को पकडे हुए चल रहे हैं , भला ऎसी स्थिति में कैसे परम आनंद की झलक मिल सकती है ? ऐसा जीवन तो  तनहा जीवन ही रहेगा / 
परम आनंद प्रभु का द्वार है , जो जीवन की गहराई में कहीं अनंत में जा कर परम  प्रकाश के माध्यम से दिखता है और वह भी कई शताब्दियों में किसी - किसी  को और एक हम हैं जो जीवन  की गहराई  के सम्बन्ध में कभीं सोचते ही नहीं , फिर हमें परम आनंद कैसे मिल  सकता है ?
जीवन की गणित आम गणित से भिन्न है , इस गणित पर गुरजिएफ के एक महान शिष्य एवं महान गणितज्ञ ओस्पेंसकी खूब सोचे हैं और सोचते - सोचते वे जरुर परम आनंद में पहुंचे होंगे /
जीवन की लम्बाई हमारे दो श्वासों के बीच की दूरी के एक अंश के बराबर होती है , जिसको हम कभीं नहीं देखना चाहते , क्योंकि बुद्ध कहते हैं - एक घंटा जो रोजाना अपनी प्राण - अपान वायुओं को देखता रहता है उसे निर्वाण प्राप्त हो सकता है और निर्वाण परम आनंद का द्वार है जहाँ से परम प्रकाश की अनुभूति होती है / 
हम अपनें जीवन की चौड़ाई को अपनें अहँकार की रस्सी से मापते हैं ; जितना बड़ा अहंकार उतना चौड़ा 
जीवन ; यह  एक ऐसा भ्रम है जो सीधे नरक के द्वार पर ले जा कर कहता है - जा , अब तेरी मंजिल आगयी /
जीवन का मजा लेना चाहते हो तो -----
आज से रोजाना कुछ समय के लिए अपनी यातो प्राण वायु को या  फिर अपान वायु को विचार रहित मन - बुद्धि से देखनें का अभ्यास प्रारम्भ करें , क्या पता यही आप को निर्वाण में पहुंचा दे ?
===== ओम् =====

4 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर.......

सादर
अनु

सूर्यकान्त गुप्ता said...

"जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो" जन्म-मृत्यु के बंधन से

मुक्ति .....अर्थात निर्वाण .. सुन्दर रचना !

Unknown said...

बहुत खूब |

J Sharma said...
This comment has been removed by the author.