जीवन कितना लंबा है ....
जीवन कितना चौड़ा है ....
जीवन कितना गहरा है ....
जीवन की चौड़ाई को हम नित पल खीच - खीच कर बढानें में लगे हैं लेकन जब जीवन की लम्बाई की सोच आती है तब हम बेचैन से होनें लगते हैं , ऐसा क्यों ?
जीवन की गहराई के सम्बन्ध में हमारा मन कभीं नही सोचता और हम अपनें जीवन के इन तीन आयामों में से मात्र एक पर टिके हुए जीवन गुजार रहे हैं /
सभीं यहाँ परम आनंद के आशिक हैं लेकिन जीवन का मात्र एक तिहाई आयाम को पकडे हुए चल रहे हैं , भला ऎसी स्थिति में कैसे परम आनंद की झलक मिल सकती है ? ऐसा जीवन तो तनहा जीवन ही रहेगा /
परम आनंद प्रभु का द्वार है , जो जीवन की गहराई में कहीं अनंत में जा कर परम प्रकाश के माध्यम से दिखता है और वह भी कई शताब्दियों में किसी - किसी को और एक हम हैं जो जीवन की गहराई के सम्बन्ध में कभीं सोचते ही नहीं , फिर हमें परम आनंद कैसे मिल सकता है ?
जीवन की गणित आम गणित से भिन्न है , इस गणित पर गुरजिएफ के एक महान शिष्य एवं महान गणितज्ञ ओस्पेंसकी खूब सोचे हैं और सोचते - सोचते वे जरुर परम आनंद में पहुंचे होंगे /
जीवन की लम्बाई हमारे दो श्वासों के बीच की दूरी के एक अंश के बराबर होती है , जिसको हम कभीं नहीं देखना चाहते , क्योंकि बुद्ध कहते हैं - एक घंटा जो रोजाना अपनी प्राण - अपान वायुओं को देखता रहता है उसे निर्वाण प्राप्त हो सकता है और निर्वाण परम आनंद का द्वार है जहाँ से परम प्रकाश की अनुभूति होती है /
हम अपनें जीवन की चौड़ाई को अपनें अहँकार की रस्सी से मापते हैं ; जितना बड़ा अहंकार उतना चौड़ा
जीवन ; यह एक ऐसा भ्रम है जो सीधे नरक के द्वार पर ले जा कर कहता है - जा , अब तेरी मंजिल आगयी /
जीवन का मजा लेना चाहते हो तो -----
आज से रोजाना कुछ समय के लिए अपनी यातो प्राण वायु को या फिर अपान वायु को विचार रहित मन - बुद्धि से देखनें का अभ्यास प्रारम्भ करें , क्या पता यही आप को निर्वाण में पहुंचा दे ?
===== ओम् =====
जीवन कितना चौड़ा है ....
जीवन कितना गहरा है ....
जीवन की चौड़ाई को हम नित पल खीच - खीच कर बढानें में लगे हैं लेकन जब जीवन की लम्बाई की सोच आती है तब हम बेचैन से होनें लगते हैं , ऐसा क्यों ?
जीवन की गहराई के सम्बन्ध में हमारा मन कभीं नही सोचता और हम अपनें जीवन के इन तीन आयामों में से मात्र एक पर टिके हुए जीवन गुजार रहे हैं /
सभीं यहाँ परम आनंद के आशिक हैं लेकिन जीवन का मात्र एक तिहाई आयाम को पकडे हुए चल रहे हैं , भला ऎसी स्थिति में कैसे परम आनंद की झलक मिल सकती है ? ऐसा जीवन तो तनहा जीवन ही रहेगा /
परम आनंद प्रभु का द्वार है , जो जीवन की गहराई में कहीं अनंत में जा कर परम प्रकाश के माध्यम से दिखता है और वह भी कई शताब्दियों में किसी - किसी को और एक हम हैं जो जीवन की गहराई के सम्बन्ध में कभीं सोचते ही नहीं , फिर हमें परम आनंद कैसे मिल सकता है ?
जीवन की गणित आम गणित से भिन्न है , इस गणित पर गुरजिएफ के एक महान शिष्य एवं महान गणितज्ञ ओस्पेंसकी खूब सोचे हैं और सोचते - सोचते वे जरुर परम आनंद में पहुंचे होंगे /
जीवन की लम्बाई हमारे दो श्वासों के बीच की दूरी के एक अंश के बराबर होती है , जिसको हम कभीं नहीं देखना चाहते , क्योंकि बुद्ध कहते हैं - एक घंटा जो रोजाना अपनी प्राण - अपान वायुओं को देखता रहता है उसे निर्वाण प्राप्त हो सकता है और निर्वाण परम आनंद का द्वार है जहाँ से परम प्रकाश की अनुभूति होती है /
हम अपनें जीवन की चौड़ाई को अपनें अहँकार की रस्सी से मापते हैं ; जितना बड़ा अहंकार उतना चौड़ा
जीवन ; यह एक ऐसा भ्रम है जो सीधे नरक के द्वार पर ले जा कर कहता है - जा , अब तेरी मंजिल आगयी /
जीवन का मजा लेना चाहते हो तो -----
आज से रोजाना कुछ समय के लिए अपनी यातो प्राण वायु को या फिर अपान वायु को विचार रहित मन - बुद्धि से देखनें का अभ्यास प्रारम्भ करें , क्या पता यही आप को निर्वाण में पहुंचा दे ?
===== ओम् =====
4 comments:
बहुत सुन्दर.......
सादर
अनु
"जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो" जन्म-मृत्यु के बंधन से
मुक्ति .....अर्थात निर्वाण .. सुन्दर रचना !
बहुत खूब |
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