Tuesday, December 24, 2013

25 दिसंबर

● वे कौन हैं जो सुनते हैं ? ●
1- वे , जिनकी जीवन- यात्रा प्रकृति दर्शनके सिद्धांतो पर आगे बढती रहती है ,वे सुनते हैं - अपनें और दूसरोंके दिल की आवाजको।
2- वे सुनते हैं , उस आवाजको जिस आवाज को संत जोसेफ बाइबिक में शब्द कहते हैं और भारतीय दर्शन कहता है शब्दः ब्रह्मः ।
3- ज़रा सोचना - Pythagoras of Samosa ( 570-495BC ) उस समय बोले कि सभीं ग्रहों की अपनीं -अपनीं आवाजें हैं जबकि उस समय विज्ञान तर्क शास्त्रके गर्भ में था । पाइथागोरसकी बात को आजके वैज्ञानिक पकड़ने में सफल हुए
हैं ।पाइथागोरस ,महाबीर और बुद्ध लगभग समकालीन कहे जा सकते हैं और तीनों बुद्ध पुरुष थे जो प्रकृतिको सुनते थे और प्रकृतिकी भाषा को मनुष्य को सुनाते थे लेकिन सुनता कौन है ?
4- जब कोई नौजवान ऐसी स्थिति में फस जाता है जैसे मकड़ी अपनें द्वारा निर्मित जाल में फस कर दम तोड़ जाती है , तब वह नौजवान बड़े -बुजुर्गों की बातको तबतक केलिए सुनता है जबतक वह उस स्थितिसे निकल नहीं लेता , फिर कौन किसकी सुनता है ?
5- मनुष्यको छोड़ कर अन्य सभीं जीव अन्य जीवों के गंध , आवाज और इशारों को सुनते हैं और मनुष्य खुदके आत्मा की भी आवाज नहीं सुनता , पता नहीं किसके लिए और कहाँ गुम रहता है ?
6- मनुष्य एक्टिंग करनें में स्वयं को इतना दक्ष कर लिया है की अब जानवरों को भी एक्टिंग का प्रशिक्षण देनें लगा है और इस एक्टिंग से सम्मोहित मनुष्य स्वयं के दूर होता चला जा रहा है ।
7- दूसरों को सुननेंकी रीति जिसनें चलाई , वह एक सिद्ध योगी रहा होगा । दूसरोंको सुननें का गहरा अभ्यास इन्द्रियों के रुख को बदल सकता है और बाह्य गामी इन्द्रियाँ अन्तः गामी हो कर परम पर केन्द्रित हो सकती हैं जहाँ से शूक्ष्म शरीर परमगति की यात्रा पर निकलता है ।
8- कबीर कहते हैं , अपनीं पुतलियों को उल्टा करो और जिसे Turning in कहते हैं झेन रहस्यदर्शी , क्या है इन बातों का रहस्य ? कबीर जी के कहनें का भाव है कि इन्द्रियों के बाहर भ्रमण करनेंकी आदत को बदलो ,उनको अन्तः गामी बनानें का अभ्यास करो अर्थात दूसरोंको सुननें के अभ्यासके माध्यम से स्वयंको सुननेंका अभ्यास करना ।
9- दो घडी ही सही ,एकांत में बैठकर सामनें एक मोमबती जला कर उस योगीके उस समय की दिल की आवाजको सुनना जब उसके अपनें लोग ही उसे चांदी के चंद टुकड़ों की लालच में बेच दिया था और उस परम पुरुष को शूली पर लटका दिया गया था । 10- 440 AD December 25th begins to be celebrated as the birthdate of Jesus Christ.
<> जेससकी आखिरी आवाज को सुनकर जुदाद ,  उनका बुद्धिजीवी शिष्य जो उनकी ओर पीठ कर लिया था और उनके अंत का कारण बना , वह अपनें को सम्हाल न सका और आत्म हत्या कर लिया ।
<> जेसस का आखिरी बचन था : हे प्रभु ! मेरा गुनाह क्या था ?
~~ ॐ ~~

Sunday, December 8, 2013

ध्यानकी दो बातें

1- अहंकार और पीपल बृक्षको निर्मूल करना असंभव तो नहीं पर है कठिन और अहंकार रहित जीवन समाधि का मार्ग है ।
2- जो इस संसारमें चंद घडी का मेहमान है उससे पूछना -क्या जो आप खोज रहे थे वह मिला ? वह अपनीं बंद आँखें थोड़ी सी खोलेगा ,उत्तरमें दो बूँदें आंसूके टपकेंगे और फिर आँखें बंद हो जायेंगी ।
3- भोग वह जो आपको तृप्त करनेंकी लालच में और अतृप्त बनाता है और ध्यान वह जो लालच क्या है ? को समझा कर तृप्त करता है ।
4- सूर्यकी प्रातः कालीन किरणें कह रही हैं : खोज लो उसे जिसे कल न खोज पाए थे , देखना कहीं आज भी न चूक जाना ।
5- सुबह सूर्यकी किरणें उतरनें ही वाली हैं ,उनके आगमनमें चिड़ियों का झुण्ड वैदिक मन्त्रोंका गान कर रहा है , जितनें भी जड़ - चेतन हैं सबमें एक नयी उर्जा दिख रही है ,सब चल पड़े हैं ,लग रहा है आज सभीं जरुर उसे हासिल कर लेंगे जिससे अभीं तक हासिल नहीं कर पाए हैं ।
6- जब परमात्मा पूछेगा , तुम अपना संसार का अनुभव ब्यक्त करो ? क्या कहोगे , वहाँ ? तुम इतना तो समझते ही हो कि वहाँ झूठ नहीं बोला जा सकता और यहाँ झूठको ही तुम सत्य समझते / समझाते रहे हो ।
7- सत्यकी हमें पहचान नहीं और कभीं उसे पहचाननें की कोशिश भी नहीं की और सर्वत्र सत्य ही सत्य है झूठ तो एक भ्रम है फिर हम इस संसार में भ्रमित जीवन गुजार रहे हैं और भ्रम /संदेह /अहंकार वहाँ के द्वार तक पहुंचनें ही नहीं देते , फिर हमारा क्या होगा ? हम संसार और उस द्वार तकके आवागमन में तबतक फसे रहेंगे जबतक हमारा परिचय सत्य से नहीं हो जाता ।
8- बस्तुओं में हो रहा रूपांतरण सत्यकी परछाई है , परछाई को पकड़ कर अपनी यात्रा का रुख बदल कर सत्य तक पहुँचा जा सकता है लेकिन परछाई पर ही रुके रहना सत्य से दूर रखेगा ।
9- दुःख सत्य की परछाई है और सुख सत्य है । दुःख सत्य तक पहुंचनें का सुगम मार्ग है और इन्द्रिय भोग - सुख , सत्य मार्ग से विचलित करनें का आसान कारण है ।
10- भोगकी यात्रा जब विश्राम अवस्था में आ जाती है तब प्रभुका द्वार वैराग्यकी चाभी से खुलता है ।
~~ ॐ ~~

Tuesday, December 3, 2013

सांख्य योग का आधार

● सांख्य योगका आधार ●
1- निर्मल चित्त कैवल्यको आमंत्रित करता है ।
2- कैवल्य समाधि अनुभवके बादकी स्थिति होती
है ।
3- कैवल्यमें उतरा योगी कहता है -
अहम् ब्रह्माष्मि ।
4- तामस - राजस गुणोंके सम्मोहनसे मुक्त निर्मल चित्त वालेको भगवानका बोध स्वतः हो जाता है ( भागवत :1.2.19 -20 ) ।
5- गुण तीन प्रकार के हैं -सात्त्विक ,राजस और तामस ।
6- अहंकार भी गुणोंके आधार पर तीन प्रकार के हैं । 7- सात्त्विक गुणकी उर्जा में तन , मन और बुद्धि प्रभुमय होते हैं और उस ब्यक्तिको कण -कण में प्रभु ही प्रभु दिखता है ।
8- राजस गुणकी उर्जा आसक्ति ,काम ,कामना ,क्रोध और लोभके माध्यमसे बाधती है ।
9- तामस गुणकी उर्जा मरण मोह ,आलस्य और भयके लक्षण दिखते हैं ।
10 - सात्त्विक अहंकार से मन ,राजस अहंकार से 10 इन्द्रियाँ ,बुद्धि और प्राण तथा तामस अहंकारसे पांच महाभूत और पांच तन्मात्रों की उत्पत्ति होती है । ~~ ॐ ~~