Sunday, December 8, 2013

ध्यानकी दो बातें

1- अहंकार और पीपल बृक्षको निर्मूल करना असंभव तो नहीं पर है कठिन और अहंकार रहित जीवन समाधि का मार्ग है ।
2- जो इस संसारमें चंद घडी का मेहमान है उससे पूछना -क्या जो आप खोज रहे थे वह मिला ? वह अपनीं बंद आँखें थोड़ी सी खोलेगा ,उत्तरमें दो बूँदें आंसूके टपकेंगे और फिर आँखें बंद हो जायेंगी ।
3- भोग वह जो आपको तृप्त करनेंकी लालच में और अतृप्त बनाता है और ध्यान वह जो लालच क्या है ? को समझा कर तृप्त करता है ।
4- सूर्यकी प्रातः कालीन किरणें कह रही हैं : खोज लो उसे जिसे कल न खोज पाए थे , देखना कहीं आज भी न चूक जाना ।
5- सुबह सूर्यकी किरणें उतरनें ही वाली हैं ,उनके आगमनमें चिड़ियों का झुण्ड वैदिक मन्त्रोंका गान कर रहा है , जितनें भी जड़ - चेतन हैं सबमें एक नयी उर्जा दिख रही है ,सब चल पड़े हैं ,लग रहा है आज सभीं जरुर उसे हासिल कर लेंगे जिससे अभीं तक हासिल नहीं कर पाए हैं ।
6- जब परमात्मा पूछेगा , तुम अपना संसार का अनुभव ब्यक्त करो ? क्या कहोगे , वहाँ ? तुम इतना तो समझते ही हो कि वहाँ झूठ नहीं बोला जा सकता और यहाँ झूठको ही तुम सत्य समझते / समझाते रहे हो ।
7- सत्यकी हमें पहचान नहीं और कभीं उसे पहचाननें की कोशिश भी नहीं की और सर्वत्र सत्य ही सत्य है झूठ तो एक भ्रम है फिर हम इस संसार में भ्रमित जीवन गुजार रहे हैं और भ्रम /संदेह /अहंकार वहाँ के द्वार तक पहुंचनें ही नहीं देते , फिर हमारा क्या होगा ? हम संसार और उस द्वार तकके आवागमन में तबतक फसे रहेंगे जबतक हमारा परिचय सत्य से नहीं हो जाता ।
8- बस्तुओं में हो रहा रूपांतरण सत्यकी परछाई है , परछाई को पकड़ कर अपनी यात्रा का रुख बदल कर सत्य तक पहुँचा जा सकता है लेकिन परछाई पर ही रुके रहना सत्य से दूर रखेगा ।
9- दुःख सत्य की परछाई है और सुख सत्य है । दुःख सत्य तक पहुंचनें का सुगम मार्ग है और इन्द्रिय भोग - सुख , सत्य मार्ग से विचलित करनें का आसान कारण है ।
10- भोगकी यात्रा जब विश्राम अवस्था में आ जाती है तब प्रभुका द्वार वैराग्यकी चाभी से खुलता है ।
~~ ॐ ~~

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