Friday, September 30, 2022
Thursday, September 29, 2022
Tuesday, September 27, 2022
भ्रमर गीत के हारिल पक्षी से मिलिए
जब ब्रज में उद्धव जी ब्रह्म ज्ञान देने गोपिकाओं से मिलते हैं तब एक गोपिका कहती है ⬇️
हमारै हरि हारिल की लकड़ी
अब इस हारिल से परिचय करते हैं ⬇️
Sunday, September 25, 2022
Saturday, September 24, 2022
Friday, September 23, 2022
Wednesday, September 21, 2022
Monday, September 19, 2022
भारतीय पुराणों में 64 संख्या का महत्त्व
इस शृंखला में 64 योगिनियों , 64 विद्यायें , 64 पैसो की एक रूपया और महाभारत युद्ध का कारण चौसर द्यूत क्रीड़ा में 64 खानों के होने के रहस्यों में झांकने जा यत्न किया जाएगा लेकिन पहले निम्न स्लॉइड को समझें । सारी सूचनाएँ नेट से एकत्र की गयी हैं ⬇️
Tuesday, September 13, 2022
Saturday, September 10, 2022
Friday, September 9, 2022
Monday, September 5, 2022
पतंजलि योग दर्शन में वैराग्य क्या है ?
पतंजलि योग दर्शन ऐजं वैराग्य समाधि का द्वार बताया गया है । आइये देखते हैं निम्न 05 स्लाइड्स को जो वैराग्य को स्पष्ट करती हैं ✌️
Sunday, September 4, 2022
Saturday, September 3, 2022
पतंजलि योग में अष्टाङ्ग योग के 05 प्रमुख अंगों आसन , प्राणायाम , धारणा , ध्यान और समाधि की परिभाषाएँ
पिछले अंक में आसन , प्राणायाम , धारणा , ध्यान और समाधि के आपसी संबंधों को देखा गया और अब इनकी परिभाषाओं को समझते हैं ।
Thursday, September 1, 2022
पतंजलि योग साधना के 05 चरण
पतंजलि योग साधना के 05 चरण जो कैवल्य के मार्ग हैं 👇
ऊपर व्यक्त 05 पतंजलि योग सिद्धि के चरणों में उनके आपसी संबंधों को समझ लेना चाहिए ।
जब आसन - सिद्धि मिल जाती है तब उस आसन का प्रयोग आगे के चरणों की सिद्धियों में भी प्रयोग करना होता है । आसन सिद्धि उसे कहते हैं जब योगी पूरे दिन एक ही देह मुद्रा में बैठे - बैठे समयातीत की स्थिति में पहुंच जाता है अर्थात उसे लंबे समय बीत जाने का पता तक नहीं लग पाता ।
आसन सिद्धि में प्राणायाम की साधना प्रारंभ होती है । श्वास - प्रश्वास का द्रष्टा बन कर दोनों श्वासों को देखते रहने का अभ्यास जब गहरा जाता है तब दोनों श्वासें स्वतः रूक जाती हैं जिसे प्राणायाम (प्राण + आयाम ) कहते हैं ।
जब प्राणायाम - अभ्यास सिद्ध हो जाता है तब धारणा का द्वार खुल जाता है । आसन - अभ्यास में स्थूल देह आलंबन था , प्राणायाम में श्वास - प्रश्वास आलंबन थे और अब धारणा में कोई सात्त्विक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करना होता है । महर्षि पतंजलि धारणा को परिभाषित करते हुए कहते हैं , किसी सात्त्विक आलंबन पर चित्त का टिक जाना , धारणा है । जब धारणा सिद्ध होती है तब ध्यान का द्वार स्वतः खुल जाता है । धारणा की अखंडित देर तक बने रहना , ध्यान है । ध्यान सिद्धि से सम्प्रज्ञात समाधि में प्रवेश मिलता है । साकार समाधि को सम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं ।
धारणा , ध्यान और साकार समाधि का एक आसन में स्थित रहते हुए एक साथ जब सिद्ध होते हैं तब उसे संयम कहते हैं । संयम से सिद्धियाँ मिलती हैं जो पतंजलि योग साधना के अवरोध हैं । जो सिद्धियों से विचलित नहीं होते , वे सम्प्रज्ञात समाधि से असम्प्रज्ञात समाधि , असम्प्रज्ञात समाधि से धर्ममेघ समाधि और धर्ममेघ समाधि से कैवल्य की यात्रा करते हैं जहां पुरुषार्थ शून्य हो जाता है , तीन गुण प्रतिप्रसव अवस्था में होते हैं और इस स्थिति में यदि शरीर छूट जाए तो वह योगी आवागमन से मुक्त हो जाता है जिसे मोक्ष कहते हैं । आगे चल जरं साधना के इन 05 चरणों को देखा जा सकेगा ।
।। ॐ ।।
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