Tuesday, May 29, 2012

जीवन दर्शन 52

  • हमारी स्मृतियाँ हमें गुमराह होनें से बचा सकती हैं

  • हमारी स्मृतियाँ हमें आसुरी मार्ग पर ले जा सकती हैं

  • हमारी स्मृतियाँ हमें प्रभु से जोड़ सकती हैं

  • इस पल से पहले की स्मृतियाँ ही हमारे इस पल की रूप-रेखा बनाती हैं

  • स्मृतियों किसी को प्रिय – अप्रिय बनाती हैं

  • स्मृतियाँ हँसाती-रुलाती हैं

  • जैसे कल का संचित धन आज के भोजन का साधन बनता है वैसे कल की स्मृतियाँ आज के मन की भोजन – माध्यम हैं

  • बुद्ध सिखाते थे,आलय विज्ञान;इस विज्ञान में मनुष्य के जन्म – जन्मान्तर की स्मृतियों में वापिस ले जानें की ब्यवस्था है और इस प्रकार सृष्टि के प्रारम्भ से ले कर आजतक की स्मृतियों से गुजरनें वाला अंत में स्मृति रहित हो जाता था और उसका मन एक दर्पण सा बन जाता था जिस पर प्रकृति का निर्माता प्रभु दिखनें लगता था और वह योगी तब आंखे बंद करके ध्यान में डूबा प्रभु में हुआ करता था

  • स्मृतियाँ एक तरफ मुक्ति के द्वार हैं और दूसरी तरफ नर्क का द्वार भी

  • भोग – तत्त्वों के सम्मोहन में बसे ब्यक्ति की स्मृतियाँ उसे नर्क में बसानें का यत्न करती रहती हैं

  • और भोग तत्त्वों का सम्मोहन जिस पर नहीं होता उसकी स्मृतियाँ प्रभु के मार्ग को दिखाती हैं

    ==== ओम्======



Saturday, May 26, 2012

जीवन दर्शन 51

क्या कभीं आप ऐसा सोचते हैं कि …....

  • आज आप जिन गलियों में किसी की उंगली पकड़ कर उसे घुमा रहे हैं [ अपनें बेटे को / बेटी को ] उन गलियों में कभीं आप को भी आपकी उंगली पकड़ कर कोई घुमाता रहा है /

  • जिस घर में आज आप किसी को दुल्हन [ पुत्र की पत्नी ] शब्द से संबोधित करते हैं उसी घर में किसी दिन उसी शब्द से कोई आप को संबोधित करता रहा है /

  • जिस घर में आप किसी को पानी लानें को कह रहे हैं उसी घर में किसी दिन कोई आप को पानी लानें को कहता था /

  • जिस घर का मालिक कल कोई और था आज उसी घर का मालिक आप है /

  • आज जिस संपदा का मालिक आप हैं कल उस का मालिक कोई और होगा /

  • कल आप किसी के पुत्र / पुत्री थे , आज को आप का पुत्र / पुत्री है और आनें वाला कल आप को किसी का दादा / दादी बनानें वाला है /

  • किसी दिन किसी की गोदी में आप होते थे और आज आप की गोदी में कोई और है /

ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं जो आप को आकर्षित कर सकते हैं , आप की सोच की दिशा बदल सकते हैं लेकिन आप इब संवेदनशील तथ्यों की ओर पीठ किये हुए हैं / आप ज़रा सोचना ऎसी बातों को यदि आप समयानुकूल सोचते रहे को क्य आप में कभीं अहँकार आ सकता है ?

ऊपर की स्मृतियाँ आप को समभाव में रखती हैं

और

गीता कहता हैं-------

समभाव मुक्ति का द्वार है//

===== ओम्======



Thursday, May 17, 2012

जीवन दर्शन 50

  • देह की और ब्रहमांड की बनावटें एक सी हैं,वेद कहते हैं

  • देह,ह्रदय में बसे ब्रह्म की तलाश का माध्यम है और ब्रह्माण्ड की तलाश मन की तलाश है

  • ब्रह्माण्ड की रिक्तता में ब्रह्म प्रतिबिंबित होता है

  • मन की रिक्तता में ह्रदय में बसा ब्रह्म दिखता है

  • मन में कभीं दो सूचनाएं एक साथ नहीं रह सकती

  • मन कभीं स्वयं के संबंधमें नहीं विचार करता

  • मन जिस घडी स्व पर केंद्रित हो जाता है वह घडी रूपांतरण की घडी होती है

  • वह जो इस घडी को चूक गया , चूक गया और जो पकड़ लिया वह पार गया

  • भोग और भगवान एक साथ एक मन में नहीं बस सकते

  • लेकिन भोग के प्रति उठा होश प्रभु से परिपूर्ण कर देता है

  • मन को बाहर से अंदर की दिशा देना ही ध्यान है

  • जब मन बाहर न भाग कर अंदर रमता है तब वैराज्ञ आगमन होता है

  • वैराज्ञ निर्वाण का द्वार है

  • निर्वाण प्राप्ति ही परम गति है

  • परम गति का अर्थ है आवागमन स मुक्त हो कर प्रभु में समा जाना

=====ओम्======



Tuesday, May 15, 2012

जीवन दर्शन 49

यहाँ सभीं अपनें को आजाद समझते हैं , लेकिन … ...

हैं सभीं गुलाम , जैसे … ...

कोई ममता का गुलाम है

कोई कामना का गुलाम ही

कोई अहँकार का गुलाम है

कोई सौन्दर्यता का गुलाम है

कोई भोजन का गुलाम है

कोई लोभ का गुलाम है

कोई भय का गुलाम है

कोई पत्नी का गुलाम है

कोई पति का गुलाम है

कोई अपनें धार्मिक गुरु का गुलाम है इसलिए की जो संपदा उसके पास है वह कहीं सरक न जाए

कोई अपनें ब्यापार का गुलाम है

कोई मंदिर का गुलाम बन कर धन का स्वामी कुबेर बनना चाहते है

धन – धान्य , परिवार , वासना , अहँकार और सात्त्विक , राजस एवं तामस गुणों के तत्त्वों के सभीं गुलाम है लेकिन स्वयं को आजाद समझ कर सीना तान कर रह रहे हैं और उनका यहीं भ्रम उनको ज़िंदा भी रख रखा है / जिस दिन यह बोध हो जाता है कि हम उसकी गुलामी कर रहे हैं जो दो कौडी के हैं , जो मुझे नरक की ओर खीच रहे हैं उसी घडी रुपानारण हो उठता है और सत्य की किरण उस मनुष्य केसभीं नौ द्वारों को प्रकाशित कर देती हैंऔर वह ब्यक्ति परम आजाद हो कर चल पड़ता है परम धाम की ओर /

वह जिसकी पीठ भोग – संसार की ओर हो और नजरें अनंत में ठहरी हों वह है तिर्थंकर/ /

====ओम्=====


Thursday, May 10, 2012

जीवन दर्शन 48

  • बुद्धि से उपजी बात को प्रकट करनें के एक नहीं अनेक ढंग हैं

  • ह्रदय में उपज रही बात को प्रकट करनें का कोई ढंग नहीं

  • बुद्धि की बात को लोग सुनते से दिखते हैं और उसमें अपनें स्वार्थ की बात खोजते रहते हैं

  • ह्रदय की बात कहनें - सुननें की नहीं यह तो एक धारा है जो इसमें उतरा , बह गया

  • ह्रदय के भाव को जो भाषा में ढालना चाहा दुखी हुआ

  • मीरा को भी कहना ही पड़ा,अब मैं नाचैव बहुत गोपाल

  • आप मंदिर जा रहे हैं ? क्या कुछ देना है ? या कुछ लेना है ? इस बात को भी सोचना

  • जो आप देनें के लिए अपनें पास रखे हैं उसको देखना और जो पाना चाहते हैं उसको देखना

  • एक कौडी दे कर सम्राट बनना चाहते हो?

  • मनुष्य क्यों प्रभु को इतना बेवकूफ समझता है ?

  • मनुष्य प्रभु को भी क्यों धोखा देता रहता है?

  • इस पृथ्वी पर प्रभु के नाम का जितना फैला हुआ ब्यापार है उतना और किसी बस्तु का नहीं

  • पुरानें मंदिर पृथ्वी में समा रहे हैं और नये सर उठाये ऊपर उठ रहे हैं

  • नये मंदिर पुरानों को क्यों नही देखते?

  • एक तरफ लोग नयी मूर्तियों की रचना में लगे हैं और दूसरी तरफ लोग पुरानी मूर्तियों की तस्करी कर रहे हैं

  • एक तरफ कुछ लोग मंदिरों के आकार प्रकार को नया रूप दे रहे हैं और दूसरी तरफ कुछ लोग शास्त्रों को रूपांतरित करने में लगे हुए हैं

  • मनुष्य धर्म – कर्म सब को बदल रहा है लेकिंन स्वयं को?

  • ===== ओम् ======


Monday, May 7, 2012

जीवन दर्शन 47

  • नयी पीढ़ी पुरानीं पीढ़ी से परेशान है
  • नयी पीढ़ी यह कहते नहीं थकती की हमारे पुर्बज कितनें भले थे
  • हम क्यों उनकी प्रशंशा करते हैं जो गुजर गए हैं?
  • नयी और पुरानी पीढ़ियों में कटुआ का कारण क्या हो सकता है?
  • भाई – भाई में कटुता कब और कैसे आती है ?
  • भाई – भाई का बचपन में उगा प्यार ब्याह के बाद धीरे - धीरे क्यों सिकुड़ने लगता है ?
  • माँ-बेटे के मध्य बेटे की पत्नी क्यों दीवार बन जाती है?
  • भारत में नयी पीढ़ी किधर जा रही है?
  • आज लोग बिना कुछ किये मस्त भोग जीवन क्यों गुजारना चाह रहे हैं?
  • आज कलियुग समाप्त हो चुका है और भोग युग अपनी पंख ठीक से फैला रहा है
  • आज क्यों अपनें अपनों से दूर हो रहे हैं और पराये अपनें बन रहे हैं?
  • आज लोग अपनी सास को माँ और ससुर को डैड कहते हैं और अपनें माँ-पिता को?
  • आज भारत में खान – पान,रहन सहन सबकुछ पश्चिमी हो चुका है तो क्या सोच भारतीय हो
    सकती है?
==== ओम् =====

Thursday, May 3, 2012

जीवन दर्शन 46

वह रो रहा था …...
आखिर वह क्यों रो रहा होगा?एक नहीं अनेक भ्रमित मन – बुद्धि में प्रश्न उठनें लगे थे और मुझसे रहा न गया और मैं उसके पास जा कर पूछ ही लिया--------
एक सून सान जगह थी , जहाँ दूर – दूर तक किसी जीव के होनें की कोई खबर न मिल रही थी , एक झाड में अकेले छुपके बैठ कर कोई सिसक – सिसक कर रो रहा था जिसकी पीठ तो थी संसार की ओर और आँखें झाड की सघनता में जैसे किसी की तलाश में खोई हुयी हों और प्राप्ति न मिलनें के करण रह - रह कर उनसे बूँदें टपक रही थी / मैं उस सज्जन से पूछा -------
भाई आप लगते तो हो सभ्य ब्यक्ति ; पढ़े लिखे संपन्न लेकिन यह बात नहीं समझ में आ रही की आप यहाँ जंगल में अकेले इन कटीली झाड में बैठ कर रो क्यों रहे हो ? मैं आपकी रुलाई की गंभीरता को सह न सका और यहाँ आ कर आप के दुःख का कारण जानना चाहता हूँ , मैं आप के दुःख को समझ कर उसे दूर तो नहीं कर सकता पर पर आप के साथ उसे हलका जरुर कर सकता हूँ / वह ब्यक्ति पीछे देखा और बैठनें का इशारा दिया / मैं बैठ गया , वह मेरी तरफ मुह किया और अपनी दास्तान बतानें लगा , कुछ इस प्रकार -----
वह एक वैज्ञानिक था जिसने कपड़ों का निर्माण किया था आज से हजारों साल पहले / वह वैज्ञानिक कहता है , भाई ! आज से हजारों साल पहले मनुष्य भी जंगलों में लंगूरों की भांति पेड़ों पर रहा करते थे , उनमें से एक मैं भी था / एक दिन मैं सोचा कि क्यों हम लोग नंगे बदन रहते हैं , क्यों न कोई ऎसी ब्यवस्था हो जिसे हम सब अपनें तन को ढक कर रख सकें ? मेरा प्रयाश सफल हुआ और मैं कपड़ा बनानें में कामयाब हो गया और कुछ साल बाद मेरी मौत हो गयी / आज हजारों साल बाद प्रभु का आदेश मिला कि तूं जा मृत्यु लोक और वहाँ लोग क्या कर रहे हैं इस बिषय पर आकडें इकठा
कर / मै पृथ्वी पर आ कर भ्रमित हो गया की यह पृथ्वी क्या वही पृथ्वी है जहाँ मैं आज से हजारों साल पहले हुआ करता था ? जहाँ शहर शब्द न था सम्पूर्ण पृथ्वी जंगल मय थी लेकिन आज … ... ?
वह वैज्ञानिक कहता है-------
मैं वस्त्र का निर्माण किया था तन ढकनें के लिए
लेकिन
आज लोग इसका प्रयोग तन दिखानें के लिए कर रहे हैं,फिर तूं सोच मैं रोऊँ न तो
और क्या करूँ?
====ओम्======