हमारी स्मृतियाँ हमें गुमराह होनें से बचा सकती हैं
हमारी स्मृतियाँ हमें आसुरी मार्ग पर ले जा सकती हैं
हमारी स्मृतियाँ हमें प्रभु से जोड़ सकती हैं
इस पल से पहले की स्मृतियाँ ही हमारे इस पल की रूप-रेखा बनाती हैं
स्मृतियों किसी को प्रिय – अप्रिय बनाती हैं
स्मृतियाँ हँसाती-रुलाती हैं
जैसे कल का संचित धन आज के भोजन का साधन बनता है वैसे कल की स्मृतियाँ आज के मन की भोजन – माध्यम हैं
बुद्ध सिखाते थे,आलय विज्ञान;इस विज्ञान में मनुष्य के जन्म – जन्मान्तर की स्मृतियों में वापिस ले जानें की ब्यवस्था है और इस प्रकार सृष्टि के प्रारम्भ से ले कर आजतक की स्मृतियों से गुजरनें वाला अंत में स्मृति रहित हो जाता था और उसका मन एक दर्पण सा बन जाता था जिस पर प्रकृति का निर्माता प्रभु दिखनें लगता था और वह योगी तब आंखे बंद करके ध्यान में डूबा प्रभु में हुआ करता था
स्मृतियाँ एक तरफ मुक्ति के द्वार हैं और दूसरी तरफ नर्क का द्वार भी
भोग – तत्त्वों के सम्मोहन में बसे ब्यक्ति की स्मृतियाँ उसे नर्क में बसानें का यत्न करती रहती हैं
और भोग तत्त्वों का सम्मोहन जिस पर नहीं होता उसकी स्मृतियाँ प्रभु के मार्ग को दिखाती हैं
==== ओम्======
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