Thursday, May 3, 2012

जीवन दर्शन 46

वह रो रहा था …...
आखिर वह क्यों रो रहा होगा?एक नहीं अनेक भ्रमित मन – बुद्धि में प्रश्न उठनें लगे थे और मुझसे रहा न गया और मैं उसके पास जा कर पूछ ही लिया--------
एक सून सान जगह थी , जहाँ दूर – दूर तक किसी जीव के होनें की कोई खबर न मिल रही थी , एक झाड में अकेले छुपके बैठ कर कोई सिसक – सिसक कर रो रहा था जिसकी पीठ तो थी संसार की ओर और आँखें झाड की सघनता में जैसे किसी की तलाश में खोई हुयी हों और प्राप्ति न मिलनें के करण रह - रह कर उनसे बूँदें टपक रही थी / मैं उस सज्जन से पूछा -------
भाई आप लगते तो हो सभ्य ब्यक्ति ; पढ़े लिखे संपन्न लेकिन यह बात नहीं समझ में आ रही की आप यहाँ जंगल में अकेले इन कटीली झाड में बैठ कर रो क्यों रहे हो ? मैं आपकी रुलाई की गंभीरता को सह न सका और यहाँ आ कर आप के दुःख का कारण जानना चाहता हूँ , मैं आप के दुःख को समझ कर उसे दूर तो नहीं कर सकता पर पर आप के साथ उसे हलका जरुर कर सकता हूँ / वह ब्यक्ति पीछे देखा और बैठनें का इशारा दिया / मैं बैठ गया , वह मेरी तरफ मुह किया और अपनी दास्तान बतानें लगा , कुछ इस प्रकार -----
वह एक वैज्ञानिक था जिसने कपड़ों का निर्माण किया था आज से हजारों साल पहले / वह वैज्ञानिक कहता है , भाई ! आज से हजारों साल पहले मनुष्य भी जंगलों में लंगूरों की भांति पेड़ों पर रहा करते थे , उनमें से एक मैं भी था / एक दिन मैं सोचा कि क्यों हम लोग नंगे बदन रहते हैं , क्यों न कोई ऎसी ब्यवस्था हो जिसे हम सब अपनें तन को ढक कर रख सकें ? मेरा प्रयाश सफल हुआ और मैं कपड़ा बनानें में कामयाब हो गया और कुछ साल बाद मेरी मौत हो गयी / आज हजारों साल बाद प्रभु का आदेश मिला कि तूं जा मृत्यु लोक और वहाँ लोग क्या कर रहे हैं इस बिषय पर आकडें इकठा
कर / मै पृथ्वी पर आ कर भ्रमित हो गया की यह पृथ्वी क्या वही पृथ्वी है जहाँ मैं आज से हजारों साल पहले हुआ करता था ? जहाँ शहर शब्द न था सम्पूर्ण पृथ्वी जंगल मय थी लेकिन आज … ... ?
वह वैज्ञानिक कहता है-------
मैं वस्त्र का निर्माण किया था तन ढकनें के लिए
लेकिन
आज लोग इसका प्रयोग तन दिखानें के लिए कर रहे हैं,फिर तूं सोच मैं रोऊँ न तो
और क्या करूँ?
====ओम्======

2 comments:

रविकर said...

शुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
चर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
स्वागत है-

charchamanch.blogspot.com

virendra sharma said...

behatreen prastuti vichaar uttejak .shukriyaa .