जब आप क्रोध में हों तब देखना उसके होनें के कारण को,कारण आप स्वयं नहीं कोई और होगा
भोग - तत्त्वों एवं क्रोध का आपसी गहरा सम्बन्ध है
राजस गुणों के तत्त्वों के साथ धनात्मक अहंकार होता है जो स्पष्ट दिखता है
तामस गुण का अहँकार सिकुड़ा हुआ समय के इन्तजार में केंद्र में झुप कर रहता है
भोग तत्त्वों में अहँकार की उम्र सबसे कम होती है
अहँकार की अनुपस्थिति में सत् का बोध होता है
सत् वह है जो संसार के बोध के साथ प्रभुमय बनाए
भोग तत्त्वों एवं अहँकार के सम्मोहन के प्रभाव से जो बच रहता है वह है ज्ञानी
ज्ञानी प्रभु के सम्बन्ध में चुप रहता है
लाओत्सू कहते हैं ,“ सत् ब्यक्त करनें पर असत्य बन जाता है "
अपनें को दर्पण में क्या देखते हो स्वयं के मन को दर्पण बनाओ
===== ओम्======
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