तीन गुणों से माया है और माया प्रकृति का निर्माता है
तीन गुणों के अपनें-अपनें भाव हैं
सात्त्विक गुण निर्विकार प्रभु से जोड़ता है
राजस गुण भोग में आसक्ति बनाता है
तामस गुण मोह – भय एवं आलस्य से जोड़ कर रखता है
मनुष्य में सात्विक गुण का केन्द्र ह्रदय है
राजस गुण का केंद्र है प्रजनन इंद्रिय के आस – पास का स्थान जिसे स्वाधिस्थान चक्र कहते हैं
तामस गुण के भावों का केंद्र है नाभि चक्र[मणिपुर चक्र]
श्री कृष्ण कहते हैं , “ तीन गुणों के भाव मुझसे हैं और मैं भावातीत हूँ "
शब्दों से संसार बसत है और मौन में भगवान बसता है
प्यार ह्रदय की उपज है और वासना मन – बुद्धि की
प्यार ह्रदय में बसे प्रभु की तरंगों से है जो आत्मा से निकलती हैं
वासना की तरंगें मन से उठती हैं और तन में समाप्त हो जाती हैं
वासना अज्ञान की ऊर्जा से है और प्यार सत् की उर्जा है
====ओम् =======
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