कर्म रहित होना संभव नहीं
बिना गुणों के प्रभाव में कर्म करना भी आसान नहीं
गुण प्रभावित सभीं कर्म भोग हैं
भोग कर्म के करनें से जो खुशी मिलती है उसमें गम का बीज अंकुरित हो रहा होता है
बिना गुण – प्रभाव जब कर्म होते हैं तब उन कर्मों को योग कहते हैं
कर्म योग का प्रारम्भ सत् गुण से है लेकिन सत् गुण में अंत नहीं , अंत गुणातीत में है
सत् गुण के प्रभाव में मनुष्य के देह के सभीं नौ द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं
ऐसे सभी कर्म योग कर्म हैं जीनके होनें में कोई बंधन न हो
कर्म कर्ता भोग तत्त्वों के प्रभाव में जो भी करता है वह भोग कर्म होता है
कर्म योगी को भोग कर्म अकर्म जैसे दिखते हैं
कर्म योगी भोग में कमलवत स्थिति में रहता है
कर्म योगी जो भी करता है समभाव में करता है
कर्म योगी स्व का एवं उससे जो हो रहा होता है उसका भी द्रष्टा होता है
==== ओम्=====
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