तीन गुण हैं और सबकी अपनी - अपनी आसक्तियां हैं
आसक्ति से कामना और कामना से क्रोध उठता है
गुणों के आधार पर तीन प्रकार की कामनाएं भी होती हैं
आसक्ति रहित कर्म कर्म – योग है
आसक्ति रहित कर्म से निष्कर्मता की सिद्धि मिलती है
निष्कर्मता की सिद्धि ही ज्ञान योग की परानिष्ठा है
परानिष्ठा सत् का द्वार खोलती है
सत् के द्वार से जो दिखता है वह है अब्यक्त
कर्म योग की सिद्धि पर कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म दिखता है
कर्म योग की सिद्धि प्राप्त कर्म योगी को सम्पूर्ण ब्रहमांड एक के फैलाव रूपमें दिखता है
अपरा भक्ति को देखा एवं समझा जाता है लेकिन परा को कौन और कैसे समझेगा ?
साकार निराकार का द्वार है और निराकार मात्र एक अनुभूति है जहाँ कहनें को कुछ बचता ही नहीं
===== ओम्=====
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