Tuesday, March 20, 2012

जीवन दर्शन 29

  • तीन गुण हैं और सबकी अपनी - अपनी आसक्तियां हैं

  • आसक्ति से कामना और कामना से क्रोध उठता है

  • गुणों के आधार पर तीन प्रकार की कामनाएं भी होती हैं

  • आसक्ति रहित कर्म कर्म – योग है

  • आसक्ति रहित कर्म से निष्कर्मता की सिद्धि मिलती है

  • निष्कर्मता की सिद्धि ही ज्ञान योग की परानिष्ठा है

  • परानिष्ठा सत् का द्वार खोलती है

  • सत् के द्वार से जो दिखता है वह है अब्यक्त

  • कर्म योग की सिद्धि पर कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म दिखता है

  • कर्म योग की सिद्धि प्राप्त कर्म योगी को सम्पूर्ण ब्रहमांड एक के फैलाव रूपमें दिखता है

  • अपरा भक्ति को देखा एवं समझा जाता है लेकिन परा को कौन और कैसे समझेगा ?

  • साकार निराकार का द्वार है और निराकार मात्र एक अनुभूति है जहाँ कहनें को कुछ बचता ही नहीं

    ===== ओम्=====



No comments: