संसार से भाग कर कहाँ जाओगे?
जहाँ भी जाओगे तुम्हारा अपना संसार निर्मित हो उठेगा
तुम जिस संसार से भागे थे वह किसी और का नहीं था , तुम्हारा अपना था
तुम जगह बदलते रहते हो लेकिन स्वयं को नहीं बदलना चाहते
जबतक तुम अपनें को नहीं बदलते तुम जहाँ भी रहोगे वह तुमको नरक सा दिखता रहगा
यहाँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सभीं सूचनाओं का अपना-अपना संसार है
संसार अर्थात एक स्पेस ; हमारी ऊर्जा का क्षेत्र
जहाँ कोई अपना , कोई पराया का आभाष न रहे वह प्रभु का स्पेस होता है
पर में स्व को देखना एवं स्व में पर को देखना ही भक्ति है
जब बुद्धि से तेरा-मेरा का भाव समाप्त हो जाता है तब वह बुद्धि निश्चयात्मिका बुद्धि होती है
निश्चयात्मिका बुद्धि में प्रभु बसता है
अनिश्चायात्मिका बुद्धि को भोग की बुद्धि होती है
ब्राह्मण वह जो ब्रह्म से परिपूर्ण हो
=====ओम्======
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