गीता के शब्दों के भाव को गीता में खोजना ज्ञान – योग में पहुंचा सकता है
गीता सूत्रों की रोशनी में कर्म करना कर्म – योग हो सकता है
ऐसा कौन है जो भय से मुक्त हो ?
ऐसा कौन है जो मौत से न डरता हो ?
ऐसा कौन हो सकता है जो अमर रहे ?
ऐसा कौन है जो मौत से मित्रता स्थापित करके उसके राज को समझना चाहता हो ?
आखिर तन से हमें इतना लगाव क्यों है?
हमारे तन का क्या अस्तित्व है?
ऐसे सभीं प्रश्नों से मुक्ति पाना ही भय रहित होना होता है
और गीता ऐसे प्रश्नों के ऊपर पड़े परदे को उठा कर कहता है , देख यह है परम की माया
गीता संसार – तत्त्वों से परिचय कराता है
गीता भोग होश उठा कर हमारे अगले कदम को योग में पहुंचाता है
गीता योग भोग के द्वार को बंद करके परम गति की यात्रा पर ले जाता है
गीता के श्लोकों में वही उर्जा है जो सामवेद के बृहत्साम श्रुतियों में है
गीता के सूत्र उस ऊर्जा में पहुंचाते हैं जहाँ गायत्री छंद से साधक पहुंचते हैं
गीता भोग से योग में,योग से वैराज्ञ में और वैराज्ञ से परम में पहुंचाता है
=====ओम्========
No comments:
Post a Comment