क्या फ़ैल रहा है और क्या सिकुड रहा है?
मनुष्य फ़ैल रहा है और मानवता सिकुड रही है
राम सिकुड रहे हैं और काम फ़ैल रहा है
असत् फ़ैल रहा है और सत् सिकुड रहा है
भोग – मन फ़ैल रहा है और चेतना सिकुड रही है
श्रद्धा सिकुड रही है और संदेह फ़ैल रहा है
मनुष्य की संख्या फ़ैल रही है और अन्य जीवों की प्रजातियां सिकुड रही है
प्यार सिकुड रहा है और नफ़रत फ़ैल रही है
समता सिकुड रही है और विसमता फ़ैल रही है
प्रकृति निर्माण सिकुड रहा है और मनुष्य कृत्य निर्माण फ़ैल रहा है
अपनापन सिकुड रहा है और परायापन फ़ैल रहा है
मंदिर फ़ैल रहे हैं और धर्म सिकुड रहा है
योगी फ़ैल रहे हैं और योग सिकुड रहा है
पुरानी परम्पराएं सिकुड रही हैं और नयीं परम्पराएं फ़ैल रही हैं
आनें वाले दिनों में राम – कृष्ण के मंदिर लुप्त हो जानें वाले हैं रावण – कंश के मंदिर दिखेंगे
=====ओम्=====
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