अधिकांश लोग छोटी-छोटी बातो में उलझ कर रह जाते हैं
अहंकार से युक्त जीवन में सुख कहाँ और हम सुख प्राप्त करना चाहते हैं
हम कमीज बनवाते हैं अपनें लिए और पूछते हैं , भाई कैसी है , क्योंकि हमें अपनें पर भी भरोषा कहा
लोग क्या कहेंगे,लोग क्या सोचेंगे लोग हँसेंगे,ऎसी सोचें हमें बंधक बना कर रखती हैं
लोगों का भय जब इतना गहरा है फिर भगवान का भय कैसा होगा,लेकिन फिरभी हम आँख बंद किये चल रहे हैं,इस संसार में,क्यों?
मनुष्य जब किसी ऐसे आयाम में पहंच जाता है जहाँ उसे सभीं मार्ग बंद दिखनें लगते हैं तब वह या तो आत्म हत्या कर बैठता है या मनुष्य से भेडिया बन जाता है
कौन हमारा दोस्त है और कबतक यह दोस्ती रहेगी , कुछ कहना कठिन हैं लेकिन ऎसी सोच से वर्तमान की दोस्ती को खतरा न पैदा करो
यात्रा उसे तबतक कहते हैं जबतक वह रुके नहीं और ज्योंही वह रुकती है,अपना अस्तित्व खो देती है,जीवन भी एक यात्रा ही है
जीवन को अपनें प्रकृति की ऊर्जा से बहनें दो यदि जीवन का मजा उठाना चाहते हो
बंधक बन कर जीनें वाला जीता नहीं वह मात्र मौत का इन्तजार करता है
रविंद्रनाथ टैगोर कहते है , तितिलियाँ दिन , माह एवं वर्ष के सम्बन्ध में नहीं सोचती , वे जिस पल में जीती हैं उसी में मस्त रहती हैं
=====ओम्====
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