परमात्मा से हम कैसा सम्बन्ध बनाना चाहते हैं?
हमें परमात्मा की खोज क्यों है?
यदि परमात्मा हमें मिलता भी हो तो …..... ?
क्या हम उसकी आवाज को पहचानते हैं ?
क्या हम उसके रूप – रंग को समझते हैं ?
क्या हम उसकी संवेदना से वाकिब हैं ?
क्या हम उसके श्वाद को जानते हैं?
यदि ऊपर के प्रश्नो का उत्तर नां में है फिर हम कैसे उसे खोज रहे हैं?
क्या जितनें उसके नाम हैं उनसे हम तृप्त हैं?
कुरानशरीफ में अल्लाह के सौ नामों की चर्चा है लेकिन हैं99नाम आखिर100वां कौन है?
कुरानशरीफ में यह भी लिखा है कि जो औअल है वही आखिरी भी है
बुद्ध से आनंद पूछते है ,
भंते ! आप ईश्वर के नाम पर चुप क्यों हो जाते हैं , बुद्ध मुस्कुराते हुए कहते हैं ,
आनंद ! क्या कहूँ , परिभाषा उसकी होती है जो होता है ----- /
आनंद पुनः पूछते हैं ,
भंते ! क्या वह नहीं है ?
बुद्ध कहते हैं ,
जो हो रहा है वही वह है और जो अभीं भी हो रहा है उसकी परिभाषा करना संभव नहीं/
और गीता कहता है ----
वह अशोच्य – अब्यक्त है
अब अप सोचो उस असोच्य के सम्बन्ध में
=====ओम्=======
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