दिन एवं रात को अलग – अलग देखना एक सहज भ्रम है
दिन का प्रारम्भ रात्रि से और रात्रि का प्रारम्भ दिन से है
ब्यय में अब्यय की झलक पाना ही साधना है
वह इंद्रिय रहित है वह मन रहित है लेकिन दोनों का श्रोत वही है
क्या वह पांच बिषयों में सीमीत है
क्या उसे हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पहचानती है
वह कौन सी बस्तु या जगह है जहां वह नहीं
हम उसकी निगाह से परे जा कैसे सकते हैं
साकार की यात्रा निराकार में पहुंचाती है
भोग का अंत वैराज्ञ है
=====ओम्======
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