भाषा बुद्धि की बात को प्रकट करती है और भाव दिल की बात का रस होता है
संसार में बनें रहनें के लिए भाषा एक माध्यम है और भाव स्वयं से जोड़ता है
संसार में सभीं जीवों की अपनीं-अपनी भाषा होती है जैसे अमेरिका का कुत्ता जगन्नाथ पूरी के कुत्ते की भाषा को समझता है लेकिन मनुष्यों में ऐसा नहीं है/
महल में रहने वाला कुत्ता झोपड़े में रहनें वाले कुत्ते से घृणा नहीं करता लेकिन मनुष्य?
सभीं देशों के एक वर्ग के सभीं जीव – जंतुओं का रहन – सहन,खान – पान,स्वभाव एवं भाषा एक सी होती है लेकिन मनुष्य की?
भाषा का जन्म भावों के ब्यक्त करनें की ऊर्जा से हुआ है
जो भाषा भावों के जितनी करीब होती है वह उतनी ही जीवंत होती है
कबीर , मीरा , नानक के पास सीमित शब्द ते लेकिन जो बात वे उन शब्दों में ढाला वह सीमा रहित हैं
भक्त भाषा का गरीब होता है लेकिन भाव का सागर उनके दिल में बसता है
मनुष्य में तीन तरह के भाव बहते हैं;सात्त्विक,राजस एवं तामस और इन तीन के परे जो भाव है उसे भावातीत कहते है जिसकी ऊर्जा में प्रभु बसता है
==== ओम्=====
No comments:
Post a Comment