नदी के दो किनारे आपस में मिलते से दिखते हैं लेकिन कभीं मिलते नहीं
नदी के दोनों किनारों का श्रोत एक है ; एक बूँद जिसे नदी में खोजना अति कठीन
देह में प्रभु की बूँद है आत्मा जिसको देखना ही परम दर्शन है
माया का श्रोत मायातीत है और माया के बिना मायातीत को देखना अति कठिन
बोधि धर्मं अपनी आखिरी प्रार्थना में कहते हैं , माया तेरा धन्यबाद यदि तूं न होती तो प्रभु की अनुभूति कैसे होती ?
तीन गुणों का श्रोत गुणातीत है
जिसको तुम अपना समझ रहे हो क्या वही तो तुम्हारे दुःख का कारण तो नहीं
जबतक मन – बुद्धि में अपना-पराया का भाव है तबतक शांति कहाँ
संसार तीन मार्गी है ; अपना , पराया और न अपना न पराया , आखिरी मार्ग तब खुलता है जब प्रारंभिक दो बंद हो जाते हैं
अपना का भव अहंकार को तीब्र करता है
पराया का भाब हीन भाव ला सकता है
न अपना न पराया हीगीता का समभाव है
जीवन को दो से निकाल कर जब एक पर केंद्रित कर दिया जाता है त वह एक भी तिरोहित हो जाता है उस परम में जहां मात्र एक शून्यता साक्षी के रूप में अचल बिद्यमान रहती है
= ====ओम् ======
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