Tuesday, February 14, 2012

जीवन दर्शन भाग एक

  • नदी के दो किनारे आपस में मिलते से दिखते हैं लेकिन कभीं मिलते नहीं

  • नदी के दोनों किनारों का श्रोत एक है ; एक बूँद जिसे नदी में खोजना अति कठीन

  • देह में प्रभु की बूँद है आत्मा जिसको देखना ही परम दर्शन है

  • माया का श्रोत मायातीत है और माया के बिना मायातीत को देखना अति कठिन

  • बोधि धर्मं अपनी आखिरी प्रार्थना में कहते हैं , माया तेरा धन्यबाद यदि तूं न होती तो प्रभु की अनुभूति कैसे होती ?

  • तीन गुणों का श्रोत गुणातीत है

  • जिसको तुम अपना समझ रहे हो क्या वही तो तुम्हारे दुःख का कारण तो नहीं

  • जबतक मन – बुद्धि में अपना-पराया का भाव है तबतक शांति कहाँ

  • संसार तीन मार्गी है ; अपना , पराया और न अपना न पराया , आखिरी मार्ग तब खुलता है जब प्रारंभिक दो बंद हो जाते हैं

  • अपना का भव अहंकार को तीब्र करता है

  • पराया का भाब हीन भाव ला सकता है

  • न अपना न पराया हीगीता का समभाव है

  • जीवन को दो से निकाल कर जब एक पर केंद्रित कर दिया जाता है त वह एक भी तिरोहित हो जाता है उस परम में जहां मात्र एक शून्यता साक्षी के रूप में अचल बिद्यमान रहती है

= ====ओम् ======



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