Sunday, March 27, 2022

संसार का अस्तित्व प्रकृति - पुरुष आधारित है

यहाँ गीता श्लोकों के आधार पर बनायीं गयी दो स्लाइड्स दी जा रही हैं । इन दो स्लाइड्स से प्रभु श्री कृष्ण के द्वारा समर्थित सांख्य दर्शन की बुनियादी तत्त्व प्रकृति - पुरुष और इन दोनों के संयोग से सृष्टि की उत्पत्ति - रहस्य को स्पष्ट किया जा रहा है । आगे चल कर हम इसी तरह की 10 स्लाइड्स में माध्यम से प्रकृति - पुरुष सांख्य रहस्य से सम्बंधित 21 सांख्य कारिकाओं के सार को भी देखेंगे ।

Friday, March 25, 2022

दुःख संयोग वियोगम् योगः

प्रभु श्री कृष्ण गीता : 6.23 में जो परिभाषा योग की देते हैं ( जिसे स्लॉइड में दिया गया है ) , उस सन्दर्भ में दुःख उत्पन्न करने वाले तत्त्वों ( कर्म बंधन , चित्त वृत्तियां और क्लेषों ) को अब समझते हैं ⬇️ 1 - कर्म बंधन क्या हैं ? आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य और अहँकार को कर्म बंधन तत्त्व कहते हैं । प्रभु श्री कृष्ण गीता श्लोक - 6.23 में योग को परिभाषित करते हुए कहते हैं , " ऐसे तत्त्व जो दुःख उत्पन्न करते हैं , उनमें वियोग पैदा करना , योग है " । अब देखना होगा उन तत्त्वों को जो दुःख के हेतु हैं । गीता में प्रभु श्री कृष्ण 08 कर्म बंधनों को दुःख के हेतु बताते हैं जिन्हें ऊपर स्लॉइड में दिखाया गया है । मूलतः ये तत्त्व राजस और तामस गुणों की वृत्तियां हैं । बिषय - इंद्रिय संयोग (जिसे गीता : 5.22 में भोग बताया गया है ) से मन में बिषय के प्रति मनन पैदा होता है , मनन से बिषय के प्रति आसक्ति पैदा होती है , आसक्ति से कामना उठती है और कामना टूटनें से क्रोध पैदा होता है जो नाश के द्वार पर पहुँचाता है ( देखें गीता : 2.62 - 2.63 ) । मोह , भय और आलस्य तामस गुण की वृत्तियां हैं । लोभ का अर्थ है लालच अर्थात जो है , उसे और पाने की चाह , लोभ है । 2 - पञ्च चित्त वृत्तियां क्या हैं ? ऊपर स्लॉइड में पतंजलि योग सूत्र आधारित 05 प्रकार की चित्त - वृत्तियों को बताया गया है जो क्लिष्ट और अक्लिष्ट दो रूपों में प्रकट होती हैं । क्लिष्ट दुःख से जोड़ती हैं और अक्लिष्ट सुख से । ध्यान रखें यहाँ दुःख और सुख भोग आधारित नहीं हैं , योग आधारित हैं । राजस और तामस गुणों के प्रभाव में आसुरी सम्पदा और सात्त्विक गुण से दैवी सम्पदा मिलती है । पहली दुःख से जोड़ती है और दूसरी सुख से जोड़ती है ( यहाँ देखें गीता अध्याय : 16 ) । प्रमाण चित्त वृत्ति बिषय - ज्ञान इंद्रियों के जुड़ने से उत्पन्न होती है जो प्रत्यक्ष , अनुमान और आगम , तीन प्रकार की होती है । प्रत्यक्ष में बिषय - इंद्रिय संयोग से बिषय बोध होता है । जब बिषय अनुपस्थित हो तब उसके चिन्ह के आधार पर उस बिषय के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जाता है जैसे दूर कहीं उठ रहे धुंआ को देख कर वहां आग होने का अनुमान लगाना , अनुमान प्रत्यक्ष चित्त वृत्ति कहलाती है । जब प्रत्यक्ष और अनुमान से बिषय बोध होना संभव न हो सके तब शास्त्रों में उस बिषय के प्रति उपलब्ध ज्ञान से जो वृत्ति उठती है उसे आगम प्रत्यक्ष चित्त वृत्ति कहते हैं । विपर्यय वृत्ति : अविद्या का दूसरा नाम विपर्यय है । सत्य को असत्य समझना , विपर्यय है । विकल्प वृत्ति : जब बिषय अनुपस्थित हो और उसके बारे में उपलब्ध सूचनाओं के जानने से जो वृत्ति उत्पन्न हो उसे विकल्प वृत्ति कहते हैं । निद्रा वृत्ति : स्वप्न के थीक विपरीत निद्रा है जहाँ बिषय शून्यता में चित्त होता है लेकिन इस शून्यता का भी कोई साक्षी वृत्ति होती है जो उठने पर आभास कराती है कि आज बहुत गहरी नींद आयी , समय का पता तक न चला । इस साक्षी चित्त वृत्ति को निद्रा वृत्ति कहते हैं । स्मृति वृत्ति : पूर्व अनुभवों को ठीक समय पर स्मृति पटल पर जो वृत्ति ला देती है , उसे स्मृति वृत्ति कहते हैं । 3 - पञ्च क्लेष क्या हैं ? अविद्या , अस्मिता , राग , द्वेष और अभिनिवेष पञ्च क्लेष हैं । अविद्या शेष चार क्लेषों की जननी है । विपर्यय का ही दूसरा नाम अविद्या या अज्ञान है । अस्मिता अहं भाव को कहते हैं । सुख की तलाश में राग की ऊर्जा रखती है । द्वेष दुःख की ऊर्जा पैदा करता है । अभिनिवेष अर्थात मृत्यु - भय की ग्रंथि दुःख की ऊर्जा का श्रोत है । इस प्रकार 08 कर्म बंधन , पांच चित्त वृत्तियां और पांच क्लेषों को दुःख - संयोग तत्त्वों के रूप में देखा गया । अब अगले अंक में यह देखा जाएगा कि सुख - दुःख का भोक्ता कौन है और कर्म बंधनों , चित्त की वृत्तियों तथा क्लेषों की जननी कौन है ? ~~ ॐ ~~

Wednesday, March 2, 2022

पुनर्जन्म का हेतु लिङ्ग शरीर

बिस्तर से लिङ्ग और भाव सृष्टियों सहित्त लिङ्ग शरीर को देखें अगके अंक में । सांख्य में पुनर्जन्म रहस्य पूर्ण रूपेण स्पष्ट है । ~~ ॐ ~~

Tuesday, March 1, 2022

श्रीमद्भगवद्गीता गीता अध्याय - 13 सात तत्त्व

गीता अध्याय - 13 मूलतः सांख्य दर्शन आधारित है । बिना सांख्य दर्शन ज्ञान , इस अध्याय को ठीक - ठीक समझना आसान नहीं । क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ , प्रकृति - पुरुष , ज्ञान - ज्ञानी और कार्य - करण को इस अध्याय में बताया गया है ।