Monday, May 31, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 8 - 12

 

यहाँ 04 श्लोक उस मैं पर केंद्रित हैं  जो एक सूक्ष्म से सूक्ष्म , अनंत और एक है । जिसको ब्रह्मचारी अपनें ब्रह्मचर्य साधना में , योगी अपनें योग साधना में , ज्ञानी तत्त्व ज्ञान साधना में , भक्त अपनें परा प्यार में और उपनिषद् नेति - नेति के माध्यम से देखने को उत्सुक हैं ।

🙏 ध्यान रखना ! उस मैं की ज्योंही अनुभूति होती है त्योंही वह साधक निःशब्द हो जाता है और मौन की गुफा में बैठा माया का द्रष्टा बन गया होता है । वह मेरे जैसे ब्लॉग्ग नहीं लिख सकता , आप जैसे पढ़ नहीं सकता , वह तो केवल और केवल द्रष्टा है वह भी चर्म चक्षु से नहीं , विवेक की आँख से द्रष्टा बना होता है।

उस मैं को मेरा भी नमस्कार ⏬



Sunday, May 30, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 भाग - 1

 विदेह राजा जनक अध्याय - 1 में अष्टावक्र के  श्लोक : 2 - 20 तक को सुन चुके हैं । अध्याय - 1 का पहला श्लोक प्रश्न रूप में विदेह राजा जनक का ही है किसके माध्यम से वे जानना चाहते हैं कि वैराग्य , ज्ञान और मोक्ष कैसे प्राप्त किया जाता है ?

अध्याय - 1 के 19 श्लोक ( 2 से 20 तक ) में ऐसी कौन सी ऊर्जा रही होगी जो नाम से विदेह राजा जनक को आध्यात्मिक रूप से विदेह होने की अनुभूति जागृत कर दी ! , इस बात को पहले स्पष्ट किया जा चूका है ।

अब अष्टावक्र गीता में विदेह राजा जनक और बाल ऋषि अष्टावक्र की सोच में कोई अंतर नहीं दिखेगा ।  दोनों का केंद्रआत्मा - ब्रह्म है ।

अष्टावक्र गीता मूलतः वेदांत दर्शन आधारित है जो अद्वैत्य बादी दर्शन है । इस दर्शन में आत्मा , जीवात्मा , ब्रह्म , परमात्मा , भगवान , ईश्वर , महेश्वर जैसे अनेक शब्द दिखते हैं और इन सबका संकेत एक ऊर्जा की ओर है जिससे और जिसमें सभीं दृश्य वर्ग हैं ।  दृश्य वर्ग ( जिनको इन्द्रियां पकड़ सकती हैं ) को माया कहते हैं और द्रष्टा को ब्रह्म कहते हैं ।अब उतरते हैं अष्टावक्र गीता के अध्याय - 2 के प्रारंभिक श्लोकों में जहाँ ब्रह्म और ब्रह्म के ऊर्जा - कण आत्मा एवं स्वयं के सम्बन्ध के रहस्य को राजा जनक के शब्दों में देखा जा सकता है 👇



Friday, May 28, 2021

अष्टावक्र गीता श्लोक : 1.6 - 1.10

 अष्टावक्र के प्रारंभिक 19 श्लोकों में श्लोक : 1.6 - 1.10 का सार नीचे स्लाइड में दिया गया है ।

ध्यान रखें ! यहाँ जो भी दिया जा रहा है उसका एक मात्र लक्ष्य है , आपको अष्टावक्र की सोच से जोड़ना । यहाँ संस्कृत से हिंदी में जो भाषान्तर किया जा रहा है , वह अनुबाद नहीं भावार्थ मात्र है । सरल से सरल शब्दों के  माध्यम से जटिल से जटिल अष्टावक्र के वचनों को व्यक्त करने के  प्रयास का मुख्य ध्येय यही है कि हम यह समझ सकें की हम कौन हैं ?

◆ करता भाव अहँकार की छाया है , करता तो गुण हैं ।

◆ हमारा बंधन केवल यह है कि हम द्रष्टा तो हैं लेकिन स्वयं को दृश्य और किसी और को द्रष्टा मान बैठे हैं ....

इस प्रकार के गणितीय सूत्र आपको यहाँ मिलेंगे जिनको  समझ कर कर्म - बंधनों की जाल से मुक्त हो कर उस अव्यक्त , सनातन , अप्रमेय , गुणातीत , मायातीत और अपरिवर्तनीय की सोच में अपनें अंतःकरण को डुबो दें । अपनें को बचाना नहीं , डूब जाने दें और अनंत की गहराई में पहुँचने पर ज्ञान अनंत हो उठेगा और ज्ञेय शून्य । परम प्रकाश जो अंदर है पर माया सम्मोहन में  उसे कहीं और ढूढ रहे हैं , कस्तूरी मृग जैसे , उस की अनुभूति होने लगती है । ध्यान रखें कि अष्टावक्र के प्रारंभिक 19 श्लोकों को सुनते ही राजा जनक रूपांतरित हो जाते हैं और उनके अंदर प्रश्न करने की ऊर्जा समर्पण और श्रद्धा में बदल जाती है

अब आगे 👇


Wednesday, May 26, 2021

अष्टावक्र गीता श्लोक - 1.1 भाग - 3

 अष्टावक्र गीता में अध्याय - 1 श्लोक -1 वक्ता विदेह राजा जनक , संपूर्ण गीता का प्राण है अतः इस श्लोक की थीक - ठीक समझ , संपूर्ण गीता की समझ है । 

आज हम इस श्लोक के तीसरे भाग से परिचित हो रहे हैं । अगला अंक में अष्टावक्र गीता अध्याय - 1 श्लोक : 2 - 20 तक का सार दिया जाएगा जिसके वक्ता अष्टावक्र जी हैं ।

अगले 19 अष्टावक्र के श्लोकों को सुनते ही विदेह राजा जनक रूपांतरित ही जाते हैं । रूपांतरित का भाव है कि वे स्थिर प्रज्ञ गुणातीत हो उठते हैं क्योंकि अष्टावक्र गीता में अगले 19 अध्यायों में अष्टावक्र और विदेह राजा जनक के वचन पूर्णतया एक जैसे हैं और दोनों यह बताते हैं - मैं कौन हूँ ?

अब अष्टावक्र गीता श्लोक : 1 , भाग - 3 को देखते हैं ⬇️



Tuesday, May 25, 2021

अष्टावक्र गीता श्लोक - 1 भाग - 2 वैराग्य क्या है ?

 अष्टावक्र गीता श्लोक - 1 , राजा जनक का श्लोक अष्टावक्र गीता का केंद्र है । ज्ञान , वैराग्य और मोक्ष को राजा जनक बुद्धि स्तर पर समझना चाह रहे हैं । श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय : 13 श्लोक - 2  में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं , " क्षेत्रक्षेत्रज्ञो : ज्ञानं यत् ज्ञानं "  अर्थात क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है । आगे प्रभु श्री कहते हैं , यह देह क्षेत्र है और इसमें रहने वाला , क्षेत्रज्ञ है । रहनेवाला कौन है ? रहनेवाला आत्मा है । 

जीव , प्रकृति ( माया ) और पुरुष ( आत्मा ) का योग है । प्रकृति जड़ है और आत्मा शुद्ध चेतन । जीव का शरीर ,  आत्मा को छोड़ शेष सब माया ( प्रकृति ) है । सांख्य और पतंजलि भी कहते हैं , 25 तत्त्वों का बोध ज्ञान है । 25 तत्त्वों में 24 तत्त्व प्रकृति और उसकी विकृति हैं और 25 वां तत्त्व पुरुष है जिसे वेदांत में आत्मा कहते हैं । प्रकृति  तीन गुणों की साम्यावस्था का नाम है जो पुरुष की ऊर्जा से विकृत हो जाती है और 23 संर्गों की उत्पत्ति होती है । यही सर्ग स्थूल देह का निर्माण करते हैं और इस जड़ देह में पुरुष ( चेतन ) सभीं संर्गों में प्राण संचालित करता है ।

अब देखते हैं स्लाइड को ⬇️



Sunday, May 23, 2021

अष्टावक्र गीता का शुभारंभ

 अभीं तक हम अष्टावक्र गीता से सम्बंधित पात्रों एवं घटनाओं के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे । अब आज से मूल अष्टावक्र गीता में प्रवेश कर रहे हैं । अष्टावक्र गीता के प्रवेश द्वार पर 293 श्लोकों की एक तालिका दिखती है जो स्वयं में ध्यान का एक प्रमुख आलंबन है । कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको व्यक्त करने पर वे अपना अस्तित्व खो देती हैं । अतः हम आप से अनुरोध करते हैं कि की आप स्वतः अष्टावक्र गीता के श्लोक - तालिका को देखें और अपनें बुद्धि - योग का इसे माध्यम बनायें , बहुत सकून मिलेगा , आप को । आइये ! देखते हैं इस तालिका को⬇️



Saturday, May 22, 2021

बंदी - अष्टावक्र शास्त्रार्थ का अंतिम भाग

 आचार्य बंदी - अष्टावक्र शास्त्रार्थका आज अंतिम अंक आप के लिए प्रस्तुत है।

अगला हम सबका पहला कदम अष्टावक्र गीता में होने वाला है जहाँ अष्टावक्र के 226 श्लोकों एवं जनक के 67 श्लोकों से परिचय होगा।

राजा जनक अपनें 67 श्लोकों में से श्लोक : 1 के माध्यम से एक मात्र प्रश्न करते हैं और यही एक प्रश्न एक मात्र यह बताता है कि जनक शिष्य बनने के जिज्ञासु हैं । इस पहले श्लोक के बाद के श्लोकों में अष्टावक्र - जनक की भाषा ,भाव और शैली सामानांतर दिखती हैं ; दोनों एक की ही पुनरावृत्ति करते हैं ।


~~शेष अगले अंकों में ~~



Tuesday, May 18, 2021

आचार्य बंदी - अष्टावक्र शास्त्रार्थ का अगला भाग

 आचार्य बंदी वरुण देव के पुत्र हैं । विशेष कारण से अपना परिचय दिए बिना विदेह राजा जनक के दरबार में प्रधान आचार्य के रूप में आसीन हैं ।

एक 12 वर्षीय ऋषि पुत्र से शास्त्रार्थ कर रहे हैं । शात्रार्थ का यह तीसरा दिन चल रहा है । अभी कुछ दिनों में इस शास्त्रार्थ की समाप्ति होने वाली है । इस जे बाद अष्टावक्र गीता का मूल रूप प्रस्तुत किया जायेगा । यदि आप चाहें तो हमारे साथ इस यात्रा और यथावत बने रहें ।



Sunday, May 16, 2021

आचार्य बंदी - अष्टावक्र शास्त्रार्थ भाग 2.1

 विदेह राजा जनक के प्रधान आचाए बंदी और ऋषि पुत्र अष्टावक्र में शास्त्रार्थके पहले भाग में पौराणिक बातों की चर्चा हो रही थी । अब भाग दो में शास्त्रार्थ का बिषय वेदांत है और बेदान्त में ' मैं कौन हूँ ' बिषय केंद्रित चर्चा को यहाँ दिया जा रहा है .⬇️



Saturday, May 15, 2021

आचार्य बंदी - अष्टावक्र शास्त्रार्थ भाग - 1 के अंतिम दो अंक

 अभी तक आचार्य बंदी और ऋषि पुत्र अष्टावक्र के मध्य पौराणिक विषयों पर शास्त्रार्थ चल रहा था । अब इन दो अंको के बाद वैदिक विषयों पर जो शास्त्रार्थ हुआ , उसे प्रारम्भ किया जायेगा ।

#हम अभीं तक अष्टावक्र गीता सन्दर्भ में पात्रों से परिचय कराये हैं , गीता के सम्वन्ध में कुछ बातें बताये हैं और आचार्य बंदी - अष्टावक्र शास्तार्थ के पहले भाग को दिखाया है ।

अब आगे के अंको का सम्बन्ध आचार्य बंदी और अष्टावक्र के उस शास्त्रार्थ को दिखाया जाएगा जिसका सम्बन्ध ब्रह्म - माया से है ।

इस चर्चा के बाद अष्टावक्र गीता के 20 अध्यायों के सार को दिखाया जाएगा ।



Wednesday, May 12, 2021

अष्टावक्र - आचार्य बंदी शास्त्रार्थ भाग - 4

 पहले बताया जा चुका है कि अष्टावक्र और आचार्य बंदी का शास्त्रार्थ दो रूपों में दिया गया है ; पहले रूप में पौराणिक संख्या आधारित बिषयों पर चर्चा है जिसे यहाँ दिखाया जा रहा है और दूसरी चर्चा वेदांत आधारित है जिसे इस चर्चा के पूरा होने के बाद प्रारम्भ की जायेगी ।

आइये ! अभीं चलते हैं शास्त्रार्थ की चौथी कड़ी को स्पर्श करने⬇️



Saturday, May 8, 2021

विदेह राजा जनक का अष्टावक्र से दूसरा प्रश्न पूछते हैं

★अष्टावक्र आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिए मिथिला पहुंचे हुए हैं । वहाँ विदेह राजा जनक से उनका साक्षात्कार होता है । विदेह राजा को ऐसा आभाष हो रहा है कि यह 12 वर्षीय ब्राह्मण बालक असाधारण बालक है अतः अपनें प्रमुख आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ करनें की अनुमति देने से पूर्व वे स्वयं सच्चाई को परखना चाहते हैं । 

राजा जनक अष्टावक्र से दो प्रश्न करते हैं । पहला प्रश्न आप सब देख चुके हो , पिछले अंक में और अब दूसरे प्रश्न और उसके  अष्टावक्र के उत्तर को देखिये ।

अगले अंक से आचार्य बंदी और अष्टावक्र का शास्त्रार्थ आप सबको देखने को मिलेगा । 

Friday, May 7, 2021

राजा जनक का पहला प्रश्न और अष्टावक्र का उत्तर

 अष्टावक्र और राजा जनक का पहला संबाद । 

विदेह राजा जनक अष्टावक्र की बुद्धि परखने हेतु दो प्रश्न करते हैं , जिनमें से पहला प्रश्न और उसका उत्तर यहाँ दिया जा रहा है। अगले अंक में दूसरा प्रश्न और अष्टावक्र के उत्तर को  आप देख सकेंगे ।

Sunday, May 2, 2021

अष्टावक्र की जनकपुर की यात्रा

 हम अष्टावक्र गीता की यात्रा और निकले हुए हैं और समय -समय पर जो -जो मोड़ आते हैं , वहाँ - वहाँ घडी - दो घडी रुकना ही पड़ता है क्योंकि अगर न रुकें तो अष्टावक्र गीता के पात्रों के प्रति  श्रद्धायुक्त व्यवहार न होगा  ।

आज हम देख रहे हैं कि अंततः युवा अष्टावक्र  मिथिला नरेश विदेह राजा जनक के दरबार में पहुँच चुके हैं । 

आगे क्या होता है , अगले आने वाले अंकों में देखने को मिलेगा ।

ध्यान रखें कि 20 अध्ययब 293  श्लोकों वाले अष्टावक्र गीता का केंद्र आत्मा है और श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा से सम्बंधित 26 श्लोक हैं ।

।। ॐ ।।