Monday, May 31, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 8 - 12

 

यहाँ 04 श्लोक उस मैं पर केंद्रित हैं  जो एक सूक्ष्म से सूक्ष्म , अनंत और एक है । जिसको ब्रह्मचारी अपनें ब्रह्मचर्य साधना में , योगी अपनें योग साधना में , ज्ञानी तत्त्व ज्ञान साधना में , भक्त अपनें परा प्यार में और उपनिषद् नेति - नेति के माध्यम से देखने को उत्सुक हैं ।

🙏 ध्यान रखना ! उस मैं की ज्योंही अनुभूति होती है त्योंही वह साधक निःशब्द हो जाता है और मौन की गुफा में बैठा माया का द्रष्टा बन गया होता है । वह मेरे जैसे ब्लॉग्ग नहीं लिख सकता , आप जैसे पढ़ नहीं सकता , वह तो केवल और केवल द्रष्टा है वह भी चर्म चक्षु से नहीं , विवेक की आँख से द्रष्टा बना होता है।

उस मैं को मेरा भी नमस्कार ⏬



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