Tuesday, May 25, 2021

अष्टावक्र गीता श्लोक - 1 भाग - 2 वैराग्य क्या है ?

 अष्टावक्र गीता श्लोक - 1 , राजा जनक का श्लोक अष्टावक्र गीता का केंद्र है । ज्ञान , वैराग्य और मोक्ष को राजा जनक बुद्धि स्तर पर समझना चाह रहे हैं । श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय : 13 श्लोक - 2  में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं , " क्षेत्रक्षेत्रज्ञो : ज्ञानं यत् ज्ञानं "  अर्थात क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है । आगे प्रभु श्री कहते हैं , यह देह क्षेत्र है और इसमें रहने वाला , क्षेत्रज्ञ है । रहनेवाला कौन है ? रहनेवाला आत्मा है । 

जीव , प्रकृति ( माया ) और पुरुष ( आत्मा ) का योग है । प्रकृति जड़ है और आत्मा शुद्ध चेतन । जीव का शरीर ,  आत्मा को छोड़ शेष सब माया ( प्रकृति ) है । सांख्य और पतंजलि भी कहते हैं , 25 तत्त्वों का बोध ज्ञान है । 25 तत्त्वों में 24 तत्त्व प्रकृति और उसकी विकृति हैं और 25 वां तत्त्व पुरुष है जिसे वेदांत में आत्मा कहते हैं । प्रकृति  तीन गुणों की साम्यावस्था का नाम है जो पुरुष की ऊर्जा से विकृत हो जाती है और 23 संर्गों की उत्पत्ति होती है । यही सर्ग स्थूल देह का निर्माण करते हैं और इस जड़ देह में पुरुष ( चेतन ) सभीं संर्गों में प्राण संचालित करता है ।

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