Tuesday, February 26, 2013

कौन और कब सुना -----

जब सुनानें वाला नहीं होता , सुना कर जा चुका होता है तब कुछ लोग उसकी बात  पर सोचते हैं लेकिन तबतक इतनी देर हो चुकी होती है कि उनकी सोच पर संसार की भोग - ऊर्जा का गहरा प्रभाव पड़ चुका होता है और उनकी स्मृति में  सुनानें आये हुए सत् पुरुषके खंडित शब्द  रह - रह के ऐसे चुभते रहते हैं कि वे घडी भर भी अपनें बनाए भोग संसार का मजा नहीं ले पाते / 

मनुष्य - जी हाँ मनुष्य के मष्तिष्क की बनावट कुछ ऎसी है जिसे सुपर कंप्यूटर से भी अधिक शक्तिशाली बाना जा रहा है , वह साकार सूचनाओं के आधार पर निराकार सूचनाओं में झांक सकता है और झाँक भी रहा है / मनुष्य काम से राम तक की सोच अपनें मष्तिष्क में रखता है लेकिन दुःख इस बात का है अनुशय को न काम से तृप्ति मिल रही और न संसार में ब्याप्त उन मार्गो पर दिख रही जिनको लोग राम मार्ग कह कर राम का ब्यापार कर रहे हैं / 

जीवों में मात्र मनुष्य एक ऐसा जीव है जो ऊपर आकाश में देखता है और नीचे पृथ्वी के गर्भ में भी झांकता रहता है लेकिन कहीं से उसे पल भर को भी शांति नहीं दिखती , ऐसा क्यों ? क्योंकि वह कहीं घडी भर रुकता ही नहीं / बीसवीं शताब्दी में आइन्स्टाइन प्रकाश की गति को परम माना लेकिन मनुष्य के मन की गति प्रकाश की गति से भी अधिक गति वाला है / कहते है , सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचनें  में आठ मिनट लेता है और मनुष्य एक सेकण्ड के हजारहवें समयांश में सूर्य को देख लेता है / 

सभीं जीव भोग में भाग रहे हैं और सबका एक मार्ग है - भोग -  भोजन लेकिन मनुष्य बिचारा भ्रमित है ; वह कभीं भोग तो कभी भगवान , कभी काम तो कभीं राम , कभीं भोग तो कभी योग - एक कोजब  एक हाँथ से पकता है और दूसरा उसका हाँथ तुरंत दूसरे को पकड़ लेता है / मनुष्य जब योग में बैठता है तब उसे भोग बुलानें लगता है और जब भोग में रमता है तब उसे योग कि आहट सुनाई पड़नें लगती है / 

वह जो भोग को योग का माध्यम समझा ......
वह जो काम को राम का मार्ग समझा ....
वह जो पर में स्वयं को देखा .....
वह जो स्वयं में पर को देखा ....
उसे चैन खोजना नहीं पड़ता -----
उसे स्वर्ग खोजना नही पड़ता ----
वह जहाँ होता है , वहीं चैन होता है ....
और 
वहीं स्वर्ग होता है 

===== ओम् ======

Tuesday, February 12, 2013

कौन सुनानें वाला है और कौन सुनने वाला है ?

सुननें वाला वह है , जो कामना का गुलाम है ....
सुननें वाला वह है , जिसके अंदर पूर्ण रूप से श्रद्धा की लहर बह रही होती है ....
सुननें वाला वह है , जिसके अंदर धनात्मक अहँकार का अभाव है .....
सुननें वाला वह है , जिसके अंदर सात्त्विक गुण प्रभावी होता है ....
सुननें वाला वह है , जिसके सभीं नौ द्वार प्रकाशित  हो रहे होते हैं ....

और ----

सुनानें वाला वह है , जो प्रभु समान  होता है ....
सुनानें वाला वह है , जो ब्रह्म वित् होता है .....
सुनानें वाला वह है , जो काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहकार रहित हो ...
सुनानें वाला वह है , जो भौतिक साधनों से संपन्न है ....
सुनानें वाला वह है , जो देता तो  है लेकिन उसका देना उसके अहँकार का भोजन होता है ...

कुछ बातें सुननें और सुनानें वालो के सम्बन्ध में दी गयी हैं , लेकिन इन बातों में दो प्रकार के सुननें वाले हैं और दो ही प्रकार के सुनानें वाले हैं ; पहली श्रेणी है उनकी जो योगी है और दूसरी श्रेणी उनकी है जो भोगी हैं /
 भोगी सुननें वाला है और भोगी ही सुनाने वाला -----
योगी सुननें वाला है और योगी हि सुनानें वाला ----
योगी सुनानें वाला है और  भोगी सुननें वाला ----

लेकिन 

भोगी सुनानें वाला हो और योगी सुननें वाला हो ऐसा होना कठिन है ,

 क्योंकि 

भोगी , भोगी की बात को समझ सकता है ....
योगी , योगी की बात को समझता है ....
योगी , भोगी की बात को समझता है ...
पर 

योगी की बात को भोगी नहीं समझता , और यदि समझता है तब वह उस घडी भोगी नहीं होता , उस घडी उसका मन - बुद्धि भोग भाव की ऊर्जा को नहीं धारण किये हुए होते और जब ऐसा होता है तब उस भोगी को वह खिडकी भी दिखती है जहाँ से सत् की  किरण उसकी ओर आती उसे दिख सकती है / 
भोग से योग में रखा कदम ब्रह्म अनुभूति में पहुंचा सकता है 
योग से भोग में लौटा कदम नर्क  में पहुंचाता है 

=== ओम् ====



Wednesday, February 6, 2013

वहाँ क्या है ?


  • जहाँ न दिन है न रात ....
  • जहाँ न सत् है न असत् .....
  • जहाँ न मैं हैं न तूं .............
  • जहाँ न काम है , न राम ....
  • जहाँ न माया है , न काया .....
  • जहाँ न आसमान है , न धरती .....
  • जहाँ न पाप है न पुण्य .....
  • जहाँ न अच्छा है न बुरा ....
  • जानां न दुःख है , न सुख ....
  • जहाँ न भय है न मोह ....
  • जहाँ न कामना है , न क्रोध .....
  • जहाँ न लोभ है , न अहँकार ....


आखिर ऐसे आयाम में क्या हो सकता है ?


  • गुण तत्त्वों के परे निर्गुणी रहता है 
  • माया परे मायापति रहता है 
  • काम परे कामेश्वर रहता है 
  • सभीं भावों के परे भावातीत रहता है 

फिर हम सब क्यों उसे समझनें में असमर्थ हैं ?

बहुत सीधा सा जबाब है :

हम जहाँ हैं , जहाँ रहते हैं , उसको समझनें की कोशिश करते ही नहीं 
जिस घडी हमारी दृष्टि स्व पर केंद्रित हो जायेगी , उस घडी उसे समझनें की जरुरत न होगी , वह सर्वत्र नजर आनें ही लगेगा अतः पर से अपनी दृष्टि को स्व पर केंद्रित करनें का अभ्यास करना हमारे हाँथ में है और यह अभ्यास जिस घडी अभ्यास - योग में रूपांतरित हो उठेगा उस घडी हमें उसे खोजनें के किये काशी या काबा की यात्रा न करनी होगी  , हम जहाँ भी होंगे वही  काशी और काबा हो उठेगा / 
प्रभु तो सर्वत्र है लेकिन ज्योंही भोग से हमारी दृष्टि प्रभु की ओर मुडती है , न जानें क्यों हमारी पलकें झपक जाती हैं और हम चूकते चले जा रहे हैं , काश ! वह घडी आये जब हमारी पलकें झपकें नही और हम प्रभु को अपनें नयनों में बसा सकें /

==== ओम् =====

वहाँ क्या है ?