Saturday, April 30, 2011

प्राणायाम


प्राणायाम क्या है?

पतंजलि योग सूत्रों में एक नहीं एनेक ध्यान की विधियाँ बताई गयी है जैसे शिव योग सूत्रों में

और सब का एक विज्ञान है जिसका आधार है श्वास के माध्यम से तन,मन और बुद्धि को

निर्विकार बनाना/

प्राणायाम दो शब्दों से मिल कर बना है;प्राण और आयाम/वह आयाम जहां हम यह

अनुभव करनें लगते हैं की प्राण नाम की कोई चीज हमारे देह में है जिसके होनें से हम हैं/


तंजलि - योग विज्ञान का एक मूल सिद्धांत है , कुछ इस प्रकार … ......

देह मे स्थित जीवात्मा को निर्विकार बनाना//

जीवात्मा के लिए आत्म,जीवात्मा,परागात्मा और प्रत्यागात्मा ये चार शब्द दिए गए हैं/

आत्मा वह निर्विकार माध्यम है जिसको परमात्मा का अंश कहा गया है,प्रभु श्री कृष्ण

कहते हैं[गीता- 10 . 20 ] …....

अहम् आत्मा गुणाकेश

जब जीवों के देह में यह आत्मा प्राण के रूप में आता है तब उसको जीवात्मा कहते हैं/

जीवात्मा इन्द्रियों एवं मन के कारण विकार यक्त हो जाता है और इस जीवात्मा को परागात्मा

कहते हैं/

विकारों से मुक्त जीवात्मा को योग विज्ञान में प्रत्यागात्मा कहते हैं/

दस प्रकार की श्वासें हैं;जिनके नियोजन को प्राणायाम कहते हैं/

श्वासों के माध्यम से परागात्मा को प्रत्यागात्मा में बदलना ही पतंजलि योग का मुख्य लक्ष है/

भोक्ता आत्मा को द्रष्टा आत्मा में वापिस ले आना ही प्राणायाम है//


======ओम========



Tuesday, April 26, 2011

दर्द का रिश्ता

दर्द , परम - धाम एवं नर्क , दोनों का द्वार है ।
दर्द में रुक जाना नर्क की ओर ले जाता है और दर्द की मैत्री परम - धाम की यात्रा है ।
मीरा में दर्द उठा , मीरा उस दर्द को स्वीकारा , जीवन भर उसके साथ रही और कहते हैं
मीरा द्वारिका धीश की मूर्ति में समा गयी । कहानियाँ अपनें में परम सत्य को छिपाए होती
हैं , उन सत्यों को खोजना ही साधना है ।
कहानियो को मनोरंजन का साधन बनाना नर्क की ओर की यात्रा है और कहानियों में
सत्य को खोजना ही परमात्मा की खोज है ।
कहानियो का एक छोर नर्क की ओर होता है और दूसरा छोर निर्वाण की ओर इशारा करता है ।
मीरा [1498 -1546] नानक [ 1469 -1539] कबीर [ 1398 -1518] भारत भूमि पर एक साथ
20 वर्षों तक रहे मीरा अपनें दर्द को मथुरा से द्वारिका तक फैलाया,उनका केन्द्र था कन्हैया ।
मीरा अपनें दर्द में प्रभु को महशूश किया और दर्द तो बाहर रह गया पर मीरा प्रभु मे समा गयी /
कबीर अपनी भूख की दर्द को राम से जोड़ कर काशी के अहंकारी तर्क - शास्त्रिओं के मध्य
सरल भाषा में वेदान्त की ऊर्जा को भरना चाहा और लगभग एक सौ बीस सालों तक लोगों
को खूब पियाया वेदान्त /
नानक कहते हैं , नानक दुखिया सब संसार और अपनें इस मूल - मंत्र के साथ पंजाब से करबला ,
मक्का और जेरुसलेम तक की यात्रा करते रहे ।
नानक - कबीर के दर्द के केन्द्र राम थे और मीरा का केन्द्र कन्हैया थे ,
आप के दर्द का केन्द्र क्या है ?
वृन्दाबन में जब मीरा का रहना सम्भव न हो सका तब उनको द्वारका में शरण लेनी पड़ी थी ।
मीरा के आखिरी वक्त के समय उनके खानदान का एक सदस्य मेवार का राजा था जिस को
मीरा से बहुत था । राजा अपनें सेना का एक दल द्वारका मीरा को लेने केलिए भेजा सेनापति के
आग्रह के सामनें मीरा ना न कह पायी और बोली-- मैं चलूंगी लेकिन पहले कन्हैया से पूछ तो लू तबतक आप लोग यही विश्राम करें । कहानी कहती है की मीरा गयी कन्हैया के सामनें और कन्यैया की मूर्ती में समा गयी ।
आप क्या समझ रहे हैं , क्या यह बात सही है ? सही होनी ही चाहिए परम - भक्त
तो हर समय कन्हैया में रहता ही है , चाहे वह कन्हैया की मूर्ती हो या स्वयं कन्हैया /
मीरा का दर्द मीरा को परम - धाम में पहुंचाया और आप आप का दर्द आप को कहाँ ले जा रहा है ?
==== ॐ ======

Sunday, April 24, 2011

मनुष्य की स्थिति

मनुष्य अपनें को सबसे अधिक धोखा देता है , क्या आप जानते हैं ?
मनुष्य स्वयं को सर्बोच्च शिखर पर देखना चाहता है और उसकी यह चाह उसे बेचैन बना कर रखती है ।
मनुष्य सभीं जीवों का सम्राट है लेकिन वह स्वयं से भी भयभीत रहता है , ऐसा क्यों ?
हम मुट्ठी खोलना नही चाहते पर जो मुट्ठी में नहीं है उसे भरना भी चाहते हैं ,
क्या यह सम्भव है ?
बंद मुट्ठी में भरनें की चाह को कामना कहते हैं और कामना में धनात्मक अंहकार होता है ।
जो चीज मुट्ठी में है वह कहीं सरक न जाए, इसकी सोच मोह उपजाती है
मोह भी कामना है जिसमें सिकुड़ा हुआ नकारात्मक अंहकार होता है
मोह में मनुष्य लोगों से दूर भागना चाहता है , अकेला रहना चाहता है और सहारा खोजता है
कामना की एक और स्थिति होती है जिसको लोभ कहते हैं
लोभ में भी भय के साथ - साथ कमजोर अंहकार होता है
सामान्यत : लोभ बूढों को होता है और जवान कामना में जीता है
गीता कहता है , काम, क्रोध,लोभ और मोह परमात्मा के राह के मजबूत अवरोध हैं ।

===== ओम =======

Monday, April 18, 2011

दिया आज भी जल रही थी


घोर जंगल में दरिया उस पार एक इतना छोटा झोपडा कि जिसमें मुश्किल से एल ब्यक्ति गुजारा कर सकता था रह – रह कर मेरे ध्यान को अपनी ओर खीच रहा था


मैं आदिबासी इलाके में अपनें प्राचीन भारत की स्मृति ताजी करनें के इरादे से उस इलाके में गया हुआ था



मैं अपनें नाविक से पूछा , क्या आप मुझे उस झोपड़े तक ले जा सकते हैं ? जो मांगेगे , मैं आप को दूंगा अभी मेरी बात पूरी भी न हो पायी थी कि नाविक झट से बोल पड़ा , नहीं साहिब , मैं तो वहाँ दरिया उस पार नहीं जा सकता नाविक की आवाज में कुछ सम्मोहन सा था , वह डर रहा सा लग रहा था , मैं उस से पूछा , भाई ! बात क्या है , मैं तो इस इलाके के लिए नया हूँ , यदि कोई बात हो तो मुझे बता दो ? नाविक बोला , साहिब ! वहाँ उस झोपड़े में एक बाबा रहता है जो रात को इंशान रूप में झोपड़े में रहता है और सूरज छिपते ही जानवर बन कर शिकार करता है


मैं क्या बस्ती का कोई भी ब्यक्ति उधर नहीं जा सकता , वह न जानें कितनों को खा चुका है और जो वहाँ पहुंचा वह वापिस न् आ सका



मेरी जिज्ञासा और बढनें लगी और मैं सोच बैठा कि चाहे जो कुछ भी क्यों न घटित हो लेकिन मैं वहाँ जाउंगा गा जरुर मैं किसी तरह उस नाविक को तैयार किया और पहुंचा दरिया उस पार ------



दरिया के उस पार , उस झोपड़े को देखनें से ऐसा लग रहा था कि यहाँ काफी दिनों से कोई इंसान नही आया होगा मैं हिम्मत करके झोपड़े के अंदर गया , वहाँ एक इंसान का कंकाल पड़ा था जो


अबतक मम्मी बन चुका था झोपड़े के अंदर एक अधूरी पत्थर पर बनायी जा रही मूर्ति पडी थी , जिस पर लिखा था ,


प आओगे जरुर एक दिन लेकिन तबतक शायद मैं न रह सकूं


यह देख कर ताज्जुब हो रहा था कि झोपड़े में एक दिया आज भी जल रहा था



बाहर जब हम निकले , आगे एक इंसान , बुढा इंशान खडा था , हम सब को देख रहा था मैं उनसे पूछा , बाबा ! यहाँ कौन रहता था ? और आज भी इसके अंदर एक दिया जल रहा है , कौन जलाया होगा ?


बाबा बोले , बेटा इस राज को कोई नहीं जानता लेकिन यहाँ कुछ रात गए कोई आता जरुर है जो दिया जला कर लुप्त हो जाता है , यह एक राज है और राज ही रहेगा



कौन था वह बाबा?कौन रहता था उस झोपड़े में?


किसका इंतजार था उसे?और वह किसके इन्तजार में वहाँ उस झोपड़े में रहता था?मैं गया तो था जिज्ञासा बश लेकिन जब आया तो ऐसा लगनें लगा


जैसे मैं एक दम खाली हो चुका हूँ



====== ओम =======



Wednesday, April 13, 2011

प्रभु की तलाश जारी है

मनुष्य प्रभु को खोजनें में क्या - क्या नहीं कर रहा -------

मनुष्य को प्रभु से क्या काम है ?

वह जो भूखा है …......

वह जो महलों में रहता है …...

वह जो खुशी में है ….........

वह जो दुःख में है …........

सभीं लोग प्रभु को खोज रहे हैं , आखिर क्यों ?

क्या हम प्रभु को जानते हैं ?

क्या हमें प्रभु की पहचान है ?

जब हम प्रभु के रूप – रंग , उनकी आवाज को , उनकी खुशबू को

उनकी संवेदनशीलता को नहीं जानते फिर यदि प्रभु मिलते भी हों तो

हम उनको अपनी इन्द्रियों से या मन से कैसे समझें ? लेकिन फिरभी हमारी तलाश जारी है , आखिर कोई तो कारण होगा ही |

एकांत में अकेले बैठ कर कभीं सोचना कि प्रभु को आप क्यों पाना चाहते हैं?

प्रभु सब कुछ तो दे रखा है,लेकिन बस्तुओं से हमारी तृप्त नहीं होती,आखिर क्यों?

बस्तुओं से हमारी तृप्ति नहीं और प्रभु को हम बस्तुओं की तरह प्रयोग करना चाहते हैं फिर

प्रभु कैसे मिलेगा ?

गीता कहता है-------

तन , मन , बुद्धि को रिक्त करो और उस रिक्तता में तेरी चेतना जिसकी ज्योति को देखेगा वह है परमात्मा | गीता का अर्जुन प्रभु के नाना प्रकार के रूपों को देखा लेकिन

एक तरफ से देखता रहा और दूसरी ओर से भूलता रहा अंत में थक कर कहनें लगा ,

प्रभु आप अनंत हैं , अब मैं आप की शरण में हूँ , मैं अपनी स्मृति को पा ली है जो

आप को पहचानती है अत ; आप मुझे यथा उचित मार ्ग दिखाएँ |

समर्पण प्रभु के द्वार को खोलता है , लेकिन समर्पण का भाव पाना

इतना आसान नहीं |

प्रभु को खोजो , खूब खोजो और जब आप थक जायेंगे , आप भी अर्जुन बन जायेंगे ||


========== ओम ===============



Saturday, April 9, 2011

चन्दन लगाना ही ध्यान विधी है


ललाट का चन्दन


माथे या ललाट पर लगा चन्दन दूर से दिखता है और इसके लगाने के

पीछे कुछ बातें हैं;


पहली बात है कि माथे का चन्दन दूर से दिखता है और इसका आकार – प्रकार उस

परम्परा को दर्शाती है जिस परम्परा का वह ब्यक्ति होता है|

भारतीय प्राचीनतम परम्परा में शिष्य और गुर ू परम्परा साधना में अपनी एक अलग

जगह रखती है|माथे पर लगाया हुआ चन्दन यह बताता है कि यह ब्यक्ति

किस गुरू का शिष्य है?

दूसरी बात जो माथे का चन्दन बताता है वह है …......

यह ब्यक्ति की साधना में कौन सी स्थिति है?


माथे का चन्दन चन्दन लगानें वाले का ध्यान अपनें ऊपर रहता है अर्थात ध्यान

तीसरी आँख पर हर पल रखना अपनें में स्वयं ही एक सहज ध्यान है|

चन्दन जैसे-जैसे सूखता जाता है वैसे-वैसे यह वहाँ की त्वचा को सिकोड़ता रहता है

और यह उसका कृत्य चन्दन लगानें वाले के ध्यान को अपनी ओर खीचता रहता है|


माथे पर लगा चन्दन अपनी ओर अर्थात तीसरी आँख पर ध्यान को खीच कर मन को

विचार शून्यता की स्थिति में रखनें का प्रयाश करता है और मन – विचार शून्यता परम्

ध्यान की स्थिति होती है |


अगले अंक में माथे के चन्दन के बिषय पर कुछ और बातें देखनें को मिल सकती हैं||


===========ओम=================



Tuesday, April 5, 2011

चन्दन साधना टूल है



चन्दन साधना का एक टूल है


चन्दन के ऊपर आप पहले दो अंक देख चुके हैं अब आज आप को चन्दन साधना का एक टूल

[ tool ] है , इस बात पर चर्चा करते हैं |


मूलाधार.काम,नाभि,ह्रदय,कंठ,तीसरी आंख[ललाट का मध्य भाग]और

सहस्त्रार[जहां हिंदू लोग चोटी रखते हैं]ये सात चक्र हैं जिनके माध्यम से आत्मा[देही]

देह से जुड़ा होता हैऔर --------------------

गीता कहता है …................

आत्मा को देह में तीन गुण रोक कर रखते हैं और … ................

परम् हंस रामकृष्ण जी कहते हैं-----------------

गुनातीत[मयामुक्त]योगी तीन सप्ताह से अधिक समय तक अपनें देह में नहीं रह सकता|

यहाँ चक्रों को हम इस लिए देख रहे हैं कि------

चक्र साधना सबसे पुरानी साधना है और इसका रहस्य चन्दन प्रयोग रहस्य से मिलता भी है|

मूलाधार से सहस्त्रार के मध्य काम,नाभि दो चक्र महान और मजबूत साधना के अवरोध हैं जो

मूला धार की ऊर्जा को ऊपर उठनें नहीं देते|

मूलाधार की ऊर्जा को ही कुण्डलिनी कहते हैं जो ऊर्जा का मूल श्रोत है[निर्विकार ऊर्जा का] |

अब आप उन स्थानों को देखें जहां चन्दन लगाया जाता है और चक्रों की स्थितियों को देखो,क्या इनमें आप को कोई समानता दिखती है?

एक बात याद रखना----------------

आज कुण्डलिनी जागरण के नाम पर लोग बहुत से ध्यान सिखा रहे हैं लेकिन याद रखना---------

काम,कामना,क्रोध,लोभ,मोह,भय,आलस्य और अहंकार कुण्डलिनी जागरण के शत्रु हैं|

कुण्डलिनी स्वयं जाग्रति हो उठती है जब हम गुण – तत्त्वों की ग्रेविटी से बाहर निकलते हैं|


आज आप मूलाधार चक्र को देखें और रीढ़ की हड्डी के निचले कमर के साथ के भाग को देखें जहां चन्दन लगाया जाता है|चन्दन एक ऐसा एजेंट है जो चक्रों की ऊर्जा को गति देता है और

ऊर्जा को निर्विकार भी बनाता है|

अगले अंक में कुछ और बातें देखनें को मिलेंगी


============ओम================



Friday, April 1, 2011






चन्दन कहाँ लगाएं



चन्दन लगाने के निम्न स्थान हैं और चन्दन लगानें के ढंग भी अलग – अलग हैं



ललाट का मध्य भाग …......


सर में जहां हिदू लोग चोटी रखते हैं [सहस्त्रार चक्र] …....


दोनों आँखों की पलकों के ऊपर …......................................


दोनों कानों पर ….......................


नाक …................


गला ….............


दोनों भुजाओं का मध्य भाग …...........


ह्रदय …...................


गर्दन …..................


नाभि ….................


रीढ़ की हड्डी का नीचला भाग नाभि के ठीक पीछे लगभग एक इंच नीचे की ओर …....



आप पहले इन अंगों को ठीक ढंग से देखें और इनको साधना की दृष्टि से समझें



न्यूरोलोजी की द्रष्टि से यदि आप इन स्थानों को देखते हैं तो चन्दन का सीधा सम्बन्ध


इस तंत्र के उन भागों से हैं


जो----------------


या तो सूचनाओं को इक्कठी करते हैं या इक्कठी की गयी सूचनाओं की एनेलिसिस करते हैं


विज्ञान अभीं तक यह समझता रहा है कि स्पाइनल कार्ड मात्र सूचनाओं को इक्कठी करनें


के तंत्र का एक प्रमुख भाग है लेकिन अभीं हाल में पता चला है कि यह सूचनाओं की


एनेलिसिस भी कर्ता है जैसे ब्रेन करता है



आगे के अंक में चन्दन के सम्बन्ध में कुछ और अहंम बातों को देखेंगे



======ओम==============