मनुष्य प्रभु को खोजनें में क्या - क्या नहीं कर रहा -------
मनुष्य को प्रभु से क्या काम है ?
वह जो भूखा है …......
वह जो महलों में रहता है …...
वह जो खुशी में है ….........
वह जो दुःख में है …........
सभीं लोग प्रभु को खोज रहे हैं , आखिर क्यों ?
क्या हम प्रभु को जानते हैं ?
क्या हमें प्रभु की पहचान है ?
जब हम प्रभु के रूप – रंग , उनकी आवाज को , उनकी खुशबू को
उनकी संवेदनशीलता को नहीं जानते फिर यदि प्रभु मिलते भी हों तो
हम उनको अपनी इन्द्रियों से या मन से कैसे समझें ? लेकिन फिरभी हमारी तलाश जारी है , आखिर कोई तो कारण होगा ही |
एकांत में अकेले बैठ कर कभीं सोचना कि प्रभु को आप क्यों पाना चाहते हैं?
प्रभु सब कुछ तो दे रखा है,लेकिन बस्तुओं से हमारी तृप्त नहीं होती,आखिर क्यों?
बस्तुओं से हमारी तृप्ति नहीं और प्रभु को हम बस्तुओं की तरह प्रयोग करना चाहते हैं फिर
प्रभु कैसे मिलेगा ?
गीता कहता है-------
तन , मन , बुद्धि को रिक्त करो और उस रिक्तता में तेरी चेतना जिसकी ज्योति को देखेगा वह है परमात्मा | गीता का अर्जुन प्रभु के नाना प्रकार के रूपों को देखा लेकिन
एक तरफ से देखता रहा और दूसरी ओर से भूलता रहा अंत में थक कर कहनें लगा ,
प्रभु आप अनंत हैं , अब मैं आप की शरण में हूँ , मैं अपनी स्मृति को पा ली है जो
आप को पहचानती है अत ; आप मुझे यथा उचित मार ्ग दिखाएँ |
समर्पण प्रभु के द्वार को खोलता है , लेकिन समर्पण का भाव पाना
इतना आसान नहीं |
प्रभु को खोजो , खूब खोजो और जब आप थक जायेंगे , आप भी अर्जुन बन जायेंगे ||
========== ओम ===============
No comments:
Post a Comment