मनुष्य अपनें को सबसे अधिक धोखा देता है , क्या आप जानते हैं ?
मनुष्य स्वयं को सर्बोच्च शिखर पर देखना चाहता है और उसकी यह चाह उसे बेचैन बना कर रखती है ।
मनुष्य सभीं जीवों का सम्राट है लेकिन वह स्वयं से भी भयभीत रहता है , ऐसा क्यों ?
हम मुट्ठी खोलना नही चाहते पर जो मुट्ठी में नहीं है उसे भरना भी चाहते हैं ,
क्या यह सम्भव है ?
बंद मुट्ठी में भरनें की चाह को कामना कहते हैं और कामना में धनात्मक अंहकार होता है ।
जो चीज मुट्ठी में है वह कहीं सरक न जाए, इसकी सोच मोह उपजाती है
मोह भी कामना है जिसमें सिकुड़ा हुआ नकारात्मक अंहकार होता है
मोह में मनुष्य लोगों से दूर भागना चाहता है , अकेला रहना चाहता है और सहारा खोजता है
कामना की एक और स्थिति होती है जिसको लोभ कहते हैं
लोभ में भी भय के साथ - साथ कमजोर अंहकार होता है
सामान्यत : लोभ बूढों को होता है और जवान कामना में जीता है
गीता कहता है , काम, क्रोध,लोभ और मोह परमात्मा के राह के मजबूत अवरोध हैं ।
===== ओम =======
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