Friday, March 30, 2012

जीवन दर्शन - 34

  • कर्म रहित होना संभव नहीं

  • बिना गुणों के प्रभाव में कर्म करना भी आसान नहीं

  • गुण प्रभावित सभीं कर्म भोग हैं

  • भोग कर्म के करनें से जो खुशी मिलती है उसमें गम का बीज अंकुरित हो रहा होता है

  • बिना गुण – प्रभाव जब कर्म होते हैं तब उन कर्मों को योग कहते हैं

  • कर्म योग का प्रारम्भ सत् गुण से है लेकिन सत् गुण में अंत नहीं , अंत गुणातीत में है

  • सत् गुण के प्रभाव में मनुष्य के देह के सभीं नौ द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं

  • ऐसे सभी कर्म योग कर्म हैं जीनके होनें में कोई बंधन न हो

  • कर्म कर्ता भोग तत्त्वों के प्रभाव में जो भी करता है वह भोग कर्म होता है

  • कर्म योगी को भोग कर्म अकर्म जैसे दिखते हैं

  • कर्म योगी भोग में कमलवत स्थिति में रहता है

  • कर्म योगी जो भी करता है समभाव में करता है

  • कर्म योगी स्व का एवं उससे जो हो रहा होता है उसका भी द्रष्टा होता है

==== ओम्=====





Wednesday, March 28, 2012

जीवन दर्शन - 33

  • कर्म रहित कोई जीव धारी एक पल भी नहीं रह सकता[गीता- 18.11 ]

  • भूतभावः उद्भवकरः विसर्गः इति कर्मः[गीत –8.3 ]

    [जीव जिससे भावातीत हो सके वह कर्म है]

  • कर्म कर्ता मनुष्य या जीव नहीं उनके अंदर तीन गुणों का समीकरण होते हैं

  • मनुष्य में जो गुण जिस समय प्रभावी रहता है वह उस प्रकार का काम करता है

  • सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई नहीं जी पर तीन गुणों का प्रभाव न पड़ता हो[गीता- 18.40 ]

  • थर्मामीटर में जैसे ताप के प्रभाव में पारा ऊपर नीचे होता रहता है वैसे तीन गुण मनुष्य के अंदर उठते - बैठते रहते हैं [ सोच , खान – पान , रहन – सहन के आधार पर ]

  • सात्विक गुण ज्ञान की ओर ले जाता है

  • राजस गुण भोग से बाधता है

  • तामस गुण मोह एवं भय का जन्म दाता है

  • तीन गुण स्वभाव का निर्माण करते हैं

  • स्वभाव से कर्म होता है

  • कर्म से सुख – दुःख का अनुभव होता है

  • किसी के कर्म एवं कर्म – फल की रचना प्रभु आधारित नहीं है[गीता- 5.14 ]

  • मनुष्य जब कर्म करता है तब स्वयं करता समझता है और जब परिणाम गलत होते है तब प्रभु को जिम्मेवार समझता है , क्या है यह राजनीति वह भी प्रभु से ?

  • परिणाम उत्तम तो उस कर्म को करनें वाला मैं हूँ और यदि परिणाम अशुभ हुआ तो वह प्रभु के कारण हुआ,यह है मनुष्य की गणित


====ओम्=======



Monday, March 26, 2012

कौन सिकुड रहा है और कौन फ़ैल रहा है

क्या फ़ैल रहा है और क्या सिकुड रहा है?


मनुष्य फ़ैल रहा है और मानवता सिकुड रही है

राम सिकुड रहे हैं और काम फ़ैल रहा है

असत् फ़ैल रहा है और सत् सिकुड रहा है

भोग – मन फ़ैल रहा है और चेतना सिकुड रही है

श्रद्धा सिकुड रही है और संदेह फ़ैल रहा है

मनुष्य की संख्या फ़ैल रही है और अन्य जीवों की प्रजातियां सिकुड रही है

प्यार सिकुड रहा है और नफ़रत फ़ैल रही है

समता सिकुड रही है और विसमता फ़ैल रही है

प्रकृति निर्माण सिकुड रहा है और मनुष्य कृत्य निर्माण फ़ैल रहा है

अपनापन सिकुड रहा है और परायापन फ़ैल रहा है

मंदिर फ़ैल रहे हैं और धर्म सिकुड रहा है

योगी फ़ैल रहे हैं और योग सिकुड रहा है

पुरानी परम्पराएं सिकुड रही हैं और नयीं परम्पराएं फ़ैल रही हैं

आनें वाले दिनों में राम – कृष्ण के मंदिर लुप्त हो जानें वाले हैं रावण – कंश के मंदिर दिखेंगे


=====ओम्=====




Saturday, March 24, 2012

जीवन दर्शन 31

जीव,जीवन सिद्धांत एवं शब्द जो पैदा हुए हैं एक दिन समाप्त हो जायेंगे

आप देखना आज प्यार,प्रेम,प्रेमी एवं प्रेमिका जैसे शब्दों में कितनी और जान बची पडी है?

आज वासना शब्द की चादर प्यार शब्द को ढक चुकी है

आज समझना कठिन हो गया है कि वासना - प्यार में क्या भेद है ?

वासना माध्यम के सहारे यात्रा करती है और प्यार माध्यम रहित है और सर्वत्र है

वासना का माध्यम भाषा-भाव हैं और प्यार निर्भाव में बसता है

प्यार की धुन रहित धुन परम प्रेमी को सुनाई पड़ती है

प्रेमी शब्द रहित स्थिति में गाता है

संसार वासना का सागर है लेकिन इसका मूल परम प्रेम है

बिना गुण निर्गुण में पहुँचना संभव नहीं और बिना वासना प्यार को छूना भी सभव नहीं

गुण निर्गुण के माध्यम हैं और वासना प्यार का

सभीं गुण एवं उनके भाव प्रभु श्री कृष्ण से हैं लेकिन प्रभु स्वयं निर्गुणी हैं और भावातीत हैं

====ओम्======



Thursday, March 22, 2012

जीवन दर्शन 30

  • रामायण गानें वालों की संख्या अनेक है लेकिन उनमें स्वप्न में भी राम को देखने वाले कितने हैं?

  • घर से भाग कर प्रभु के खोजी अनेक हैं लेकिन उनमें कितने बुद्ध बन पाते हैं?

  • उपवास करने वाले भी कम नहीं लेकिन महावीर कितने बन पाए ?

  • घर में मंदिर बनवाने वाले अनेक हैं पर मन को मंदिर कितने बना पाते हैं ?

  • सभीं कहते हैं, “राम सहारे गाडी चल रही है"पर ह्रदय में बैठे राम को कितने निहारते हैं?

  • मस्तक पर चन्दन सभीं लगाते हैं पर उनमें कितने तीसरी आँख की कल्पना कर पाते हैं?

  • शिव को जल सभीं चढाते हैं पर शिव जो बातें पार्वती को ध्यान के सम्बन्ध में बताई है उनको कितने लोग जानना चाहते हैं ?

  • सीता चौदह साल अपने पति के साथ जंगल में रही और हम उनको पूजते हैं पर लक्षमण की पत्नी उर्मिला जो चौदह साल पति का इन्तजार करने में लगा दी उसे कौन जानता है ?

  • गीता कहता है, “वह जो मोह में शरीर त्यागता है उसे पशु योनी या कीड़ों-पकोड़ों की योनी मिलती है"और श्री राम के पिता दशरथ राम के मोह में शरीर त्यागा था फिर उनको कौन सी योनी मिली होगी?

  • बाल श्री कृष्ण को चाहनें वाले बहुत हैं लेकिन गीत के श्री कृष्ण[सांख्य – योगी कृष्ण]को कितनें लोग चाहते हैं?

  • एक नहीं एनेक बार द्वारिका समुद्र में समा चुकी है और अगले50सालों में एक बार और यह समुद्र में समानें वाली है,इस बात को कनाडा के भारतीय मूल के वैज्ञानिक टाटापल्ली का कहना है/


===== ओम्========





Tuesday, March 20, 2012

जीवन दर्शन 29

  • तीन गुण हैं और सबकी अपनी - अपनी आसक्तियां हैं

  • आसक्ति से कामना और कामना से क्रोध उठता है

  • गुणों के आधार पर तीन प्रकार की कामनाएं भी होती हैं

  • आसक्ति रहित कर्म कर्म – योग है

  • आसक्ति रहित कर्म से निष्कर्मता की सिद्धि मिलती है

  • निष्कर्मता की सिद्धि ही ज्ञान योग की परानिष्ठा है

  • परानिष्ठा सत् का द्वार खोलती है

  • सत् के द्वार से जो दिखता है वह है अब्यक्त

  • कर्म योग की सिद्धि पर कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म दिखता है

  • कर्म योग की सिद्धि प्राप्त कर्म योगी को सम्पूर्ण ब्रहमांड एक के फैलाव रूपमें दिखता है

  • अपरा भक्ति को देखा एवं समझा जाता है लेकिन परा को कौन और कैसे समझेगा ?

  • साकार निराकार का द्वार है और निराकार मात्र एक अनुभूति है जहाँ कहनें को कुछ बचता ही नहीं

    ===== ओम्=====



Saturday, March 17, 2012

जीवन दर्शन 28

गीता के शब्दों के भाव को गीता में खोजना ज्ञान – योग में पहुंचा सकता है

गीता सूत्रों की रोशनी में कर्म करना कर्म – योग हो सकता है

ऐसा कौन है जो भय से मुक्त हो ?

ऐसा कौन है जो मौत से न डरता हो ?

ऐसा कौन हो सकता है जो अमर रहे ?

ऐसा कौन है जो मौत से मित्रता स्थापित करके उसके राज को समझना चाहता हो ?

आखिर तन से हमें इतना लगाव क्यों है?

हमारे तन का क्या अस्तित्व है?

ऐसे सभीं प्रश्नों से मुक्ति पाना ही भय रहित होना होता है

और गीता ऐसे प्रश्नों के ऊपर पड़े परदे को उठा कर कहता है , देख यह है परम की माया

गीता संसार – तत्त्वों से परिचय कराता है

गीता भोग होश उठा कर हमारे अगले कदम को योग में पहुंचाता है

गीता योग भोग के द्वार को बंद करके परम गति की यात्रा पर ले जाता है

गीता के श्लोकों में वही उर्जा है जो सामवेद के बृहत्साम श्रुतियों में है

गीता के सूत्र उस ऊर्जा में पहुंचाते हैं जहाँ गायत्री छंद से साधक पहुंचते हैं

गीता भोग से योग में,योग से वैराज्ञ में और वैराज्ञ से परम में पहुंचाता है

=====ओम्========


Wednesday, March 14, 2012

जीवन दर्शन भाग 27

औरों से मिलनें वाले सुख एवं अपनों से मिलनें वाले सुख को एक तराजू में तौलो

मनुष्य सबको गुलाम बन कर क्यों रखना चाहता है?

मनुष्य के ज्ञान – विज्ञान की दिशा परमात्मा को भी गुलाम बनानें को है , क्यों ?

अन्य जीवों की तुलना में मनुष्यों की पलकें अधिक क्यों झपकती हैं?

अन्य जीव तीन मार्गी हैं[काम+भोजन+सुरक्षा]और मनुष्य चार मार्गी[काम,राम,भोजन,सुरक्षा]

भोगी उस चौराहे पर है जहाँ से चार मार्ग निकलते हैं [ काम , राम , भोजन , सुरक्षा ] और मार्गों के चयन में भ्रमित रहता है

योगी का मार्ग पगडण्डी है जो सीधे भोग से निकल कर परम में पहुंचता है जिस पर कोई चौराहा नहीं

भोगी भोग को भगवान समझता है और योगी की बुद्धि में दो नहीं एक[प्रभु]बसता है

भोगी का सम्बन्ध भगवान से मात्र भोग प्राप्ति के लिए होता है और योगी कामना-संकल्प रहित प्रभु में बसा होता है

राम में कम की तलाश है भोगी की और योगी काम को राम का मार्ग समझता है [ गीता - 7.11 धर्माविरुद्धो भूतेषु कामः अस्मि ]

खोज की यात्रा जितनी लंबी होती है मनुष्य उतना बेचैन रहता है और जब एक खोज समाप्त होती है, दूसरी प्रारम्भ भी हो जाती है


====ओम्======


Sunday, March 11, 2012

जीवन दर्शन 26

आज जो हो लेकिन कल जिसका अस्तित्व बदल जाए वह सत्य नहीं

वह जिसके ऊपर समय का प्रभाव न हो वह सत्य है

अपनी सोच के पीछे कामना - अहंकार , मोह – लोभ एवं भय – आलस्य की ऊर्जा न रखो , तुम सत्य में होगे

जबतक औरों के इशारे पर अपना कदम रखते रहोगे तुम सत्य में नहीं पहुँच सकते

लोगों की मानसिकता दिन प्रति दिन उनको सिकोड़ रही है

लोगों की उलझन को जबतक अपनें मनोरंजन का साधन समझते रहोगे तुम्हारा मार्ग गलत होगा

लोगों का कभी सुनो भी हमेशा सुनाते ही रहनें से तुम्हारा अहंकार सघन होता है

जीवन में सहारा जरूरी है लेकिन सहारे का गुलाम बन कर रह जाना दुःख का कारण हो सकता है

जो देखो उसमें उसे पकडो जिससे वह है और वह सत्य होगा

जब कोई आप का अपना बन रहा हो तो होश में रहना उसमें उसका गहरा स्वार्थ छिपा हो सकता है

दो रुपये का बैगन लेते समय आदमी दस बार सोचता है और जीवन का सौदा बिना सोचे कर बैठता है


===== ओम्======


Friday, March 9, 2012

जीवन दर्शन - 25

  • संसार से भाग कर कहाँ जाओगे?

  • जहाँ भी जाओगे तुम्हारा अपना संसार निर्मित हो उठेगा

  • तुम जिस संसार से भागे थे वह किसी और का नहीं था , तुम्हारा अपना था

  • तुम जगह बदलते रहते हो लेकिन स्वयं को नहीं बदलना चाहते

  • जबतक तुम अपनें को नहीं बदलते तुम जहाँ भी रहोगे वह तुमको नरक सा दिखता रहगा

  • यहाँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सभीं सूचनाओं का अपना-अपना संसार है

  • संसार अर्थात एक स्पेस ; हमारी ऊर्जा का क्षेत्र

  • जहाँ कोई अपना , कोई पराया का आभाष न रहे वह प्रभु का स्पेस होता है

  • पर में स्व को देखना एवं स्व में पर को देखना ही भक्ति है

  • जब बुद्धि से तेरा-मेरा का भाव समाप्त हो जाता है तब वह बुद्धि निश्चयात्मिका बुद्धि होती है

  • निश्चयात्मिका बुद्धि में प्रभु बसता है

  • अनिश्चायात्मिका बुद्धि को भोग की बुद्धि होती है

  • ब्राह्मण वह जो ब्रह्म से परिपूर्ण हो

    =====ओम्======



Wednesday, March 7, 2012

गीता में प्रभु की बात

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं-----

वैराज्ञ एवं मोह एक साथ एक मन – बुद्धि में नहीं रहते

वैराज्ञ बिना संसार का बोध होना संभव नहीं

संसार का बोध ही प्रकृति - पुरुष का बोध है

प्रकृति माया से माया में है

माया प्रभु निर्मित तीन गुणों का एक सीमा रहित सनातन माध्यम है

माया में आसक्त मायापति को नहीं समझता

माया मुक्त वह होता है जो गुणातीत हो

गुणातीत मात्र प्रभु हैं

मायामुक्त योगी तीन सप्ताह से अधिक समय तक देह को नहीं ढो सकता,यह बात

रामकृष्ण परमहंस जी कहते हैं

दो प्रकार की प्रकृतियाँ हैं;अपरा एवं परा

अपरा के आठ तत्त्व हैं ; पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि एवं अहंकार और परा चेतना का नाम है

माया का गुलाम आसुरी प्रकृति वाला होता है

मायामुक्त होने पर योगी देवी प्रकृति वाला बनता है


=====ओम्=====



Sunday, March 4, 2012

जीवन दर्शन - 23

कामना क्रोध की जननी है
क्रोध अज्ञान का लक्षण है
सघन आसक्ति कामना का गर्भ है
काम , कामना , क्रोध एवं लोभ नर्क के द्वार हैं
काम , कामना क्रोध एवं लोभ राजस गुण के तत्त्व है
राजस गुण प्रभु मार्क की मजबूत रुकावट है
राजस् गुण की ऊर्जा का ही नाम है काम - उर्जा
तंत्र में काम ऊर्जा को रूपांतरित करके परम सत्य के खोज की ऊर्जा बनाया जाता है
राजस गुण की ऊर्जा जब निर्विकार होती है तब राम की छाया मन दर्पण पर दिखती है
राजस गुण से ही सात्त्विक गुण का द्वार खुलता है
सात्त्विक ऊर्जा से तत्त्व - वित् के देह के सभीं नौ द्वार प्रकाशित रहते हैं
====== ओम् =======

Friday, March 2, 2012

जीवन दर्शन भाग बाईस

  • अधिकांश लोग छोटी-छोटी बातो में उलझ कर रह जाते हैं

  • अहंकार से युक्त जीवन में सुख कहाँ और हम सुख प्राप्त करना चाहते हैं

  • हम कमीज बनवाते हैं अपनें लिए और पूछते हैं , भाई कैसी है , क्योंकि हमें अपनें पर भी भरोषा कहा

  • लोग क्या कहेंगे,लोग क्या सोचेंगे लोग हँसेंगे,ऎसी सोचें हमें बंधक बना कर रखती हैं

  • लोगों का भय जब इतना गहरा है फिर भगवान का भय कैसा होगा,लेकिन फिरभी हम आँख बंद किये चल रहे हैं,इस संसार में,क्यों?

  • मनुष्य जब किसी ऐसे आयाम में पहंच जाता है जहाँ उसे सभीं मार्ग बंद दिखनें लगते हैं तब वह या तो आत्म हत्या कर बैठता है या मनुष्य से भेडिया बन जाता है

  • कौन हमारा दोस्त है और कबतक यह दोस्ती रहेगी , कुछ कहना कठिन हैं लेकिन ऎसी सोच से वर्तमान की दोस्ती को खतरा न पैदा करो

  • यात्रा उसे तबतक कहते हैं जबतक वह रुके नहीं और ज्योंही वह रुकती है,अपना अस्तित्व खो देती है,जीवन भी एक यात्रा ही है

  • जीवन को अपनें प्रकृति की ऊर्जा से बहनें दो यदि जीवन का मजा उठाना चाहते हो

  • बंधक बन कर जीनें वाला जीता नहीं वह मात्र मौत का इन्तजार करता है

  • रविंद्रनाथ टैगोर कहते है , तितिलियाँ दिन , माह एवं वर्ष के सम्बन्ध में नहीं सोचती , वे जिस पल में जीती हैं उसी में मस्त रहती हैं

=====ओम्====