जीव,जीवन सिद्धांत एवं शब्द जो पैदा हुए हैं एक दिन समाप्त हो जायेंगे
आप देखना आज प्यार,प्रेम,प्रेमी एवं प्रेमिका जैसे शब्दों में कितनी और जान बची पडी है?
आज वासना शब्द की चादर प्यार शब्द को ढक चुकी है
आज समझना कठिन हो गया है कि वासना - प्यार में क्या भेद है ?
वासना माध्यम के सहारे यात्रा करती है और प्यार माध्यम रहित है और सर्वत्र है
वासना का माध्यम भाषा-भाव हैं और प्यार निर्भाव में बसता है
प्यार की धुन रहित धुन परम प्रेमी को सुनाई पड़ती है
प्रेमी शब्द रहित स्थिति में गाता है
संसार वासना का सागर है लेकिन इसका मूल परम प्रेम है
बिना गुण निर्गुण में पहुँचना संभव नहीं और बिना वासना प्यार को छूना भी सभव नहीं
गुण निर्गुण के माध्यम हैं और वासना प्यार का
सभीं गुण एवं उनके भाव प्रभु श्री कृष्ण से हैं लेकिन प्रभु स्वयं निर्गुणी हैं और भावातीत हैं
====ओम्======
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